हिन्दी साहित्य
Tuesday, September 1, 2020
बूढ़ी देहरी मौन है
सहमी अँगनाईयाँ।
घर के सामान की तरह
बँट गये माँ-बाबूजी।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment