एक बार रूक्मणीजी श्रीकृष्ण
से पूछती हैं कि मैं तुम्हारी पटरानी हूँ लेकिन प्रत्येक व्यक्ति तुम्हारे नाम के
साथ राधा का ही नाम लेते हैं। तब श्रीकृष्ण रूक्मणी से कहते हैं-
माना कि प्रीत सच्ची है तुम्हारी,
पर झूठी राधा की भी नहीं।
तुम्हें मैंने मान दिया, सम्मान दिया,
जीवन अपना तुम्हें सौंप दिया।
राधा को केवल अपना नाम दिया।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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