चाँदनी कहती- दीपक से
व्यर्थ ही तुम जलते हो
रोशन हैं राहें सारी
मेरी ही रोशनी से।
दीपक कहता- चाँदनी से
मैं तो जलता प्रीत निबाहने
बिन मेरे कैसे रोशन होंगी
राह पतंगे की।
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डॉ. मंजूश्री गर्ग
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