Friday, July 31, 2015

सुबह का करें स्वागत
सूरज की किरणों से.
करें श्रृंगार कुसुमों से
औ' वंदन कलरव से.

     डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, July 29, 2015

टूटे नीड़
भीगे पंख
गुमसुम पक्षी
कैसी बारिश?

         डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 26, 2015

चंदन हम
काटोगे तो भी हम
देंगे सुगंध.

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Thursday, July 23, 2015

कविता बिना भाव
व्यंग्य बिना धार
गीत बिना लय
शोभा नहीं देते.

    डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Wednesday, July 22, 2015

कुछ तो तैरेंगी
कागजी नावें!
चाहतें बच्चों ने
उतारीं पानी पे.
 
 डॉ0 मंजूश्री गर्ग

Sunday, July 19, 2015

शब्द
प्रकृति के कण-कण में लय है, ध्वनि है. पत्ते भी हिलते हैं तो सरगम सी बजती है, नदी का जल कल-कल की ध्वनि करता है, झरनों का जल झर-झर कर बहता है. हर पशु-पक्षी की अपनी बोली है. इन्हीं ध्वनियों के अनुकरण से कुछ शब्द निर्मित होते हैं, जो ध्वनि अनुकरण से निर्मित शब्द कहलाते हैं.

                                                                                                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग
 

Saturday, July 18, 2015

हर रिश्ते को थोड़ी परवरिश चाहिये
थोड़ी     धूप, थोड़ी   छाँव   चाहिये.
स्नेह का जल, प्यार के छींटे  चाहिये
अपनेपन  की  थोड़ी  हवा  चाहिये.
    --------------  डॉ0 मंजूश्री गर्ग