गंध बनकर हवा में बिखर जायें हम
ओस बनकर पंखुरियों से झर जायें हम
तू न देखे हमें बाग में भी तो क्या
तेरा आँगन तो खुशबू से भर जायें हम।
गुलाब खण्डेलवाल
No comments:
Post a Comment