हिन्दी साहित्य
Thursday, June 6, 2024
कोई हार कर भी खुश है,
कोई जीत कर भी नहीं।
अपनी-अपनी परिधियाँ,
हार जीत की सबकी।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
No comments:
Post a Comment
Newer Post
Older Post
Home
Subscribe to:
Post Comments (Atom)
No comments:
Post a Comment