Tuesday, October 14, 2025


संघर्षमय जीवन

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

संघर्षों की गाथा पूछो,

नदी की मीठी धारा से।

पग-पग पे सहती आयी,

चट्टानों की चोटें।

 

संघर्षों की गाथा पूछो,

मुस्काती कली से।

पली, बढ़ी, खिली,

काँटों भरी डाली संग।

 

संघर्षों की गाथा पूछो,

देदीप्यमान दीप से।

अड़िग अस्तित्व बनाये,

लड़ रहा अंधकार से।

 

अमृतम, सुगंधमय,

ज्ञानमय बनना है तो

नदी, कली, दीप सा

जीवन जीना सीखो।


  

Monday, October 13, 2025

 

अलौकिक प्रेम......

सिय-राम का प्रेम अलौकिक

धनुष-यज्ञ शाला में देख अधीर सिय को

नयनों से ही करते हैं आश्वस्त श्री राम।

क्षण भर में कर धनुष भंग, जानकी की ही नहीं,

हरते हैं पीड़ा जनक परिवार की श्री राम।

पर राम!

राम! सच-सच बतलाना

यदि तुमसे पहले कोई और

राजकुमार धनुष की प्रत्यंचा चढ़ा लेता।

तो तुम क्या करते?

तुम तो पुष्प-वाटिका में धनुष-यज्ञ से पहले ही

सीता को ह्रदय समर्पित कर चुके थे।

सीता तो राजा जनक के प्रण से बँधी थीं;

विवाह उसी से होना था जो यज्ञशाला में रखे

प्राचीन शिवधनुष पर प्रत्यंचा चढ़ायेगा।

राम सच-सच बतलाना

तो तुम क्या करते?

तुम कैसे सीता के प्रति अपना एकनिष्ठ प्रेम

निभाते!

            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Sunday, October 12, 2025

 

पृथ्वीराज की कलम से

 

बैर बीज बो दिये परिवारों के बीच

नाना ने देकर सिंहासन दिल्ली का।

क्यों जयचंद देशद्रोही बनते, गर

मिलता उन्हें राजपद दिल्ली का।

क्यों आक्रमणकारी का वो साथ देते।

हर संभव प्रयास वो करते दिल्ली की रक्षा का।

और मैं भी सहर्ष साथ देता उनका।

संयोगिता भी सहज प्राप्त होती मुझे.

अजमेर ही बहुत था हम दोनों के लिये।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, October 11, 2025

 

पुरूरवा की कलम से

 

देवलोक की परी हो तुम

जानता हूँ, इसी से

चाहकर भी कभी

पाने की कोशिश नहीं की।

 

मुस्कानों के फूल

खिलाता रहा

और गंध की स्याही में

डुबो-डुबो कर लिखता रहा।

 

भेजता रहा संदेशे

पवन के हाथ।

गंध तुम्हें पसन्द थी

आखिर तुम बेचैन हो गयीं

पाने को उसी गंध को।

 

प्यार मेरा सच्चा था

इसी से मजबूर हो गयीं

आने को भूलोक पर।

 

 

उर्वशी! सच कहूँ

तुम्हें पाकर

जीवन मेरा

सार्थक हुआ है

बरसों की तपस्या का फल

आज मुझे मिला है।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग


Friday, October 10, 2025


जहाँ कृष्ण ने रची लीलायें।

राधा-गोपी संग रास रचाये।।

पावन धरा मथुरा-वृन्दावन।

कण-कण में हैं कृष्ण बसे।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, October 8, 2025


चाहे-अनचाहे मोड़ों ने, जीवन का दिया नया रूप।

जैसे सीधा-सपाट कागज कोई, बन गया हो नाव।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, October 7, 2025


अँधेरे कब रूके हैं उजालों के आगे।

निराशायें कब रूकी हैं आशाओं के आगे।

आकाश कब दूर है उड़ानों के आगे।

मंजिल कब दूर है चाहतों के आगे।।

 

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, October 6, 2025


आराधना हम तेरी, दिन-रात करते हैं।

नैनों के दीप जलाकर, इंतजार करते हैं।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, October 5, 2025


मेरे मिलन में तुम हो प्रिये! मेरे विरह में भी तुम।

मेरी जीत में तुम हो प्रिये! मेरी हार में भी तुम।

मेरी मुस्कान में तुम हो प्रिये! मेरे अश्रु में भी तुम।

और मेरी साँसों की लय में भी तुम ही तुम हो प्रिये!

 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, October 4, 2025

 

क्यों किसी की राह के रोड़े बने हम,

बन सकें तो मील के पत्थर बनें हम।

किसी को पर हम दे नहीं सकते

दे सकें तो होसलों की उड़ान दे हम।

 

        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, October 3, 2025

 


प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने गंगा जी के अवतरण की संक्षिप्त कथा का वर्णन किया है- अंशुमान और दिलीप के तप करने पर भी गंगा जी धरती पर नहीं आई. जब भगीरथ ने तप किया तब गंगा जी ने दर्शन दिये-

अंशुमान सुनि राज बिहाइ। गंगा हेतु कियो तप जाइ।

यही विधि दिलीप तप कीन्हो। पै गंगा जू बरनहिं दीन्हों।

बहुरि भगीरथ तप बहु कियौ। तब गंगा जू दरसन दियौ।

                          सूरदास

 

Thursday, October 2, 2025



 

2 अक्टूबर, 2025 अश्विन मास शुक्ल पक्ष दशमी तिथि विजय पर्व दशहरा 

की

हार्दिक शुभकामनायें

Wednesday, October 1, 2025


विजयी होके राम ने, किया दशानन अंत

देने को आशीष थे, संग में सारे संत।

                                 डॉ. सरस्वती माथुर