Thursday, February 8, 2024

 

डॉ. उदयभानु हंस


जन्म-तिथि-  2अगस्त, सन् 1926 ई. पंजाब, पाकिस्तान

पुण्य-तिथि-  26 सन् फरवरी ई. 2019 ई. हिसार. भारत

 

उदयभानु हंस हिंदी के मुख्य कवि थे और हिंदी में रूबाई के प्रवृत्तक कवि, जो रूबाई सम्राट के रूप में लोकप्रिय हुये। उनकी रूबाईयों का संग्रह हिन्दी रूबाईयां सन् 1952 ई. प्रकाशित हुआ, जो हिन्दी पद्य साहित्य में नया और निराला प्रयोग था। उदयभानु हंस जी का जन्म पाकिस्तान में हुआ, सन् 1947 ई. में भारत के विभाजन के बाद उनका परिवार भारत के पंजाब प्रान्त के हिसार जिले में आ गया. जब सन् 1966 ई. में हरियाणा अलग राज्य बना तो उदयभानु हंस को हरियाणा राज्य का राज्य कवि घोषित किया गया।

 

उदयभानु हंस ने मिडिल तक उर्दू-फारसी पढ़ी और घर में उनके पिता हिन्दी और संस्कृत पढ़ाते थे। उनके पिता जी हिन्दी और संस्कृत के विद्वान थे और कवि भी थे। बाद में हंस जी ने प्रभाकर और शास्त्री की शिक्षा प्राप्त की और हिन्दी में एम. ए. किया। सन् 1994 ई. में हिन्दी साहित्य सम्मेलन, प्रयाग द्वारा प्रयागराज में उन्हें विद्या वाचस्पति (पीएच. डी) की मानद् उपाधि से सम्मानित किया गया। उदयभानु हंस ने पढ़ाई पूरी करने के बाद एक शिक्षक के रूप में कार्यभार सँभाला और हिसार के एक सरकारी कॉलेज से प्रिंसिपल के रूप में सेवा निवृत्त हुये। वह चंड़ीगढ़ साहित्य अकादमी के सचिव भी रहे और हरियाणा साहित्य अकादमी की सलाहकार समिति के सदस्य भी थे।

 

उदयभानु हंस की प्रकाशित रचनायें-

1.      भेड़ियों के ढ़ंग

2.      हंस मुक्तावली

3.      संत सिपाही

4.      देसन में देस हरियाणा

5.      शंख और शहनाई

उदयभानु हंस को सन् 1968 ई. में गुरू गोविंद सिंह के जीवन पर आधारित महाकाव्य संत सिपाही के लिये उत्तर प्रदेश सरकार द्वारा निराला पुरस्कार से सम्मानित किया गया। सन् 1992 ई. में भारत के राष्ट्रपति द्वारा दिल्ली में गीत गंगा सम्मान से पुरस्कृत किया गया। सन् 1994 ई. में हिमाचल प्रदेश की प्रमुख संस्था हिमोत्कर्ष द्वारा अखिल भारतीय श्रेष्ठ साहित्यकार के सम्मान से सम्मानित किया गया। सन् 2009 ई. में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा हरियाणा साहित्य रत्न सम्मान से सम्मानित किया गया। उनके सम्मान में प्रत्येक वर्ष उदयभानु हंस पुरस्कार दिये जाते हैं।

उदयभानु हंस की रूबाईयाँ-

 

मँझधार से बचने के सहारे नहीं होते,

दुर्दिन नें कभी चाँद सितारे नहीं होते,

हम पार भी जायें तो भला किधर से,

इस प्रेम की सरिता के किनारे नहीं होते।

1.

 

अनुभूति से जो प्राणवान होती है,

उतनी ही वो रचना महान होती है।

कवि के ह्रदय का दर्द, नयन के आँसू,

पीकर ही तो रचना जवान होती है।

 

          उदयभानु हंस

 

 

 

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