सूरज दादा!
धुंध की चादर ओढ़े
क्यूँ बैठे हो
कर फैला कर
दूर करो अँधेरा।
खेलें, कूदें
धूम मचायें
संग तुम्हारे गायें
जब आँगन में
धूप नहाये।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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