हिन्दी साहित्य
Wednesday, October 9, 2019
फूल सा हल्का हुआ मन
बोलकर तुमसे
आँख भर बरसा घिरा घन
बोलकर तुमसे।
x
x
तुम नहीं थे, खुशी थी
जैसे कहीं खोई
तुम मिले तो ज्यों मिला
खोया सिरा कोई
पा गये जैसे गढ़ा धन
बोलकर तुमसे।
यश मालवीय
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment