बूँद ‘मैं’, समुद्र ‘तुम’
कण ‘मैं’, पर्वत ‘तुम’
पाँखुरी ‘मैं’, फूल ‘तुम’
‘अंश’ तुम्हारा ही हूँ प्रभु ‘मैं’।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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