Friday, August 29, 2025


 कमल-पुष्प

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

कमल हमारा राष्ट्रीय पुष्प है. कमल का फूल देखने में मनमोहक व अधिकांशतः गुलाबी रंग का अति सुन्दर फूल होता है. हिन्दी साहित्य में प्रारम्भिक काल से कवि नायक या नायिका के सुन्दर नयनों की, अधरों की, करों की, पदों की उपमा कमल से देते रहे हैं. भक्तिकाल के कवि सूर और तुलसी ने भी अपने-अपने आराध्य देव कृष्ण और राम के रूप का वर्णन करते समय कमल की उपमा का प्रयोग किया है.

उत्तर प्रदेश में काशीपुर में द्रोणासागर नामक स्थान पर ग्रीष्म काल में कमल-सरोवर का सौन्दर्य देखते ही बनता है, जब द्रोणासागर में कमल के फूल अपने पूर्ण यौवन के साथ खिले होते हैं. इस समय मन्दिरों में भगवान की मूर्तियों पर प्रायः कमल के फूल ही चढ़े हुये देखने को मिलते हैं.

कमल के फूल सुन्दर होने के साथ-साथ बहुपयोगी भी होते हैं. कमल के फूलों के तने जहाँ कमल ककड़ी के नाम से जाने जाते हैं वहीं कमल के फल भी खाने में स्वादिष्ट होते हैं. फलों के अन्दर के बीज कमल गट्टे कहलाते हैं जो पककर काले और भूरे रंग के हो जाते हैं. एक तरफ कमल गट्टे भगवान शिव की पूजा करते समय शिव-लिंग पर चढ़ाये जाते हैं तो दूसरी तरफ कमल गट्टों से ही मखाने बनाये जाते हैं.

 

 

  

Thursday, August 28, 2025


चिलगोजा

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

चिलगोजा चीड़ या सनोबर जाति के पेड़ों का छोटा, लंबोतरा फल है. चिलगोजे के पेड़ समुद्र से 2000 फुट की ऊँचाई वाले पहाड़ी इलाकों में होते हैं. इसमें चीड़ की तरह लक्कड़नुमा फल लगते हैं. यह बहुत कड़ा होता है. मार्च, अप्रैल में आकार लेकर सितम्बर, अक्टूबर तक पक जाता है. यह बेहद कड़ा होता है. इसे तोड़कर गिरियाँ बाहर निकाली जाती हैं. ये गिरियाँ भी मजबूत भूरे आवरण से ढ़की होती हैं. जिसे दाँत से काटकर हटाया जाता है. अंदर मुलायम नरम तेलयुक्त सफेद गिरी होती है. यह बहुत स्वादिष्ट होती है और मेवों में गिनी जाती है. 

Wednesday, August 27, 2025


27 अगस्त, 2025, भादों मास शक्ल पक्ष चतुर्थी तिथि बुधवार

श्री गणेश जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें 






Tuesday, August 26, 2025


दो तटों को सींचती, बहती अविरल नदी।

कितनी प्यासी थी, कोई सागर से पूछो।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, August 23, 2025

पुत्र हो या पुत्री, जो सम्हाले विरासत 

 वही है सच्चा वारिस।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, August 21, 2025


 हकीकत में उन्हें पहचान अवसर की नहीं कुछ भी,

जिन्होंने ये कहा अक्सर, हमें अवसर नहीं मिलते।


            नित्यानंद तुषार

Wednesday, August 20, 2025

 


हरिशंकर परसाई

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 22 अगस्त, सन् 1924 ई.

पुण्य-तिथि- 10 अगस्त, सन् 1995 ई.

 

हरिशंकर परसाई मध्य प्रदेश के रहने वाले थे. इन्होंने व्यंग्य को हिन्दी साहित्य में एक विधा के रूप में मान्यता दिलाई. इन्होंने सामाजिक और राजनीतिक जीवन में व्याप्त भ्रष्टाचार एवम् शोषण पर करारे व्यंग्य लिखे. यद्यपि प्रारम्भ में कविता, कहानी, उपन्यास, लेख, आदि लिखे, लेकिन धीरे-धीरे व्यंग्य-विधा की ओर अधिक ध्यान दिया और एक व्यंग्यकार के रूप में प्रसिद्ध हुये. इनकी व्यंग्य रचनायें पाठक के मन में हास्य ही उत्पन्न नहीं करतीं वरन् सामाजिक विसंगतियों से रूबरू भी कराती हैं. इन्होंने सामाजिक पाखंड और रूढ़िवादी जीवन मूल्यों का उपहास करते हुये सदैव विवेक सम्मत और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को अपनाया.

 

हरिशंकर परसाई जी जबलपुर से प्रकाशित पत्र देशबन्धु में पाठकों के प्रश्नों के उत्तर देते थे. शुरू में हल्के-फुल्के मनोरंजन के प्रश्न ही पूछे जाते थे किन्तु धीरे-धीरे परसाई जी ने पाठकों को सामाजिक व राजनीति के गम्भीर विषयों की ओर प्रवृत्त किया. देश के कोने-कोने से जागरूक व उत्सुक पाठक परसाई जी से प्रश्न पूछते थे और परसाई जी प्रश्न की प्रकृति के अनुसार सूचनात्मक, विश्लेषणात्मक, तुलनात्मक, व्यंग्यात्मक शैलियों में उत्तर देते थे. इनको विकलांग श्रद्धा के दौर(लेख संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

 

व्यंग्य का उदाहरण-

सदाचार भला किसे प्रिय नहीं होता. सदाचार का तावीज बाँधते वे भी हैं जो सचमुच आचारी होते हैं और वे भी जो बाहर से एक होकर भी भीतर से सदा चार रहते हैं.

               हरिशंकर परसाई

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने सामाजिक विसंगतियों और राजनैतिक भ्रष्टाचार के विरोध में अपने मन में धधकती आग की अभिव्यक्ति की है-

 

बाँध बाती में ह्रदय की आग चुप जलता रहे जो

और तम से हारकर चुपचाप सिर धुनता रहे जो

जगत को उस दीप का सीमित निबल जीवन सुहाता

यह धधकता रूप मेरा विश्व में भय ही जगाता

प्रलय की ज्वाला लिये हूँ, दीप बन कैसे जलूँ मैं?

 

                                                  हरिशंकर परसाई

 

 

Tuesday, August 19, 2025

 

आचार्य हजारीप्रसाद द्विवेदी

 

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

जन्म-तिथि- 19 अगस्त, सन् 1907 ई., उत्तर प्रदेश

पुण्य-तिथि- 19 मई, सन् 1979 ई., दिल्ली

 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी के पिता श्री अनमोल द्विवेदी और माँ श्रीमती ज्योतिष्मती थीं. इनका परिवार ज्योतिष विद्या के लिये प्रसिद्ध था. सन् 1930 ई. में इन्होंने ज्योतिष विद्या में आचार्य की उपाधि प्राप्त की. इसी वर्ष शांति निकेतन में अध्यापन कार्य प्रारंभ किया. यहाँ गुरूदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर और आचार्य क्षितिमोहन सेन के प्रभाव से साहित्य का गहन अध्ययन किया और स्वतंत्र लेखन की ओर प्रवृत्त हुये. ये हिंदी के साथ-साथ अंग्रेजी, बँगला और संस्कृत भाषाओं के भी विद्वान थे.

 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी का व्यक्तित्व प्रभावशाली और स्वभाव सरल था. इन्होंने संस्कृति, इतिहास, ज्योतिष और साहित्य विषयों में निबंध लिखे. इन्होंने अधिकांशतः विचारात्मक और आलोचनात्मक निबंध लिखे हैं. इनकी भाषा भाव और विषय के अनुरूप व्यवहारिक व परिमार्जित है. आलोचना के क्षेत्र में इनका महत्वपूर्ण स्थान है. इन्होंने सूर, कबीर और तुलसीदास पर जो विद्वतापूर्ण आलोचनायें लिखीं वे हिन्दी में पहले नहीं लिखी गयीं. इन्होंने सूर साहित्य, हिन्दी साहित्य की भूमिका, कबीर, लालित्य तत्व, कालिदास की लालित्य योजना, कुटज, हिन्दी साहित्य का उद्भव और विकास, आदि अनेक ग्रंथों की रचना की.

 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी ने हिन्दी भाषा के ऐतिहासिक व्याकरण ग्रंथ की भी रचना की थी. इनके द्वारा लिखित प्रसिद्ध उपन्यास हैं- बाणभट्ट की आत्म कथा, चारू चंद्र लेख, अनामदास का पोथा और पुनर्नवा. बाणभट्ट की आत्म कथा एक ऐतिहासिक उपन्यास है- इसमें हर्षकालीन सभ्यता और संस्कृति का वर्णन है. इसमें लेखक ने अतीतकालीन चेतना-प्रवाह को वर्तमान जीवन धारा से जोड़ा है. पुनर्नवा में समुद्रगुप्त के समय को उपन्यास का विषय बनाया है. चारू चंद्र लेख में गहरवार नरेश जयचंद की पराजय के बाद का समय चित्रित हुआ है. ऐतिहासिक काल पर आधारित होने पर भी इनमें ऐतिहासिक तथ्यों का संग्रह नहीं है वरन् इतिहास की घटनाओं और तथ्यों की अपेक्षा साहित्यिक व सांस्कृतिक साम्रगी को कथानक का आधार बनाया है. अनामदास का पोथा में उपनिषदों में वर्णित कथा है. इनके उपन्यास इनकी मौलिक प्रतिभा व कल्पना द्वारा लिखे गये हैं.

 

हजारी प्रसाद द्विवेदी जी को लखनऊ विश्वविद्यालय ने डी. लिट् की उपाधि से सम्मानित किया था. इनको सन् 1957 ई. में पद्म भूषण से सम्मानित किया गया. सन् 1973 ई. में आलोक पर्व(निबंध संग्रह) के लिये साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित किया गया.

 

 

 

Monday, August 18, 2025


हर रोज हम एक गुनाह करते हैं।

तुम्हें भूलने को याद करते हैं।।


डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, August 17, 2025


पास बैठे रहो, चाहे रूठे ही रहो।

मुस्का के मना लेंगे तुम्हें।

प्यार से, मनुहार से मना लेंगे तुम्हें।

फिर भी अगर ना माने तो

खुद रूठ कर मना लेंगे तुम्हें।

 

                   डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Saturday, August 16, 2025


16 अगस्त, 2025 भाद्र मास कृष्ण पक्ष अष्टमी तिथि श्री कृष्ण जन्माष्टमी

की

हार्दिक शुभकामनायें


 

Friday, August 15, 2025


 


15 अगस्त, 2025 स्वतंत्रता दिवस की हार्दिक शुभकामनायें


Thursday, August 14, 2025

 

 अतिआधुनिक काल में हिन्दी काव्य में राष्ट्रीय भावना की अभिव्यक्ति-

                    डॉ. मंजूश्री 


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने अपनी राष्ट्रीय भावना को अभिव्यक्त किया है-

सापेक्ष विश्व निर्मित है

कल्पना कला के लेखे।

यह भूमि दूसरा शशि है

कोई शशि से जा देखे।

                  जगदीश गुप्त

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने वीर सैनिकों के मनोभाव को अभिव्यक्त किया है-

प्राण रहते

तो न देंगे

भूमि तिल-भर देश की

फिर भुजाओं को नये

संकल्प रक्षाबंध दो।

           शैलेश मटियानी

प्रस्तुत पंक्तियाँ कवि ने उन वीर सैनिकों के सम्मान में कही हैं जिन्होंने आमने-सामने के युद्ध में विजय हासिल कर अपनी शौर्य गाथायें लिखीं-

 

जिन्होंने बर्फ में भी शौर्य की चिंगारियाँ बो दीं

पहाड़ी चोटियों पर भी अभय की क्यारियाँ बो दीं।

भगाकर दूर सारे गीदड़ों, सारे श्रृंगालों को

जिन्होंने सिंह वाले युद्ध में खुद्दारियाँ बो दीं।

 

अहर्निश जो बढ़े आगे विजय-अभियान की खातिर

उन्हें शत्-शत् नमन मेरा, उन्हें शत्-शत् नमन मेरा।

                                          उर्मिलेश शंखधार

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि अपनी राष्ट्रीयता की खातिर आम आदमी को नवीन क्रांति के लिये उत्साहित कर रहा है-

उठें कि हम जो सो रहे हैं अब उन्हें झिंझोड़ दें

नवीन क्रांति दें, स्वदेश को नवीन मोड़ दें

समस्त भ्रष्ट-दुष्ट मालियों का साथ छोड़ दें

स्वदेश के चरित्र को पवित्रता से जोड़ दें

न छोड़ें मानवीयता

न भूलें भारतीयता

विवेक से अनेकता में एकता बनी रहे।

         उर्मिलेश शंखधार

 

स्वतन्त्रता आन्दोलन के समय खादी पहनना स्वतन्त्रता आन्दोलनकारियों की आवश्यकता थी. स्वतन्त्रता आन्दोलनकारियों ने विदेशी रेशमी वस्त्रों का वहिष्कार किया और देश में बने हुये सूती खादी के वस्त्रों को बढ़ावा दिया. लेकिन आजकल देश में ही विविध भाँति के रेशमी वस्त्र तैय्यार हो रहे हैं तब नेताओं को केवल दिखावे के लिये ही खादी के वस्त्र धारण करने होते हैं. इसी भाव की अभिव्यक्ति प्रस्तुत पंक्तियों में हुई है-

चुभी थी फाँस बनकर गोरी आँखों में कभी खादी

न होने पाए इसकी आज बदनामी बचा लेना।

                        राणाप्रताप सिंह

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि जनता से अनुरोध कर रहा है कि जात-पात को भूलकर सही व्यक्तियों के हाथ में सत्ता सौंपों ताकि देश के साथ-साथ तुम्हारा भी हित हो-

बूँद-बूँद सागर बने, वोट-वोट सरकार।

सही व्यक्ति जितवाइये, जात-पात बेकार।

                             कुलभूषण व्यास

 

मतदान होते रहे। मैं अपनी सम्मोहित बुद्धि के नीचे

उसी लोकनायक को बार-बार चुनता रहा,

जिसके पास हर शंका और सवाल का एक ही जबाब था

यानि की कोट के बटन-होल में

महकता फूल एक गुलाब का।

                     धूमिल

प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने व्यक्ति को राजशक्ति की संहारक शक्ति के प्रति सचेत किया है कि वह कोई भी सौदा करे पर व्यक्ति-स्वातंत्र्य का सौदा कदापि न करे. वही तत्व सबसे ज्यादा कीमती है. राजशक्ति तो यही चाहती है कि-

प्रत्येक व्यक्ति

बंद ताले की भाँति कर दिया जाये

जिसकी ताली

राजकोष में जमा कर दी गई हो।

                   नरेश मेहता

 

अकेला दुर्योधन ही,

दुर्विनीत नहीं था अर्जुन,

व्यवस्था का मुकुट धारण करते ही

किसी भी व्यक्ति का

मनुष्यत्व नष्ट हो जाता है

                   नरेश मेहता

आपातकाल के समय में जब प्रेस पर भी पाबंदी लगा दी गयी थी, उसी संवेदना की अभिव्यक्ति प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने की है-

उफ! डॉक्टर के मना करने पर भी

बन्द नहीं कर पाया हूँ-सोचना।

सुना है अमन चैन के लिये सरकार ने

सोचने पर लगा दिया है- प्रतिबन्ध।

                           धूमिल

आपातकाल के बाद हुये आम चुनावों में जनता दल की विजय का वर्णन कवि ने एक जन प्रचलित कहानी के माध्यम से किया है-

दम लगाया हर एक कबूतर ने

वरना कोई उड़ा नहीं होता।

                               डॉ. महेन्द्र कुमार अग्रवाल

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