बाँस

डॉ. मंजूश्री गर्ग
बाँस,
ग्रामिनीई कुल की एक घास है जो भारत के प्रत्येक क्षेत्र में पायी जाती है. बाँस
में प्रकृति को संरक्षित करने का अद्भुत गुण है. इसकी लकड़ी बहुत उपयोगी होती है.
छोटी-छोटी घरेलू वस्तुओं से लेकर मकान बनाने तक काम आती है. बाँस का नया
उगा पौधा खाने के काम आता है, इसका अचार और मुरब्बा भी पड़ता है. बाँस में अधिक
कार्बोहाइड्रेट होने से यह स्वास्थ्यवर्धक भी है. अन्य पौधों की अपेक्षा बाँस का
पेड़ अधिक ऑक्सीजन छोड़ता है. साथ ही यह पीपल के पेड़ की तरह दिन में कार्बन
डाईऑक्साइड खींचता है और रात में ऑक्सीजन छोड़ता है.
बाँस की खेती
आर्थिक दृष्टि से भी उपयोगी होती है. एक बार बाँस बोने के बाद पाँच साल बाद उपज
देने लगते हैं. यह पृथ्वी पर सबसे तेज बढ़नेवाले पौधों में से एक है. एक दिन में
121 से.मी. तक इसकी लम्बाई बढ़ जाती है, कभी-कभी कुछ प्रजातियों में
इसके बढ़ने की गति 1 मी. प्रति घंटा हो
जाती है. इसका तना लम्बा, गाँठदार, प्रायः खोखला और अनेक शाखाओं वाला होता है तने
की निचली गाँठों से जड़ें निकलती हैं जो रेशेदार होती हैं इसकी पत्तियाँ लम्बी और
नुकीली होती हैं. जब बाँस में फूल खिलते हैं तो उसका जीवन समाप्त हो जाता है. सूखे
तने गिरकर रास्ता बंद कर देते हैं, अगले वर्ष वर्षा के बाद बीजों से नयी कलमें
फूटती हैं और जंगल फिर हरा हो जाता है.
बाँस का जीवन एक वर्ष से
पचास वर्ष तक का होता है, जब तक की फूल नहीं खिलते. फूल बहुत ही छोटे, रंगहीन,
बिना ठंडल के छोटे-छोटे
गुच्छों में पाये जाते हैं. साधारणतः बाँस
तभी फूलता है जब सूखे के कारण खेती मारी जाती है और दुर्भिक्ष
पड़ता है. शुष्क एवम् गरम हवा के कारण पत्तियों के स्थान पर कलियाँ खिलती हैं. फूल
खिलने पर पत्तियाँ झड़ जाती हैं. बहुत से बाँस एक वर्ष में फूलते हैं. ऐसे बाँस
भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों में पाये जाते हैं. यदि फूल खिलने का समय ज्ञात हो
तो काट-छाँट कर फूलने की प्रक्रिया को रोका जा सकता है.
बाँस के द्वारा
कागज भी बनाया जाता है. यूनान और भारत में दवाईयाँ बनाने के लिये भी बाँस का
प्रयोग किया जाता है.
फेंगशुई में बाँस
का बहुत अधिक महत्व है इसे घरों में सौभाग्य सूचक माना जाता है. काँच के छोटे
बर्तन में थोड़ा पानी भरकर, कुछ बाँस की कलमों को लाल रिबन से बाँधकर रखा जाता है.
बर्तन में थोड़े से पत्थर भी डाले जाते हैं. इस तरह से फेंगशुई में इस गमले को
लकड़ी(बाँस), पृथ्वी(पत्थर), जल, अग्नि(लाल रिबन), धातु(काँच का बर्तन) का प्रतीक
माना जाता है.
के छोटे-छोटे
गुच्छों में पाये जाते
हैं. साधारणतः बाँस
तभी फूलता है जब सूखे के कारण खेती मारी जाती है और
दुर्भिक्ष
पड़ता है. शुष्क एवम् गरम हवा के कारण पत्तियों के स्थान पर कलियाँ खिलती हैं. फूल
खिलने पर पत्तियाँ झड़ जाती हैं. बहुत से बाँस एक वर्ष में फूलते हैं. ऐसे बाँस
भारत में नीलगिरि की पहाड़ियों में पाये जाते हैं. यदि फूल खिलने का समय ज्ञात हो
तो काट-छाँट कर फूलने की प्रक्रिया को रोका जा सकता है.
बाँस के द्वारा
कागज भी बनाया जाता है. यूनान और भारत में दवाईयाँ बनाने के लिये भी बाँस का
प्रयोग किया जाता है.
फेंगशुई में बाँस
का बहुत अधिक महत्व है इसे घरों में सौभाग्य सूचक माना जाता है. काँच के छोटे
बर्तन में थोड़ा पानी भरकर, कुछ बाँस की कलमों को लाल रिबन से बाँधकर रखा जाता है.
बर्तन में थोड़े से पत्थर भी डाले जाते हैं. इस तरह से फेंगशुई में इस गमले को
लकड़ी(बाँस), पृथ्वी(पत्थर), जल, अग्नि(लाल रिबन), धातु(काँच का बर्तन) का प्रतीक
माना जाता है.