Thursday, June 12, 2025


कृष्ण! तुम्हारे प्यार में, कृष्णमय हो गयी मैं।

ढूँढ़ती हूँ खुद को खुद में, पाती हूँ तुमको ही मैं।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, June 11, 2025


चाँद मुस्कुराये,

तारे झिलमिलायें,

रात में तुम आये,

मन भी गुनगनाये।

           डॉ. मंजूश्री गर्ग

  

Tuesday, June 10, 2025


आज कहाँ!

आज में

जीते हैं हम।

कल की

यादों में

जीते हैं या

कल के

सपनों में

जीते हैं हम।

 

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, June 9, 2025


बूँद मैं, समुद्र तुम।

कण मैं, पर्वत तुम।

पाँखुरी मैं, फूल तुम।

अंश हूँ, तुम्हारा ही प्रभु मैं।।

                    डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, June 8, 2025

 

व्यास सम्मान

डॉ. मंजूश्री गर्ग

व्यास सम्मान सन् 1991 ई. में के. के. फाउंडेशन द्वारा हिंदी साहित्य में किये गये योगदान के लिये साहित्यकारों को देना प्रारम्भ किया गया था। व्यास सम्मान की विशेषतायें हैं-

1.      व्यास सम्मान में प्रशस्ति पत्र, स्मृति चिह्न और सम्मान राशि चार लाख रूपये-(सम्मान राशि फाउंडेशन द्वारा निर्धारित की जाती है।)

2.      व्यास सम्मान पिछले दस वर्षों के भीतर प्रकाशित हिन्दी की कोई भी साहित्यिक कृति को दिया जाता है।

    3. समिति की राय में यदि किसी वर्ष कोई भी कृति व्यास सम्मान के लिये अपेक्षित स्तर

की न हो तो उस वर्ष पुरस्कार न देने का भी प्रावधान है, जैसा कि सन् 2007 ई. में    किसी भी साहित्यकार को पुरस्कार नहीं दिया गया।

4.कृति सृजनात्मक साहित्य के अतिरिक्त अन्य विधाओं जैसे- आत्मकथा, ललित निबन्ध, समीक्षा व आलोचना साहित्य और भाषा का इतिहास, आदि की भी हो सकती है।

5. व्यास सम्मान की विशिष्टता है कि इसमें साहित्यकार को केंद्र में न रखकर साहित्यिक कृति को महत्व दिया जाता है।

6. व्यास सम्मान मरणोपरांत नहीं दिया जाता है लेकिन यदि चयन समिति में किसी कृति पर विचार विमर्श शुरू हो गया है तो प्रस्तावित कृति के लेखक की मृत्यु होने पर विचार किया जा सकता है।

7.भविष्य में सम्मानित लेखक की किसी अन्य कृति पर विचार नहीं किया जाता है।

 

साहित्यकार               कृति                    वर्ष

1.      रामविलास शर्मा     भारत के प्राचीन भाषा परिवार       1991

और हिन्दी

2.      डॉ. शिवप्रसाद सिंह   नीला चाँद(उपन्यास)              1992

3.      गिरिजाकुमार माथुर   मैं वक्त के सामने हूं(काव्य-संग्रह)   1993

4.      धर्मवीर भारती       सपना अभी भी(काव्य-संग्रह)       1994 

5.      कुँवर नारायण       कोई दूसरा नहीं(काव्य-संग्रह)       1995

6.      प्रो. राम स्वरूप चतुर्वेदी     हिन्दी साहित्य और         1996

संवेदना का विकास

7.      केदारनाथ सिंह      उत्तर कबीर और अन्य कवितायें     1997

8.      गोविन्द मिश्र        पाँच आँगनों वाला घर(उपन्यास)    1998

9.      श्री लाल शुक्ल      बिसरामपुर का संत(उपन्यास)      1999

10.  गिरिराज किशोर     पहला गिरमिटिया(उपन्यास)        2000

11.  रमेश चंद्र शाह       आलोचना का पक्ष                2001

12.  कैलाश बाजपेयी      पृथ्वी का कृष्ण पक्ष(प्रबन्ध काव्य)  2002

13.  चित्रा मुद्गल        आँवा(उपन्यास)                  2003

14.  मृदुला गर्ग          कठगुलाब(उपन्यास)              2004

15.  चंद्रकांता            कथा सतिसार(उपन्यास)           2005

16.  परमानंद श्रीवास्तव   कविता का यथार्थ                2006

17.  मन्नू भंडारी         एक कहानी यह भी(आत्म कथा)    2008

18.  अमरकांत          इन्हीं हथियारों से                2009

19.  विश्वनाथ प्रसाद तिवारी     फिर भी कुछ रह जायेंगे     2010

20.  रामदरश मिश्र       आम के पत्ते(काव्य-संग्रह)          2011

21.  नरेन्द्र कोहली       न भूतो न भविष्यति(उपन्यास)     2012

22.  विश्वनाथ त्रिपाठी     व्योमकेश दरवेश(संस्मरण)         2013

23.  कमल किशोर गोयनका      प्रेमचंद्र की कहनियों का     2014

काल क्रमानुसार अध्ययन

24.  डॉ. सुनीता जैन            क्षमा(काव्य-संग्रह)          2015

25.  सुरेन्द्र वर्मा         काटना शमी का वृक्ष(उपन्यास)     2016

पद्मपंखुरी की धार से

26.  ममता कालिया      दुक्खम-सुक्खम(उपन्यास)          2017

27.  लीलाधर जगूड़ी      जितने लोग उतने प्रेम       2018

28.  नासिरा शर्मा        कागज की नाव            2019

29.  शरद गगारे         पाटलिपुत्र की साम्राज्ञी       2020

30.  असगर वजाहत      महावाली(नाटक)           2021

31.  ज्ञान चतुर्वेदी        पागलखाना(उपन्यास)       2022

32.  पुष्पा भारती        यादें, यादें और यादें(संस्मरण)2023

33.  सुर्यबाला           कौन देस को वासी         2024

वेणु की डायरी(उपन्यास)

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Saturday, June 7, 2025

 


अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी भाषा का स्वरूप

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

किसी भी अन्तर्राष्ट्रीय भाषा के स्वरूप में दो प्रकार के तत्व होते हैं-एक केंद्रीय और दूसरा परिधीय. केंद्रीय तत्व उस भाषा के सभी रूपों में समान होते हैं, इन्हीं के आधार पर उस भाषा के एक रूप का प्रयोक्ता दूसरे रूप के प्रयोक्ता की भाषा को समझ अवश्य लेता है, चाहे बोल पाने में समर्थ न हो. परिधीय तत्व उस भाषा के सभी रूपों में असमान होते हैं किन्तु परिधीय तत्व कम से कम होने चाहिये ताकि भाषा के एक रूप के प्रयोक्ता को उस भाषा के अन्य रूप को समझने में मुश्किल न हो. उदाहरणार्थ – अंग्रेजी भाषा की संरचना में जो केंद्रीय तत्व हैं, वे ब्रिटिश अंग्रेजी, अमरीकी अंग्रेजी तथा आस्ट्रेलियाई अंग्रेजी, आदि अंग्रेजी के सभी रूपों में समान हैं और उन्हीं के आधार पर वह अन्तर्राष्ट्रीय भाषा बनी है जबकि ब्रिटिश अंग्रेजी और अमरीकी अंग्रेजी में वर्तनी, उच्चारण, शब्द-भंडार, अर्थ, वाक्य रचना, सभी दृष्टियों से पर्याप्त विभिन्नता पाई जाती है.

 

हिन्दी विश्व की प्रमुख तीन भाषाओं में से एक है. बोलने वालों की संख्या की दृष्टि से हिन्दी का स्थान केवल चीनी और अंग्रेजी के बाद आता है. विश्व में हिन्दी भाषा का प्रयोग-क्षेत्र तीन प्रकार का है- 1. हिन्दी भाषा क्षेत्र है, जो उत्तर प्रदेश, बिहार, मध्य प्रदेश, राजस्थान, हरियाणा, पंजाब का कुछ भाग व हिमाचल प्रदेश में है. 2. हिंदीतर भारतीय प्रदेश- आंध्र प्रदेश, कर्नाटक, बंगाल का कलकत्ता, मेघालय का शिलांग नगर. 3. भारतेतर देश- मुख्यतः मॉरीशस, फीजी, सूरीनाम, त्रिनिदाद, दक्षिण अफ्रीका. गौणतः नेपाल, जमाइका, बर्मा, मलेशिया, सिंगापुर, कीनिया, इंडोनेशिया, थाइलैंड, श्रीलंका, ब्रिटेन, अमेरिका तथा कनाड़ा. विभिन्न देश-प्रदेशों की हिन्दी भाषा का रूप भी भिन्न है. हिन्दी भाषा की वर्तनी एक ही है किन्तु उच्चारण, शब्द भंडार, शब्दार्थ, वाक्य रचना में पर्याप्त विभिन्नता पाई जाती है.

डॉ. भोलानाथ तिवारी ने हिन्दी भाषा के अन्तर्राष्ट्रीय स्वरूप के संवंध मे जो बातें कही हैं विचारणीय हैं-------

 

1.     जहाँ तक अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी के शब्द भंडार का प्रश्न है, यह न तो बहुत अधिक संस्कृतनिष्ठ होनी चाहिये और न बहुत अरबी-फारसी मिश्रित. किंतु इसे हिन्दुस्तानी शैली कहना भी बहुत उपयुक्त नहीं होगा. वस्तुतः इसे वर्तमान संस्कृतनिष्ठ हिन्दी तथा हिन्दुस्तानी के बीच का होना चाहिये.

2.     अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी में वे सभी अंग्रेजी शब्द प्रयुक्त होने चाहिये जो हिन्दी में किसी भी कारण आ गये हैं तथा जो पूरे भारत में तथा भारत के बाहर भी बोले और समझे जाते हैं. उदाहरण के लिये –इंजीनियर ठीक है अभियंता की आवश्यकता नहीं है. ऐसे ही टेलीफोन का प्रयोग होना चाहिये दूरभाष का नहीं.

3.     विश्व की काफी भाषाओं में ऐसे शब्द हैं जो पाँच या पाँच से अधिक भाषाओं में प्रयुक्त होते हैं. इनमें से कुछ शब्द ऐसे हो सकते हैं जो लगभग एक ही उच्चारण से सभी भाषाओं में प्रचलित हैं. ऐसे शब्दों को उसी उच्चारण के साथ अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी को स्वीकार कर लेना चाहिये.

4.     जहाँ तक व्याकरण का प्रश्न है, मानक हिन्दी के सामान्य व्याकरण को ही अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी के लिये ग्रहण करना चाहिये. उसमें से न तो न के प्रयोग को निकालने की आवश्यकता है न क्रिया और विशेषण के लिंगीय परिवर्तन को हटाने की. हाँ, जैसाकि सूरीनाम या मॉरीशस की हिन्दी में सुनने में आता है, इन दृष्टियों से छूट कोई बरतना चाहे तो बरत सकता है किंतु ये छूट वाले रूप हिन्दी के परिधीय तत्व माने जाने चाहिये केंद्रीय तत्व नहीं.

5.     यदि नये शब्दों के निर्माण की आवश्यकता हो तो जहाँ तक उपसर्गों और प्रत्ययों का संबंध है, हिन्दी के जितने भी उर्वर उपसर्ग और प्रत्यय हैं उन्हीं का प्रयोग होना चाहिये अनुर्वर का नहीं. उदाहरण के लिये प्रभावशाली और प्रभावी पर्याप्त हैं, प्रभविष्णु की आवश्यकता नहीं.

 

अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी का स्वरूप निर्धारित करते समय हमें यह ध्यान रखना चाहिये कि अन्तर्राष्ट्रीय हिन्दी का व्याकरण और शब्द भंडार मानक हिंदी का ही होना चादिये, जो भाषा के केंद्रीय तत्वों से सम्बंधित है. भाषा में अन्य परिवर्तन देश-प्रदेश अपनी सुविधानुसार परिधीय तत्व के रूप में कर सकते हैं.

 

 

 

 

Friday, June 6, 2025

 

पद्मश्री से सम्मानित हिन्दी साहित्यकार

डॉ. मंजूश्री गर्ग

पद्मश्री सामान्यतः भारतीय नागरिकों को दिया जाने वाला सम्मान है जो जीवन के विभिन्न क्षेत्रों जैसे कि- कला, शिक्षा, उद्योग, साहित्य, विज्ञान, खेल, चिकित्सा, समाज सेवा और सार्वजनिक जीवन आदि में विशिष्ट योगदान को मान्यता प्रदान करने के लिये दिया जाता है. यह पुरस्कार सन् 1954 ई. से देना प्रारम्भ हुआ था.

 

भारत रत्न, पद्म विभूषण, पद्म भूषण के बाद चौथे नंबर पर पद्मश्री का स्थान है. 26 जनवरी की पूर्व संध्या पर इन पुरस्कारों की घोषणा की जाती है. इसके अग्रभाग पर पद्म और श्री देवनागरी लिपि में लिखा होता है.

पद्मश्री से सम्मानित हिन्दी साहित्यकार हैं-

1.     आचार्य रामचन्द्र वर्मा(1890-1969)                 1958

2.     श्री गोपाल प्रसाद व्यास(1915-2005)               1965

3.     पं. हरिशंकर शर्मा(1861-1968)                   1966

4.     राजकवि इंद्रजीत सिंह तुलसी(1926-1984)           1966

5.     श्रीमती अमृता प्रीतम(1919-2005)                 1969

6.     श्री सोहनलाल द्विवेदी(1906-1988)                1969

7.     श्री फणीश्वर नाथ रेणु(1921-1977)                1970

8.     श्री धर्मवीर भारती(1926-1917)                    1972

9.     श्री श्यामलाल गुप्ता पार्षद(1896-1977)             1973

10. गौरापंत शिवानी(1923-2003)                    1982

11. श्री हरिशंकर परसाई(1924-1995)                 1985

12. काका हाथरसी(1906-1995)                     1985

13. डॉ. विद्यानिवास मिश्र(1926-2005)               1988

14. बरसाने लाल चतुर्वेदी                           1989

15. डॉ. श्याम सिंह शशि(1935)                      1990

16. श्री कन्हैया लाल प्रभाकर मिश्र(1906-1995)        1990

17. श्री शरद जोशी(1931-1991)                     1990

18. श्री यशपाल जैन(1912-2000)                   1990

19. श्री के. पी. सक्सैना(1934-2013)                 2000

20. श्रीमती पद्मा सचदेव(1940)                     2001

21. श्री रमेश चंद्र शाह(1937)                       2004

22. प्रो. सुनीता जैन                               2004

23. श्री लीलाधर जगूड़ी(1940)                       2004

24. मेहरून्निसा परवेज(1944)                       2005

25. श्री गिरिराज किशोर(1937)                      2007

26. श्री आलोक मेहता(1952)                       2009

27. डॉ. गोविंद चंद्र पांडेय(1923-2011)                2010

28. आचार्य जानकी वल्लभ शास्त्री(1916-2011)         2010

29. डॉ. अशोक चक्रधर(1951)                       2014

30. डॉ. नरेंद्र कोहली(1940)                        2017

31. श्री श्याम लाल चतुर्वेदी(1926)                   2018

32. श्रीमती मालती जोशी(1934)                     2018

33. श्री कृष्ण बिहारी मिश्र(1936)                    2018



Thursday, June 5, 2025



राम दरबार-अयोध्या

राम दरबार की प्राण-प्रतिष्ठा पर हार्दिक शुभकामनायें

 

Wednesday, June 4, 2025


अपना नाम, अस्तित्व, मिठास सब समाहित कर देती है।

ऐसा प्यार और कौन करेगा सागर से, जैसा नदी करती है।।

 

                             डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Tuesday, June 3, 2025

 

 

कदंब

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

 

 

सूरज ने रंग दी पंखुरियां

शीत पवन ने भेजी गंध,

पात-पात में बजी बाँसुरी

दिशा-दिशा झरता मकरंद।

 

सावन के भीगे संदेशे

लेकर आया फूल कदंब।

                        - शशि पाधा

 

कदंब भारतीय उपमहाद्वीप में उगने वाला शोभाकार वृक्ष है. सुगंधित फूलों से युक्त बारहों महीने हरे, तेजी से बढ़ने वाले इस विशाल वृक्ष की छाया शीतल होती है. इसके पेड़ की अधिकतम ऊँचाई 45 मी. तक हो सकती है. पत्तियों की लंबाई 13 से 23 से. मी. होती है. अपने स्वाभाविक रूप में चिकनी, चमकदार, मोटी और उभरी नसों वाली होती हैं, जिनसे गोंद निकलता है.

चार-पाँच वर्ष का होने पर कदंब में फूल आने शुरू हो जाते हैं. कदंब के फूल लाल, गुलाबी, पीले और नारंगी रंगों के होते हैं. अन्य फूलों से भिन्न कदंब के फूल गेंद की तरह गोल लगभग 55 से. मी. व्यास के होते हैं, जिनमें उभयलिंगी पुंकेसर कोमल शर की भाँति बाहर की ओर निकले होते हैं. ये गुच्छों में खिलते हैं

 

इसीलिये इसके फल भी छोटे गूदेदार गुच्छों में होते हैं, जिनमें से हर एक में चार संपुट होते हैं. इसमें खड़ी और आड़ी पंक्तियों में लगभग 8000 बीज होते हैं. पकने पर ये फट जाते हैं और इनके बीज हवा या पानी से दूर-दूर तक बिखर जाते हैं. कदंब के फल और फूल पशुओं के लिये भोजन के काम आते हैं. इसकी पत्तियाँ भी गाय के लिये पौष्टिक भोजन समझी जाती हैं. इसका सुगंधित नारंगी फूल हर प्रकार के पराग एकत्रित करने वाले कीटों को आकर्षित करता है जिसमें अनेक भौंरे मधुमक्खियाँ तथा अन्यकीट शामिल हैं.

श्याम ढ़ाक आदि कुछ स्थानों में ऐसी जाति के कदंब पाये जाते हैं, जिनमें प्राकृतिक रूप से दोनों की तरह मुड़े हुये पत्ते निकलते हैं. कदंब का तना 100 से.मी. 160 से.मी. होता है।

पुराना होने पर धारियाँ टूट कर चकत्तों जैसी बन जाती हैं. कदंब की लकड़ी सफेद से हल्की पीली होती है. इसका घनत्व 290 से 560 क्यूबिक प्रति मीटर और नमी लगभग 15 प्रतिशत होती है. लकड़ी के रेशे सीधे होते हैं यह छूने में चिकनी होती है और इसमें कोई गंध नहीं होती. लकड़ी का स्वभाव नर्म होता है इसलिये औजार और मशीनों से आसानी से कट जाती है. यह आसानी से सूख जाती है और इसको खुले टैंकों या प्रेशर वैक्यूम द्वारा आसानी से संरक्षित किया जा सकता है. इसका भंडारण भी लंबे समय तक किया जा सकता है. इस लकड़ी का प्रयोग प्लाइवुड के मकान, लुगदी और कागज, बक्से, क्रेट, नाव और फर्नीचर बनाने के काम आती है. कदंब के पेड़ से बहुत ही उम्दा किस्म का चमकदार कागज बनता है. इसकी लकड़ी को राल या रेजिन से मजबूत किया जाता है. कदंब की जड़ों से एक पीला रंग भी प्राप्त किया जाता है.

 

जंगलों को फिर से हरा-भरा करने, मिट्टी को उपजाऊ बनाने और सड़कों की शोभा बढ़ाने में कदंब महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है. यह तेजी से बढ़ता है और छः से आठ वर्षों में अपने पूरे आकार में आ जाता है. इसलिये जल्दी ही बहुत-सी जगह को हरा-भरा कर देता है. विशालकाय होने के कारण यह ढ़ेर सी पत्तियाँ झाड़ता है जो जमीन के साथ मिलकर उसे उपजाऊ बनाती है. सजावटी फूलों के लिये इसका व्यवसायिक उपयोग होता है साथ ही इसके फूलो का प्रयोग एक विशेष प्रकार के इत्र को बनाने में भी किया जाता है. भारत में बनने वाला यह इत्र कदंब की सुगंध को चंदन में मिलाकर वाष्पीकरण पद्धति द्वारा बनाया जाता है. ग्रामीण अंचलों में इसका उपयोग खटाई के लिये होता है. इसके बीजों से निकला तेल खाने और दीपक जलाने के काम आता है.

इस प्रकार कदंब का वृक्ष प्रकृति और पर्यावरण को तो संरक्षण देता ही है, औषधि और सौन्दर्य का भी महत्तवपूर्ण स्रोत है.