डॉ. मंजूश्री गर्ग
शिव कल्याण के देवता हैं इसीलिये अमृतमंथन के समय समुद्र से
निकले विष को शिव ने स्वयं पान कर देवता और दानवों को अभय दान दिया। शिव स्वयं
विषपायी कहलाये पर विष को कंठ से नीचे नहीं जाने दिया. इसी से शिव नीलकंठ कहलाये।
सृष्टि के दो पक्ष हैं सृजन और विनाश। जब प्रलय के बाद नव
सृष्टि की रचना करनी होती है तो शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ मिलकर लास्य नृत्य
करते हैं और जब संसार में पापाचार, अत्याचार अधिक बढ़ जाते हैं तो शिव सृष्टि के
विनाश के लिये क्रुद्ध होकर तांडव नृत्य करते हैं।
नटराज की प्रतिमा में शिव के नृत्य के दोनों भावों अर्थात्
लास्य नृत्य और तांडव नृत्य को दर्शाया गया है। नटराज की प्रतिमा में शिव के चार
हाथ दर्शाये गये हैं- प्रथम दाहिने हाथ में डमरू है- जो ‘नाद’ का प्रतीक है-
सभी भाषाओं, व्याकरण, कलाओं और साहित्य का मूल स्रोत है। प्रथम बायें हाथ में
अग्नि-शिखा है जो बुराई का विनाश करने की प्रतीक है। दूसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा
में है जो सतपथ पर चलने वाले मानवों को रक्षा का भरोसा देता है। दूसरा बाँया हाथ
नृत्य की मुद्रा में स्वतंत्र रूप से ऊपर उठे पैर की ओर इशारा करता है। नृत्य की
मुद्रा में दाहिना पैर एक राक्षस को दबाये है और बाँया पैर स्वतंत्र रूप से ऊपर
उठा हुआ है।