कही-अनकही बातें,
आधी-अधूरी मुलाकातें,
कोरे दिन औ’ कोरी रातें
बहुत कुछ लिख जाती हैं ये यादों की स्याही।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
No comments:
Post a Comment