Monday, March 31, 2025


धरती की प्यास

कब बुझी

बिन बादल।

नदी की प्यास

कब बुझी

बिन सागर।

अपनी-अपनी

प्यास सबकी।

अपनी-अपनी

मंजिल सबकी। 


        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, March 30, 2025



चैत्री नवरात्री 2025 की हार्दिक शुभकामनायें
 

Saturday, March 29, 2025


घूँघट पट की आड़ दै हँसति जबै बह दार।

ससिमंडल ते कढ़ति छनि जनु पियूष की धार।

                                 गुरूदत्त सिंह भूपति 

Friday, March 28, 2025


रूठे सुजन मनाइये जो रूठे सौ बार।

रहिमन फिर फिर पोइये जो टूटे सौ बार।।

                                 रहीमदास 

Thursday, March 27, 2025


भोजन करत चपल चित इत उत अवसरू पाइ।

भजि चले किलकत मुख दधि ओदन लपटाई।।

                                   तुलसीदास 

Wednesday, March 26, 2025


तेरे पास पहुँचने की आशा में,

मैं निरंतर चलता जा रहा हूँ।

पर तू केंद्र में खड़ा मुस्कुरा रहा है,

और मैं परिधि के चक्कर लगा रहा हूँ।

                               गुलाब खंडेलवाल 

Tuesday, March 25, 2025

 


 


भाषा के नाम पर, जाति के नाम पर बँटती रही है धरा अपनी। रंगों को भी बाँटोगे तो कैसे इंद्रधनुष सजेंगे, कैसे तिरंगा शान से लहरायेगा। भगवा रंग है शौर्य का प्रतीक और हरा रंग हरियाली का।  दोनों सजेंगे तभी ध्वज अपना शान से लहरायेगा।

                                                    डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, March 24, 2025


आती-जाती हवाओं से पूछते हैं हाल तुम्हारा।

कभी तो आ के दरस दे जाओ कान्हा!

                                                                                             डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, March 23, 2025

 श्री विनोद कुमार शुक्ल जी को ज्ञानपीठ पुरस्कार के लिये बहुत-बहुत बधाई

श्री विनोद कुमार शुक्ल

डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 1जनवरी, सन् 1937 ई. राजनादगाँव

 

श्री विनोद कुमार शुक्ल जी हिन्दी के प्रसिद्ध कवि व कथाकार हैं। शुक्ल जी ने व्यवसाय के रूप में प्राध्यापन को चुना और साथ ही साहित्य का सृजन भी किया। शुक्ल जी का पहला कविता संग्रह लगभग जयहिंद नाम से सन् 1971 ई. में प्रकाशित हुआ। सन् 1979 ई. में दीवार में एक खिड़की उपन्यास प्रकाशित हुआ, इसके लिये शुक्ल जी को साहित्य अकादमी पुरस्कार मिला और फिल्मकार मणिकौल ने दीवार में एक खिड़की नाम से एक फिल्म बनाई।

श्री विनोद कुमार शुक्ल जी की लेखन शैली एकदम नयी थी। उनके उपन्यासों में पहली बार एक मौलिक भारतीय उपन्यास की संभावना को दिशा मिली। उन्होंने एक साथ लोक आख्यान और आधुनिक मनुष्य की अस्तित्व मूलक जटिल आंकाक्षाओं की अभिव्यक्ति को समाविष्ट कर एक नयी कथा का स्वरूप प्रस्तुत किया। अपनी विशिष्ट भाषा संरचना, संवेदनात्मक उत्कृष्ट रचनाशीलता से शुक्ल जी ने भारतीय वैश्विक साहित्य को अद्वितीय रूप से समृद्ध किया।

श्री विनोद कुमार शुक्ल जी की रचनाओं का अन्य भाषाओं में भी अनुवाद हुआ है। भारत की अन्य भाषाओं के साथ-साथ अंग्रेजी, फ्रेंच और इतालवी भाषाओं में भी शुक्ल जी की रचनाओं का अनुवाद हुआ है। शुक्ल जी की प्रमुख रचनायें हैं-

 

कविता संग्रह-

वह आदमी चला गया नया गरम कोट पहनकर, विचार की तरह, सब कुछ होना बचा रहेगा, अतिरिक्त नहीं, कविता से लंबी कविता, आकाश धरती को खटखटाता है, पचास कवितायें(2011), कभी के बाद अभी, कवि ने कहा, प्रतिनिधि कवितायें।

उपन्यास- नौकर की कमीज, खिलेगा तो देखेंगे, दीवार में एक खिड़की रहती थी, हरी घास की छप्पर वाली झोंपड़ी और बौना पहाड़, यासि रासा त, एक चुप्पी जगह।

कहानी संग्रह- पेड़ पर कमरा, महाविद्यालय, एक कहानी, घोड़ा और अन्य कहानियाँ।

कहानी और कविता पर पुस्तक- गोदाम, गमले में जंगल।

श्री विनोद कुमार शुक्ल जी को समय-समय पर विविध पुरस्कारों से सम्मानित किया गया। जैसे- रजा पुरस्कार, शिखर सम्मान, हिन्दी गौरव सम्मान, राष्ट्रीय मैथिली गुप्त सम्मान, गजानन माधवबोध फेलोशिप। सन् 2023 ई. में अमेरिका के पेन/नाबोकोब सम्मान से सम्मानित किया गया। इसे अमेरिका में साहित्य का ऑस्कर सम्मान समझा जाता है। सन् 2025 में श्री विनोद कुमार शुक्ल जी को साहित्य के प्रतिष्ठित सम्मान ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया।

प्रतिबिंब में उसके बालों में

एक फूल खुँसा है।

परन्तु उसके बालों में नहीं।

मैंने सोचा काले-तख्ते के चित्र से

फूल तोड़कर उसके बालों में लगा दूँ

या गमले से तोड़कर

या प्रतिबिंब से।

प्रेम की कक्षा में जीवन-भर अटका रहा।

                  श्री विनोद कुमार शुक्ल

 

 

 

 

 


Saturday, March 22, 2025

 

रूह हो तुम मेरी।

जीते जी कैसे अलग होगे मुझसे।

 

      डॉ. मंजूश्री गर्ग


Friday, March 21, 2025

 

धरती और आकाश दूर कहाँ हैं?

क्षितिज पे देखो कितने पास हैं वो!

रात और दिन दूर कहाँ हैं?

साँझ में देखो कितने पास हैं वो!

हार और जीत में दूरी बस एक पल की,

एक पल के इधर पास हैं दोनों।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

 


Thursday, March 20, 2025

 

 एक समय ऐसा भी आता है कि व्यक्ति स्वयं अपनी चुप्पी तोड़ता है और उसका जीवन ऐसे ही निखर जाता है जैसे सीपी से मोती निकलें. इसी भाव की अभिव्यक्ति कवयित्री ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-

भीतर छिपे सन्नाटे

कब तक रहते खामोश

उम्रें तमाम होती रहीं

चुप्पी टूटी आया होश।

जुबां पाई खामोशियों ने

सावन की बूँदे बरसीं

सीपी में छिपी स्वाति-बूँद

अमूल्य मोती बन निकली।


        वीना विज उदित


Wednesday, March 19, 2025


ताजी हवा के झोंके दम तोड़ते दरवाजों पे।

बंद कमरों की घुटन कम होती ही नहीं।।

                         डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, March 18, 2025


झील के तट पर खड़े थे इस तरह मैं और तुम

बिन छुये ही झील का जल थरथराने लग गया।

                             डॉ. कुँअर बेचैन 

Monday, March 17, 2025


                             कभी मुस्कुराया, कभी गुनगुनाया। 

इस तरह आँसुओं को बहलाया।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, March 16, 2025


अरूण कपोलों पर लज्जा की

भीनी-सी मुस्कान लिए,

सुरभित श्वासों में यौवन के

अलसाए-से गान लिए,

 

बरस पड़ी हो मेरे मरू में,

तुम सहसा रसधार बनी,

तुममें लय होकर अभिलाषा

एक बार साकार बनी।

               भगवती चरण वर्मा

 

 

Saturday, March 15, 2025


समर्पण लो सेवा का भार, सजल संस्कृति की यह पतवार,

आज से यह जीवन उत्सर्ग, इसी पदतल में विगत विकार।

दया, माया, ममता, लो आज, मधुरिमा लो अगाध विश्वास,

हमारा ह्रदय रत्ननिधि स्वच्छ, तुम्हारे लिये खुला है पास।

                                       जयशंकर प्रसाद 

Friday, March 14, 2025

 

देखो इस सारी दुनिया को एक दृष्टि से

सिंचित करो धरा समता की भाव वृष्टि से

जाति भेद की, धर्म वेश की

काले गोरे रंग-द्वेष की

ज्वालाओं से जलते जग में

इतने शीतल बहो कि जितना मलय पवन है।

          द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी


Thursday, March 13, 2025


 
13 मार्च और 14 मार्च 2025, होली के पावन पर्व की हार्दिक शुभकामनायें

Wednesday, March 12, 2025


मेघ बन छा रहे गुलाल सखि री!

टेसू रंग बरस रहा आँगन सखि री!

सब भीग रहे होली के रंग में आज,

मैं भीग रही कान्हा के रंग सखि री!

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, March 11, 2025

 

छंद-विधान

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

हिन्दी भाषा के शब्द छन्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों से सम्भव है- छन्दस और छन्दक। छन्दक का अर्थ होता है हाथ में धारण करने वाला विशेष आभूषण और पाणिनी की अष्टाध्यायी में छन्दस शब्द को वेदों का बोधक बताया है। अमर कोश(छठी शताब्दी) में छन्द शब्द से अर्थ मन की बात या अभिप्राय लिया गया है। छन्द को वेद मंत्रों का आधार माना गया है। इसीलिये कहा गया है कि छन्दः पादौ तु वेदस्य

 

छन्द में आबद्ध पंक्तियाँ सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं, इसीलिये संस्कृत-साहित्य से लेकर अब तक हिन्दी-कविता साहित्य, अपवाद स्वरूप प्रगतिवादी कविता को छोड़कर, छंदबद्ध ही लिखा जाता रहा है। छन्द के लिये कुछ बातों का होना आवश्यक है जैसे- चरण, गति, यति, लय और मात्रा।

1. चरण- चरण से अभिप्राय पंक्ति से है। छंद की प्रत्येक पंक्ति में वर्ण की संख्या या मात्राओं की संख्या या वर्ण वृत्तों की संख्या समान रहती है।

2. गति- गति से अभिप्राय प्रवाह से है। गति के कारण ही काव्य-पाठ में लय बनती है, बीच में रूकावट पैदा नहीं होती। गति के विषय में पं राम बहोरी शुक्ल ने कहा है- प्रत्येक छंद में मात्राओं या वर्णों की नियमित संख्या होने से ही काम नहीं चलता। उसमें एक प्रकार का प्रवाह भी होना चाहिये, जिससे पढ़ने मे कहीं रूकावट सी न जान पड़े। इस प्रवाह को गति कहते हैं।

3. यति- छंद बद्ध कविता के गायन के समय, समय-समय पर कुछ देर रूकना होता है, इसे यति कहते हैं। यति के माध्यम से कविता पाठ के समय ना तो पाठक का साँस टूटता है और ना लय बिगड़ती है। यति के विषय में पं राम बहोरी शुक्ल ने कहा है, बहुत से छंदों में बहुधा चरण के किसी स्थल पर रूकने या विराम की भी आवश्यकता होती है। इसके लिये नियमित वर्णों या मात्राओं पर थोड़ी देर रूकना पड़ता है। इस रूकने की क्रिया को यति, विराम या विश्राम कहते हैं।

4. लय- छंद में लय का विशेष महत्व है। लय का शाब्दिक अर्थ है- एक पदार्थ का दूसरे में मिलना, विलीन होना , मग्न होना। लय के माध्यम से ही एक पंक्ति के भाव दूसरी पंक्ति में विलीन होते जाते हैं।

5. मात्रा- मात्रा की परिभाषा देते हुये पं. राम बहोरी शुक्ल ने कहा है- किसी स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है उसकी अवधि को मात्रा कहते हैं। इसी आधार पर दो मात्रायें मानी गयी हैं एक लघु और दूसरी गुरू

लघु मात्रा- जब किसी व्यंजन वर्ण में अ, इ, उ, ऋ,लृ कोई लघु स्वर मिलता है या लघु स्वर स्वतंत्र रूप से आता है तो लघु मात्रा मानी जाती है। इसके उच्चारण में समय कम लगता है। लघु मात्रा का चिह्न( I ) है और गणना करते समय एक मात्रा गिनी जाती है।

जब किसी व्यंजन वर्ण में आ, ई, ऊ, ए, ऐ, ओ, औ कोई दीर्घ स्वर संयुक्त होता है या दीर्घ स्वर स्वतंत्र रूप से आता है तो गुरू मात्रा मानी जाती है। इसके उच्चारण में समय अधिक लगता है। इसका चिह्न( S ) है और गणना करते समय दो मात्रायें गिनी जाती हैं।

 

हिन्दी में छंदों की तीन कोटियाँ हैं- वर्णिक, मात्रिक एवम् वर्णवृत्त।

वर्णिक छंद- वर्णिक छंदों में वर्णों(अक्षरों) की संख्या गिनी जाती हैं इनमें मात्राओं का महत्व नहीं होता। जैसे- कवित्त, मनहरण, हाइकु या घनाक्षरी छंद।

कवित्त का उदाहरण-

पहला चरण- भर दीजिये दिलों को, नव चेतना से फिर, रस की बरसती फुहार बन जाइये।

                  8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

दूसरा चरण- नयनों मे आये तो भी, हँसने की प्रेरणा दे, आप ऐसी आँसुओं की धार बन जाइये।

                  8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

तीसरा चरण- पापियों के पाप का विनाश करने के लिये, आज फिर तीर-तलवार बन जाइये।

                  8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

चौथा चरण- एक प्रज्वलित भाव-पुंज बन जाइये कि खौलता हुआ कोई विचार बन जाइये।

                  8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

मात्रिक छंद- मात्रिक छंदों में प्रत्येक पंक्ति में मात्रायें गिनी जाती हैं। आधे अक्षर को कोई मात्रा नहीं दी जाती। आधे अक्षर से पहले वाले अक्षर को गुरू मान लिया जाता है यदि आधे अक्षर से ठीक पहले वाला अक्षर गुरू है तो आधे अक्षर को कोई मात्रा नहीं दी जाती। दोहा, चौपाई छंद मात्रिक छंद हैं। दोहा में दो पंक्तियाँ होती हैं। 13 और 11 मात्रा पर यति होती है और अंत में तुकांत होता है।

दोहा का उदाहरण-

पहली पंक्ति- भरी दुपहरी में खिले, गुलमोहर के फूल।

            13 मात्रायें+11 मात्रायें

दूसरी पंक्ति- मन में सारे घुल गये उदालियों के शूल।।

            13 मात्रायें +11 मात्रायें

वर्ण वृत्त छंद- वर्ण वृत्त छंदों की रचना गणों के आधार पर होती है। इसका सूत्र है यमाता राजभान सलगा। तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। इन तीन वर्णों में दो एक जाति का और एक एक जाति का होता है। केवल दो गण ऐसे हैं जिनमें एक जाति के ही तीनों वर्ण होते हैं। यहाँ जाति से अभिप्राय लघु एवम् गुरू वर्णों से है। गुरू और लघु के आधार पर गणों के तीन वर्ग बनते हैं-

प्रथम- भजसा-      भगण        S I I

                  जगण       I S I

                  सगण        I I S

द्वितीय- यरता-     यगण        I S S

                  रगण        S I S

                                    तगण        S S I

तृतीय- मन-        मगण        S S S

                  नगण        I I I

उपर्युक्त वर्गीकरण में गणों का नामकरण गण में जाति(गुरू या लघु) विशेष के आधार पर किया गया है जैसे- भगण में भ वर्ण आदि में आया है और भजसा में भ आदि में आया है शेष दो वर्ण बाद में आये हैं, इसी प्रकार अन्य गणों का भी नामकरण किया गया है। अधिकांश हिन्दी गजलें वर्ण वृत्त् छंदों में ही लिखी जा रही हैं। सवैया वर्ण वृत्त छंद है।

सवैया का उदाहरण- सवैया छंद में चार चरण होते हैं प्रत्येक चरण में तुकांत होता है और गणों की व्यवस्था समान रहती है।

यदि आज मिले न हमें प्रिय तो कल देह में श्वास रहे न रहे।

सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा

आठ सगण के साथ यह दुर्मिल सवैया है।