घिस-घिस चंदन महक लुटाये,
पिस-पिस मेंहदी रंग लाये।
फूल खिलें, सजें या बिखरें,
हर पल पवन को महकायें।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
क्रिकेट की उमंग बढ़ी,
जोश भरी टोली चली।
जीत में झूम चली,
देश में धूम मची।
वर्ल्ड कप विजेता भारतीय टीम को बहुत-बहुत बधाई
जहाँ पूर्ण विकास है,
वहाँ ठहराव है।
जहाँ ठहराव है
वहाँ विकास का मार्ग अवरूद्ध है।।
प्यार किया है हमने तुमसे
बदनाम नहीं होने देंगे।
चाहतों को दिल में छुपा लेंगे
राह में मिले तो नजरें झुका लेंगे।।
शांत बहुत शांत हैं सागर की लहरें।
तूफान आने की प्रबल संभावनायें हैं।।
क्यारियों में सजे नहीं,
ये बात और है।
गुलाब किसी से,
कम नहीं हैं हम।।
शब्दों के मनकों में, मन की आभा।
कविता की माला में, जीवन गाथा।।
ना दृढ़ इतने कि
झुको तो टूट जाओ।
ना कोमल ही
जो चाहे मोड़ ले तुम्हें।।
कविता बिना भाव,
व्यंग्य बिना धार,
गीत बिना लय,
शोभा नहीं देते।।
हर रिश्ते को थोड़ी परवरिश चाहिये,
थोड़ी धूप, थोड़ी छाँव चाहिये।
स्नेह का जल, प्यार के छींटे चाहिये,
अपनेपन की थोड़ी हवा चाहिये।।
इंसानियत की धरा में
प्यार के बीज बो दो।
आज नहीं, तो कल
मानवता के फूल खिलेंगें।।
तुम आये तो जीवन की राह नजर आई।
अँधेरे में उजाले की ज्यों किरण नजर आई।।
जिंदगी तो जानी-मानी ये दीवानी है
कब इसने दिया साथ किसी का ये बेमानी है।।
नफरत में भी वो हमसे प्यार करते हैं।
सुबह-शाम नजर भर देख लेते हैं।।
तप रही है धरा,
तप रहा है गगन।
छाँव भी छाँव
ढ़ूँढ़ती तरू-तले।।
आँधियों में उजड़े चमन, बसाती प्यार की बयारें।
आँधियाँ हों नफरत की, तो बसायेगा फिर कौन?
पंख जल गये हैं सभी कड़ी धूप में।
फिर भी मन की उड़ानें लगती हैं सुन्दर।।
जिंदगी में छाँव बनकर आप आये हैं।
अब हमें धूप सुहानी लग रही है।।
ठोकर नहीं कहती कि रोक दो बढ़ते कदम।
कहती है बढ़ते रहो आगे सँभल-सँभल कर।।
बिन थामे ही हाथ, हमेशा
थामे रहते हाथ हमारा।
कैसे कह दें! साथ नहीं हो,
पल-पल साथ निभाते हो।।
मंजिल पानी है ‘गर
अवरोधों से डरना कैसा!
कौन है? जिसने ताप सहा नहीं
सूरज जैसा चमका जो भी।।
तुम साथ थे मेरे
तुम साथ हो मेरे
तुम साथ रहोगे हमेशा।
मेरी बातों में तुम
मेरे ख्बाबों में तुम
मेरी यादों में तुम
मेरे गीतों में तुम
मेरी गजलों में तुम
तुम ही तुम हो
जीवन के हर पल में तुम।
दो जन मिले बिना, सम्भव नहीं,
बात प्यार की हो, या तकरार की।।
कोई हार कर भी खुश है,
कोई जीत कर भी नहीं।
अपनी-अपनी परिधियाँ,
हार जीत की सबकी।
मत अधीर हो धरा, आ पहुँचे पाहुने बादल।
रससिक्त तुम्हें कर, पहनायेंगे चूनर धानी।।
रिमझिम-रिमझिम सावन जैसा,
पल-पल बरसता प्यार तुम्हारा।
अन्तरतम तक जो भिगो दे,
ऐसा मधुरिम प्यार तुम्हारा।।
ठुकराइये या अपनाइये,
रूठिये या मनाइये।
हम तो जियेंगें तेरे नाम से,
मरेंगें तो तेरे नाम से।।
जमीं पर नहीं पड़ते हैं कदम हमारे,
अरमानों को पंख लगे हैं आज।
आकाश को छू लेंगे एक दिन हम,
चाहतों में नया रंग भरा है आज।।
तन के गहने
हैं अनगिन।
मन का सिंगार
तुम हो प्रियतम।।