Sunday, July 7, 2019




किसी व्यक्ति को अचानक से कहीं से धन या मान-सम्मान मिल जाता है तो वह समाज में और व्यक्तियों के ऊपर अपना रौब दिखाने लगता है, इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने शतरंज के मोहरों के माध्यम से प्रस्तुत पंक्तियों में की है-
जो रहीम औछो बढ़ै, तो अति ही इतराय।
प्यादे से फरजी भयो, टेढ़ो टेढ़ो जाये।।
                                 रहीमदास

Saturday, July 6, 2019



शत्रुघ्न के वाणों से मूर्छित लव के लिये विलाप करती हुई सीता के प्रति कुश का कथन-
रिपुहिं मारि संहारिदल यम ते लेहुं छुड़ाय।
लवहिं मिलै हों देखिहों माता तेरे पाय।।
                                केशवदास

Friday, July 5, 2019



जो थल कीने विहार अनेकन तो थल काँकरी बैठि चुन्यो करैं।
जा रसना सों करी बहु बातन ता रसना सों चरित्र गुन्यो करैं।
आलम जौन से कुंजन में करी केलि तहाँ अब सीस धुन्यो करैं।
नैनन में जे सदा रहते तिनकी अब कान कहानी सुन्यो करैं।
                                              आलम

Thursday, July 4, 2019




बिगड़ी बात बनै नहीं,  लाख करे किन कोय।
रहिमन फाटे दूध को, मथे न माखन होय।।

                           रहीमदास


Tuesday, July 2, 2019



सात स्वरों में निबद्ध,
      संगीत हमारा।
सात रंगों से रचा,
      इन्द्रधनुष प्यारा।
सात फेरों में बँधा,
      जीवन हमारा।

                        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, July 1, 2019



एक बूँदः

सागर से चुराकर अपना अस्तित्व
वाष्प बन रख लिया बादल रूप।

सूरज से चुराकर उसकी किरणें
इन्द्रधनुषी रंग में रंगा तन-मन।

तपती धरती को देख मन तड़पा
अश्रु लड़ी में पिर आयी धरती पर।

किन्तु सीपी में गिरी, बनी एक मोती
एक बूँद नन्हीं सी, प्यारी सी।

                          डॉ. मंजूश्री गर्ग




सुबह-सबेरे आशा की किरण है कहती
बरसेंगे आज उम्मीदों के बादल।
दिन सारा तेज धूप में है निकल जाता
शाम ढ़ले फिर छा जाते उदासी के बादल।

                                  डॉ. मंजूश्री गर्ग