Monday, August 18, 2025


हर रोज हम एक गुनाह करते हैं।

तुम्हें भूलने को याद करते हैं।।


डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, August 17, 2025


पास बैठे रहो, चाहे रूठे ही रहो।

मुस्का के मना लेंगे तुम्हें।

प्यार से, मनुहार से मना लेंगे तुम्हें।

फिर भी अगर ना माने तो

खुद रूठ कर मना लेंगे तुम्हें।

 

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Saturday, August 16, 2025


16 अगस्त, 2025 भाद्र मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि श्री कृष्ण जन्माष्टमी

की

हार्दिक शुभकामनायें


 

Friday, August 15, 2025


 


15 अगस्त, 2025 स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


Thursday, August 14, 2025

 

 अतिआधुनिक काल में हिन्दी काव्य में राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति-

                    डॉ. मंजूश्री 


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपनी राष्ट्रीय भावना को अभिव्यक्त किया है-

सापेक्ष विश्व निर्मित है

कल्पना कला के लेखे।

यह भूमि दूसरा शशि है

कोई शशि से जा देखे।

                  जगदीश गुप्त

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वीर सैनिकों के मनोभाव को अभिव्यक्त किया है-

प्राण रहते

तो न देंगे

भूमि तिल-भर देश की

फिर भुजाओं को नये

संकल्प रक्षाबंध दो।

           शैलेश मटियानी

प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ने उन वीर सैनिकों के सम्मान में कही हैं जिन्होंने आमने-सामने के युद्ध में विजय हासिल कर अपनी शौर्य गाथायें लिखीं-

 

जिन्होंने बर्फ में भी शौर्य की चिंगारियाँ बो दीं

पहाड़ी चोटियों पर भी अभय की क्यारियाँ बो दीं।

भगाकर दूर सारे गीदड़ों, सारे श्रृंगालों को

जिन्होंने सिंह वाले युद्ध में खुद्दारियाँ बो दीं।

 

अहर्निश जो बढ़े आगे विजय-अभियान की खातिर

उन्हें शत्-शत् नमन मेरा, उन्हें शत्-शत् नमन मेरा।

                                          उर्मिलेश शंखधार

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी राष्ट्रीयता की खातिर आम आदमी को नवीन क्रांति के लिये उत्साहित कर रहा है-

उठें कि हम जो सो रहे हैं अब उन्हें झिंझोड़ दें

नवीन क्रांति दें, स्वदेश को नवीन मोड़ दें

समस्त भ्रष्ट-दुष्ट मालियों का साथ छोड़ दें

स्वदेश के चरित्र को पवित्रता से जोड़ दें

न छोड़ें मानवीयता

न भूलें भारतीयता

विवेक से अनेकता में एकता बनी रहे।

         उर्मिलेश शंखधार

 

स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय खादी पहनना स्वतन्त्रता आन्दोलनकारियों की आवश्यकता थी. स्वतन्त्रता आन्दोलनकारियों ने विदेशी रेशमी वस्त्रों का वहिष्कार किया और देश में बने हुये सूती खादी के वस्त्रों को बढ़ावा दिया. लेकिन आजकल देश में ही विविध भाँति के रेशमी वस्त्र तैय्यार हो रहे हैं तब नेताओं को केवल दिखावे के लिये ही खादी के वस्त्र धारण करने होते हैं. इसी भाव की अभिव्यक्ति प्रस्तुत पंक्तियों में हुई है-

चुभी थी फाँस बनकर गोरी आँखों में कभी खादी

न होने पाए इसकी आज बदनामी बचा लेना।

                        राणाप्रताप सिंह

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि जनता से अनुरोध कर रहा है कि जात-पात को भूलकर सही व्यक्तियों के हाथ में सत्ता सौंपों ताकि देश के साथ-साथ तुम्हारा भी हित हो-

बूँद-बूँद सागर बने, वोट-वोट सरकार।

सही व्यक्ति जितवाइये, जात-पात बेकार।

                             कुलभूषण व्यास

 

मतदान होते रहे। मैं अपनी सम्मोहित बुद्धि के नीचे

उसी लोकनायक को बार-बार चुनता रहा,

जिसके पास हर शंका और सवाल का एक ही जबाब था

यानि की कोट के बटन-होल में

महकता फूल एक गुलाब का।

                     धूमिल

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने व्यक्ति को राजशक्ति की संहारक शक्ति के प्रति सचेत किया है कि वह कोई भी सौदा करे पर व्यक्ति-स्वातंत्र्य का सौदा कदापि न करे. वही तत्व सबसे ज्यादा कीमती है. राजशक्ति तो यही चाहती है कि-

प्रत्येक व्यक्ति

बंद ताले की भाँति कर दिया जाये

जिसकी ताली

राजकोष में जमा कर दी गई हो।

                   नरेश मेहता

 

अकेला दुर्योधन ही,

दुर्विनीत नहीं था अर्जुन,

व्यवस्था का मुकुट धारण करते ही

किसी भी व्यक्ति का

मनुष्यत्व नष्ट हो जाता है

                   नरेश मेहता

आपातकाल के समय में जब प्रेस पर भी पाबंदी लगा दी गयी थी, उसी संवेदना की अभिव्यक्ति प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने की है-

उफ! डॉक्टर के मना करने पर भी

बन्द नहीं कर पाया हूँ-सोचना।

सुना है अमन चैन के लिये सरकार ने

सोचने पर लगा दिया है- प्रतिबन्ध।

                           धूमिल

आपातकाल के बाद हुये आम चुनावों में जनता दल की विजय का वर्णन कवि ने एक जन प्रचलित कहानी के माध्यम से किया है-

दम लगाया हर एक कबूतर ने

वरना कोई उड़ा नहीं होता।

                               डॉ. महेन्द्र कुमार अग्रवाल

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Wednesday, August 13, 2025

 

मैथिलीशरण गुप्त

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 3 अगस्त, सन् 1886 ई.

पुण्य-तिथि- 12 दिसम्बर, सन् 1964 ई.

 

मैथिलीशरण गुप्त हिन्दी साहित्य के प्रथम खड़ी बोली के कवि हैं, इन्होंने प्रारंभ ब्रजभाषा में कवितायें लिखने से किया, लेकिन महावीर प्रसाद द्विवेदी जी की प्रेरणा से खड़ी बोली को अपनी कविताओं का माध्यम बनाया. महावीर प्रसाद द्विवेदी इनकी रचनाओं में सुधार करके सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित करते थे. सन् 1907 ई. में इनकी पहली खड़ी बोली की कविता हेमंत शीर्षक से सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुई. इन्होंने खड़ी बोली को काव्य की भाषा बनाने में अथक प्रयास किया. धीरे-धीरे नये कवि ब्रजभाषा जैसी समृद्ध काव्य भाषा को छोड़कर समय और संदर्भों के अनुकूल होने के कारण खड़ी बोली हिन्दी को अपनी अभिव्यक्ति का माध्यम बनाने लगे.

 

मैथिलीशरण गुप्त जी की कृति भारत-भारती(सन् 1912 ई. में प्रकाशित) स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय स्वतन्त्रता सेनानियों के लिये प्रेरणादायक रही. इसमें जहाँ भारत के अतीत के गौरव का वर्णन है वहीं वर्तमान की दयनीय दशा का भी वर्णन है. साथ ही नवयुवकों में उज्जवल भविष्य के लिये उत्साह और उमंग उत्पन्न करने वाली रचनायें भी हैं. भारत-भारती से प्रभावित होकर ही गाँधीजी ने इनको राष्ट्र कवि की पदवी से सम्मानित किया था.

 

साकेत महाकाव्य में उर्मिला के माध्यम से समसामयिक नारियों के प्रति उपेक्षित भाव को अभिव्यक्त किया है. पवित्रता, नैतिकता और परंपरागत मानवीय सम्बन्धों की रक्षा गुप्त जी के काव्य में सर्वत्र देखने को मिलती है.

 

मैथिलीशरण गुप्त सन् 1941 ई. में व्यक्तिगत सत्याग्रह के अन्तर्गत जेल गये थे. सन् 1952 ई. से सन् 1964 ई. तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे. आगरा विश्वविद्यालय और हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा इनको डी. लिट्. की उपाधि से सम्मानित किया गया. मैथिलीशरण गुप्त जी को पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया. मध्य प्रदेश के शिक्षा राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने मैथिलीशरण गुप्त के जन्म दिन को 3 अगस्त को प्रतिवर्ष कवि दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया. आज पूरा भारतवर्ष दद्दा जी के जन्म दिवस को कवि दिवस के रूप में मनाता है.

 

मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रत्येक व्यक्ति के लिये प्रेरणादायी कालजयी पंक्तियाँ-

 

नर हो ना निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो,

जग में रहकर कुछ नाम करो.

 

 

मैथिलीशरण गुप्त सन् 1941 ई. में व्यक्तिगत सत्याग्रह के अन्तर्गत जेल गये थे. सन् 1952 ई. से सन् 1964 ई. तक राज्यसभा के मनोनीत सदस्य रहे. आगरा विश्वविद्यालय और हिन्दू विश्वविद्यालय द्वारा इनको डी. लिट्. की उपाधि से सम्मानित किया गया. मैथिलीशरण गुप्त जी को पद्म विभूषण और पद्म भूषण से भी सम्मानित किया गया. मध्य प्रदेश के शिक्षा राज्यमंत्री लक्ष्मीकांत शर्मा ने मैथिलीशरण गुप्त के जन्म दिन को 3 अगस्त को प्रतिवर्ष कवि दिवस के रूप में मनाने का निश्चय किया. आज पूरा भारतवर्ष दद्दा जी के जन्म दिवस को कवि दिवस के रूप में मनाता है.

 

मैथिलीशरण गुप्त जी की प्रत्येक व्यक्ति के लिये प्रेरणादायी कालजयी पंक्तियाँ-

 

नर हो ना निराश करो मन को

कुछ काम करो, कुछ काम करो,

जग में रहकर कुछ नाम करो.

 

 

Tuesday, August 12, 2025

 

महावीर प्रसाद द्विवेदी

डॉ. मंजूश्री गर्ग

जन्म-तिथि- 15 मई, सन् 1864 ई., रायबरेली

पुण्य-तिथि- 21 दिसम्बर, सन् 1938 ई., रायबरेली

 

महावीर प्रसाद द्विवेदी हिन्दी के महान साहित्यकार, पत्रकार व युग प्रवर्तक थे. इनके अतुलनीय योगदान के कारण ही आचार्य रामचन्द्र शुक्ल ने हिन्दी साहित्य का इतिहास लिखते हुये आधुनिक काल के दूसरे खण्ड का नाम द्विवेदी युग रखा. इन्होंने न केवल हिन्दी भाषा के प्रयोग के लिये लेखकों व कवियों को प्रोत्साहित किया वरन् उसकी शुद्धता की ओर भी हिन्दी लेखकों व कवियों का ध्यान आकर्षित किया.

 

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी से पहले भारतेन्दु युग में हिन्दी भाषा में गद्य तो लिखा जा रहा था लेकिन पद्य के लिये अधिकांशतः ब्रजभाषा का ही प्रयोग किया जा रहा था. द्विवेदी जी ने हिन्दी खड़ी बोली में कवितायें लिखने के लिये कवियों को प्रोत्साहित किया. इनके प्रोत्साहन के परिणाम स्वरूप ही अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔधने हिन्दी खड़ी बोली में प्रिय प्रवास महाकाव्य लिखने का प्रयास किया. मैथिलीशरण गुप्त ने भी अपने काव्य के लिये हिन्दी खड़ी बोली ही अपनायी और अनेक खण्ड काव्यों, कविताओं के साथ-साथ साकेत महाकाव्य की रचना की.

 

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी केवल कविता, कहानी, आलोचना को साहित्य मानने के विरूद्ध थे. इन्होंने अर्थशास्त्र, विज्ञान, इतिहास, समाजशास्त्र, आदि विषयों को भी साहित्य के अन्तर्गत माना. इनको हिन्दी के साथ-साथ संस्कृत, मराठी, गुजराती, अंग्रेजी भाषाओं का भी ज्ञान था. इन्होंने मौलिक रचनाओं के साथ-साथ विपुल मात्रा में अनुदित ग्रंथ भी लिखे थे. जिनमें प्रमुख हैं- शिक्षा(हर्बर्ट स्पेंसर के एजुकेशन का अनुवाद) और स्वाधीनता(जॉन स्टुअर्ट मिल के ऑन लिबर्टी का अनुवाद). संस्कृत साहित्य पर पहली हिन्दी आलोचना पुस्तक के रूप में संस्कृत महाकाव्य नैषधीय चरितम् पर नैषध चरित चर्चा लिखी.

 

महावीर प्रसाद द्विवेदी जी ने सरस्वती पत्रिका का संपादकत्व करते हुये साहित्यिक और राष्ट्रीय चेतना को स्वर प्रदान किया. इन्होंने कहा-

हमारी भाषा हिन्दी है. उसके प्रचार के लिये गवर्नमेंट जो कुछ कर रही है, हमें चाहिये कि हम अपने घरों का अज्ञान तिमिर दूर करने और अपना ज्ञान बल बढ़ाने के लिये इस पुण्य कार्य में लग जायें.

 

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