Saturday, September 13, 2025

 

 

नटराज(शिव) की प्रतिमा


डॉ. मंजूश्री गर्ग 

शिव कल्याण के देवता हैं इसीलिये अमृतमंथन के समय समुद्र से निकले विष को शिव ने स्वयं पान कर देवता और दानवों को अभय दान दिया। शिव स्वयं विषपायी कहलाये पर विष को कंठ से नीचे नहीं जाने दिया. इसी से शिव नीलकंठ कहलाये।

 

सृष्टि के दो पक्ष हैं सृजन और विनाश। जब प्रलय के बाद नव सृष्टि की रचना करनी होती है तो शिव अपनी पत्नी पार्वती के साथ मिलकर लास्य नृत्य करते हैं और जब संसार में पापाचार, अत्याचार अधिक बढ़ जाते हैं तो शिव सृष्टि के विनाश के लिये क्रुद्ध होकर तांडव नृत्य करते हैं।

 

नटराज की प्रतिमा में शिव के नृत्य के दोनों भावों अर्थात् लास्य नृत्य और तांडव नृत्य को दर्शाया गया है। नटराज की प्रतिमा में शिव के चार हाथ दर्शाये गये हैं- प्रथम दाहिने हाथ में डमरू है- जो नाद का प्रतीक है- सभी भाषाओं, व्याकरण, कलाओं और साहित्य का मूल स्रोत है। प्रथम बायें हाथ में अग्नि-शिखा है जो बुराई का विनाश करने की प्रतीक है। दूसरा दाहिना हाथ अभय मुद्रा में है जो सतपथ पर चलने वाले मानवों को रक्षा का भरोसा देता है। दूसरा बाँया हाथ नृत्य की मुद्रा में स्वतंत्र रूप से ऊपर उठे पैर की ओर इशारा करता है। नृत्य की मुद्रा में दाहिना पैर एक राक्षस को दबाये है और बाँया पैर स्वतंत्र रूप से ऊपर उठा हुआ है।


Friday, September 12, 2025

 

वैजयंती माला

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

वैजयंती माला विष्णु भगवान को बहुत प्रिय है और श्री कृष्ण की प्रिय पाँच वस्तुओं(गाय, बाँसुरी, मोरपंख, माखन-मिश्री और वैजयंती माला) में से एक है। वैजयंती माला का शाब्दिक अर्थ है विजय दिलाने वाली माला।

वैजयंती के पत्ते हरे रंग के और एक मीटर तक लंबे होते हैं और दो इंच के लगभग चौड़े होते हैं। ये पत्ते सीधे जमीन से निकलते हैं इनमें कोई तना या टहनी नहीं होती। वैजयंती के पौधे में कोई फूल नहीं आता, एक बीज फली के साथ निकलता है। बीज में ही जुड़ा हुआ पराग होता है। ऊपर से पराग तोड़कर बीज प्राप्त किया जाता है जो एक मोती के समान चमकीला होता है। प्रारम्भ में यह हरे रंग का होता है पकने पर भूरे रंग का हो जाता है। वैजयंती बीज कमल गट्टा(कमल का बीज) के आकार का होता है। वैजयंती का पौधा कैना-लिली(केलई) से भिन्न होता है।

वैजयंती बीज की विशेषता है कि इसमें धागा डालने के लिये प्राकृतिक रूप से छेद बना होता है। वैजयंती माला को धारण करने के लिये सोमवार और शुक्रवार का दिन शुभ है।


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Wednesday, September 10, 2025


सर्दी में धुंध छँटी, गर्मी में धूल।

धूप धुली बारिश प्रखर हो गयी।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, September 7, 2025


छाया तो छाया है, छाया का अस्तित्व क्या?

जब तक साथ हो तुम, है वजूद मेरा।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Wednesday, September 3, 2025


सुनहरी यादें बीते कल की

सुनहले सपने फिर कल के।

तैरते आँखों में पल-प्रतिपल।

मानों सुबह-शाम के बीच

बैठें हों हम भरी धूप में।

 

        डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, September 1, 2025


कचनार

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

कचनार का वृक्ष सड़क किनारे या उपवनों में अधिकांशतः पाया जाता है। नवंबर से मार्च तक के महीनों में अपने गुलाबी व जामुनी रंगों के फूलों से लदा ये वृक्ष अपनी सुंदरता से सहज ही सबका मन मोह लेता है।

 

सन् 1880 ई. में हांगकांग के ब्रिटिश गवर्नर सर् हेनरी ब्लेक(वनस्पतिशास्त्री) ने अपने घर के पास समुद्र किनारे कचनार का वृक्ष पाया था। उन्हीं के सुझाये हुये नाम पर कचनार का वानस्पतिक नाम बहुनिया ब्लैकियाना पड़ गया। कचनार हांगकांग का राष्ट्रीय फूल है और इसे आर्किड ट्री के नाम से भी जाना जाता है। भारत में मुख्यतः कचनार के नाम से ही जाना जाता है। संस्कृत भाषा में कन्दला या कश्चनार कहते हैं। भारत में यह उत्तर से दक्षिण तक सभी जगह पाया जाता है।

 

कचनार के पेड़ की लंबाई 20 फीट से 40 फीट तक होती है। कचनार अपनी पत्तियों के आकार के कारण सहज ही पहचान में आ जाता है। पत्तियाँ गोलाकार होती हैं और अग्रभाग से दो भागों में बँटी होती हैं। मध्य रेखा से आपस में जुड़ी होती हैं। इसकी पत्तियों की तुलना ऊँट के खुर से भी की जाती है। कचनार के गुलाबी रंग के फूल के पेड़ों में जब फूल आने शुरू होते हैं तो अधिकांशतः पत्तियाँ झड़ जाती हैं। जामुनी रंग के कचनार के पेड़ों में प्रायः फूलों के साथ पत्तियाँ भी रहती हैं। कचनार के फूलों में पाँच पँखुरियां होती हैं और फूलों से भीनी सुगंध आती है।

कचनार के पेड़ भूस्खलन को भी रोकते हैं। कचनार के फूल की कली देखने में भी सुंदर होती है और खाने में स्वादिष्ट भी। कचनार के वृक्ष अनेक औषधि के काम आते हैं व इससे गोंद भी निकलता है। कचनार की पत्तियाँ दुधारू पशुओं के लिये अच्छा आहार होती हैं।

Friday, August 29, 2025


 कमल-पुष्प

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

कमल हमारा राष्ट्रीय पुष्प है. कमल का फूल देखने में मनमोहक व अधिकांशतः गुलाबी रंग का अति सुन्दर फूल होता है. हिन्दी साहित्य में प्रारम्भिक काल से कवि नायक या नायिका के सुन्दर नयनों की, अधरों की, करों की, पदों की उपमा कमल से देते रहे हैं. भक्तिकाल के कवि सूर और तुलसी ने भी अपने-अपने आराध्य देव कृष्ण और राम के रूप का वर्णन करते समय कमल की उपमा का प्रयोग किया है.

उत्तर प्रदेश में काशीपुर में द्रोणासागर नामक स्थान पर ग्रीष्म काल में कमल-सरोवर का सौन्दर्य देखते ही बनता है, जब द्रोणासागर में कमल के फूल अपने पूर्ण यौवन के साथ खिले होते हैं. इस समय मन्दिरों में भगवान की मूर्तियों पर प्रायः कमल के फूल ही चढ़े हुये देखने को मिलते हैं.

कमल के फूल सुन्दर होने के साथ-साथ बहुपयोगी भी होते हैं. कमल के फूलों के तने जहाँ कमल ककड़ी के नाम से जाने जाते हैं वहीं कमल के फल भी खाने में स्वादिष्ट होते हैं. फलों के अन्दर के बीज कमल गट्टे कहलाते हैं जो पककर काले और भूरे रंग के हो जाते हैं. एक तरफ कमल गट्टे भगवान शिव की पूजा करते समय शिव-लिंग पर चढ़ाये जाते हैं तो दूसरी तरफ कमल गट्टों से ही मखाने बनाये जाते हैं.

 

 

  

Thursday, August 28, 2025


चिलगोजा

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

चिलगोजा चीड़ या सनोबर जाति के पेड़ों का छोटा, लंबोतरा फल है. चिलगोजे के पेड़ समुद्र से 2000 फुट की ऊँचाई वाले पहाड़ी इलाकों में होते हैं. इसमें चीड़ की तरह लक्कड़नुमा फल लगते हैं. यह बहुत कड़ा होता है. मार्च, अप्रैल में आकार लेकर सितम्बर, अक्टूबर तक पक जाता है. यह बेहद कड़ा होता है. इसे तोड़कर गिरियाँ बाहर निकाली जाती हैं. ये गिरियाँ भी मजबूत भूरे आवरण से ढ़की होती हैं. जिसे दाँत से काटकर हटाया जाता है. अंदर मुलायम नरम तेलयुक्त सफेद गिरी होती है. यह बहुत स्वादिष्ट होती है और मेवों में गिनी जाती है. 

Wednesday, August 27, 2025


27 अगस्त, 2025, भादों मास शक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि बुधवार

श्री गणेश जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें 






Tuesday, August 26, 2025


दो तटों को सींचती, बहती अविरल नदी।

कितनी प्यासी थी, कोई सागर से पूछो।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, August 23, 2025

पुत्र हो या पुत्री, जो सम्हाले विरासत 

 वही है सच्चा वारिस।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, August 21, 2025


 हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी,

जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते।


            नित्यानंद तुषार

Wednesday, August 20, 2025

 


हरिशंकर परसाई

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 22 अगस्त, सन् 1924 ई.

पुण्य-तिथि- 10 अगस्त, सन् 1995 ई.

 

हरिशंकर परसाई मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. इन्होंने व्यंग्य को हिन्दी साहित्य में एक विधा के रूप में मान्यता दिलाई. इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवम् शोषण पर करारे व्यंग्य लिखे. यद्यपि प्रारम्भ में कविता, कहानी, उपन्यास, लेख, आदि लिखे, लेकिन धीरे-धीरे व्यंग्य-विधा की ओर अधिक ध्यान दिया और एक व्यंग्यकार के रूप में प्रसिद्ध हुये. इनकी व्यंग्य रचनायें पाठक के मन में हास्य ही उत्पन्न नहीं करतीं वरन् सामाजिक विसंगतियों से रूबरू भी कराती हैं. इन्होंने सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन मूल्यों का उपहास करते हुये सदैव विवेक सम्मत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया.

 

हरिशंकर परसाई जी जबलपुर से प्रकाशित पत्र देशबन्धु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे. शुरू में हल्के-फुल्के मनोरंजन के प्रश्न ही पूछे जाते थे किन्तु धीरे-धीरे परसाई जी ने पाठकों को सामाजिक व राजनीति के गम्भीर विषयों की ओर प्रवृत्त किया. देश के कोने-कोने से जागरूक व उत्सुक पाठक परसाई जी से प्रश्न पूछते थे और परसाई जी प्रश्न की प्रकृति के अनुसार सूचनात्मक, विश्लेषणात्मक, तुलनात्मक, व्यंग्यात्मक शैलियों में उत्तर देते थे. इनको विकलांग श्रद्धा के दौर(लेख संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

 

व्यंग्य का उदाहरण-

सदाचार भला किसे प्रिय नहीं होता. सदाचार का तावीज बाँधते वे भी हैं जो सचमुच आचारी होते हैं और वे भी जो बाहर से एक होकर भी भीतर से सदा चार रहते हैं.

               हरिशंकर परसाई

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सामाजिक विसंगतियों और राजनैतिक भ्रष्टाचार के विरोध में अपने मन में धधकती आग की अभिव्यक्ति की है-

 

बाँध बाती में ह्रदय की आग चुप जलता रहे जो

और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो

जगत को उस दीप का सीमित निबल जीवन सुहाता

यह धधकता रूप मेरा विश्व में भय ही जगाता

प्रलय की ज्वाला लिये हूँ, दीप बन कैसे जलूँ मैं?

 

                                                  हरिशंकर परसाई

 

 

Tuesday, August 19, 2025

 

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 19 अगस्त, सन् 1907 ई., उत्तर प्रदेश

पुण्य-तिथि- 19 मई, सन् 1979 ई., दिल्ली

 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के पिता श्री अनमोल द्विवेदी और माँ श्रीमती ज्योतिष्मती थीं. इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिये प्रसिद्ध था. सन् 1930 ई. में इन्होंने ज्योतिष विद्या में आचार्य की उपाधि प्राप्त की. इसी वर्ष शांति निकेतन में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया. यहाँ गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर और आचार्य क्षितिमोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन अध्ययन किया और स्वतंत्र लेखन की ओर प्रवृत्त हुये. ये हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी, बँगला और संस्कृत भाषाओं के भी विद्वान थे.

 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का व्यक्तित्व प्रभावशाली और स्वभाव सरल था. इन्होंने संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष और साहित्य विषयों में निबंध लिखे. इन्होंने अधिकांशतः विचारात्मक और आलोचनात्मक निबंध लिखे हैं. इनकी भाषा भाव और विषय के अनुरूप व्यवहारिक व परिमार्जित है. आलोचना के क्षेत्र में इनका महत्वपूर्ण स्थान है. इन्होंने सूर, कबीर और तुलसीदास पर जो विद्वतापूर्ण आलोचनायें लिखीं वे हिन्दी में पहले नहीं लिखी गयीं. इन्होंने सूर साहित्य, हिन्दी साहित्य की भूमिका, कबीर, लालित्य तत्व, कालिदास की लालित्य योजना, कुटज, हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास, आदि अनेक ग्रंथों की रचना की.

 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक व्याकरण ग्रंथ की भी रचना की थी. इनके द्वारा लिखित प्रसिद्ध उपन्यास हैं- बाणभट्ट की आत्म कथा, चारू चंद्र लेख, अनामदास का पोथा और पुनर्नवा. बाणभट्ट की आत्म कथा एक ऐतिहासिक उपन्यास है- इसमें हर्षकालीन सभ्यता और संस्कृति का वर्णन है. इसमें लेखक ने अतीतकालीन चेतना-प्रवाह को वर्तमान जीवन धारा से जोड़ा है. पुनर्नवा में समुद्रगुप्त के समय को उपन्यास का विषय बनाया है. चारू चंद्र लेख में गहरवार नरेश जयचंद की पराजय के बाद का समय चित्रित हुआ है. ऐतिहासिक काल पर आधारित होने पर भी इनमें ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रह नहीं है वरन् इतिहास की घटनाओं और तथ्यों की अपेक्षा साहित्यिक व सांस्कृतिक साम्रगी को कथानक का आधार बनाया है. अनामदास का पोथा में उपनिषदों में वर्णित कथा है. इनके उपन्यास इनकी मौलिक प्रतिभा व कल्पना द्वारा लिखे गये हैं.

 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी को लखनऊ विश्वविद्यालय ने डी. लिट् की उपाधि से सम्मानित किया था. इनको सन् 1957 ई. में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. सन् 1973 ई. में आलोक पर्व(निबंध संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.