पीताभ गुच्छ
झमरों से झूमते
अमलतास।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
लाल वितान
छत्र सा सजे द्वार
गुलमोहर।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
पासा पलटा
बाप से बड़ा होते
बेटे का कद।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
ग्रीष्म ऋतु में
लू के थपेड़े सह
तपती धरा।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
लालिमा लिये
साँझ का सूरज औ'
ज्यादा दमके।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
रंगों पे रंग
फूलों पे तितलियाँ
उड़ती हुई।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
सन्ध्या दीप सा
जलना पल-पल
उजाले लिये।
डॉ. मंजूश्री गर्ग