Wednesday, April 30, 2025


आँखें......

 

बोलती आँखें,

मुस्काती आँखें,

लरजती आँखें,

शराबी आँखें,

डराती आँखें,

बिन कहे, कितना

कहें ये आँखें।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग



 

Tuesday, April 29, 2025


कर्मयोगी श्रीकृष्ण

 

कभी नंद की गायें चरायें,

कभी बजायें बाँसुरी वन में।

कभी सुदामा के पग धोयें,

कभी बने सारथि पार्थ के।


कर्मयोगी बनकर ही श्रीकृष्ण

देते संदेश कर्म करने का। 

        डॉ. मंजूश्री गर्ग

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Monday, April 28, 2025

 

जिंदगी जीनी नहीं सीखी।

 

किससे करें शिकवा,

खुद ही रहे नासमझ।

प्रीत की।

प्रीत की रीति नहीं सीखी।

जिंदगी जी।

जिंदगी जीनी नहीं सीखी।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग


Sunday, April 27, 2025


बढ़े चलें, बढ़े चलें।

डॉ. मंजूश्री गर्ग

 

रूकें नहीं, झुकें नहीं,

बढ़े चलें, बढ़े चलें।

प्रगति पथ पे,

निरन्तर चलें।

देश का हो नाम जग में,

काम ऐसा कर चलें।

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Saturday, April 26, 2025

 

कर सोलह श्रृंगार

 

कर सोलह श्रृंगार

साँझ की दुल्हन बैठी है.

सूरज की लालिमा

माथे पे सजा.

पहन कर

सितारों जड़ी चूनर.

लगाकर

रात का काजल.

कर रही इंतजार

कब आओगे पाहुने!


        डॉ. मंजूश्री गर्ग


Friday, April 25, 2025

 

बूँद-बूँद से-----

 

बूँद-बूँद से समुद्र बने

फूल-फूल से उपवन

तुम अपने को कम

मत समझो, तुमसे ही

देश और विश्व बने।

        डॉ. मंजूश्री गर्ग


Thursday, April 24, 2025

 

बचपन में------

 

बचपन में,

कली ही नहीं,

तोड़ लेते थे,

काँटे भी।

और बना लेते थे

तोते।

अब तो,

कली भी,

तोड़ने में,

होती है,

चुभन।

    डॉ. मंजूश्री गर्ग


Wednesday, April 23, 2025

 

मुस्कुरा लेना--------

 

जब भी दर्पण देखो

मुस्कुरा लेना.

कुछ पल तो उदासी का

हो जायेगा कम.

 

कुछ पल खुद को सँवारना

कुछ पल घर को सँवारना.

देखते ही देखते शाम हो जायेगी

देखोगी मुझे बस सामने अपने.


        डॉ. मंजूश्री गर्ग


Tuesday, April 22, 2025

 


यूँ ही नहीं....

यूँ ही नहीं बहकते

कदम हमारे।

मदहोशी-सी

छाई है हवा में आज।

शायद तुमसे मिल के

आई है पवन आज।


        डॉ. मंजूश्री गर्ग

Monday, April 21, 2025


पहचान

डॉ. मंजूश्री गर्ग 

फूलों के खिलने से पेड़ों की पहचान होती है निराली

अम्बर में तने लाल वितान तो होता है गुलमोहर.

पीले पुष्प गुच्छ झूमें तो होता है अमलतास.

रात को महकाये वात तो कहलाये रजनीगंधा.

झरें फूल झर-झर और बिछे चाँदनी चादर

महकाये शरद की रात तो होता है हारसिंगार.

 

Sunday, April 20, 2025


जितना चाहो सुलझाना, उलझेंगे उतने ही।

रिश्ते जो सुलझे नहीं, छोड़ दो यूँ ही अनसुलझे।

समय बीतते कम हो जायेंगी मन की गाँठें।

जैसे किसी धागे की गाँठ में भी पिर जाते हैं मोती। 


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Saturday, April 19, 2025


कभी चाँद बन मुस्कुराना,

कभी सूरज सा साध निभाना।

कभी बन तारे जगमगाना,

कभी बन खुशबू महक जाना।

यूँ ही बस साथ-साथ रहना,

हर पल जीवन में साथ निभाना। 


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Friday, April 18, 2025


कभी सुनहली प्रातः दे गया, कभी भीगी रात दे गया।

मन मेरा बँजारा भटका, कभी धूप, कभी छाँव दे गया।।

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, April 17, 2025


अम्बर से बातें करेंगे,

धरा पे गीत लिखेंगे।

हो फुरसत तुम्हें देखने से,

जग से भी दो बातें करेंगे। 


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, April 16, 2025

 


हर किरण उजाली हो।

हर सुबह सुनहली हो।

हर दिन महके खुशियों से

रात का साया भी न सपनों पे हो।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, April 15, 2025


जीवन बढ़े तो ऐसे जैसे शुक्ल पक्ष का चन्द्रमा।

दिन-दिन तेज बढ़े और उजियारा फैले जग में।।

 

            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Monday, April 14, 2025


कब जिया है

जड़ से अलग हो

कोई भी पौधा.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Sunday, April 13, 2025


पाया है ज्ञान

भगवान बुद्ध ने

वट के नीचे.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Saturday, April 12, 2025



अँजुरी-जल

गंगा का अभिषेक

गंगा-जल से.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Friday, April 11, 2025


चारधाम

चारधामों में

बद्रीनाथ धाम है

उत्तर दिशा.

1.

चारधामों में

जगन्नाथ धाम है

पूर्व दिशा में.

2.

चारधामों में

द्वारिकापुरी धाम

पश्चिम दिशा.

3.

चारधामों में

रामेश्वरम धाम

दक्षिण दिशा.

4.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Thursday, April 10, 2025


धरती से उड़ चली पतंग

 

धरती से उड़ चली पतंग

आकाश छूने चली पतंग.

इतराई, मंडराई, भूली

धरती से है गहरा नाता.

डोर कटी तो पट से

धरती पर आन गिरी। 


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Wednesday, April 9, 2025


जरा तो मुस्कुरा के चल कि आँचल को लहराकर चल।

बहुत अँधेरा  है मन में कि जरा उजाला कर के चल।।


            डॉ. मंजूश्री गर्ग

Tuesday, April 8, 2025

 

मृणालों-सी मुलायम बाँह ने सीखी नहीं उलझन,

सुहागन लाज में लिपटा शरद की धूप जैसा तन।

अँधेरी रात में खिलते हुये बेले सरीखा मन,

पंखुरियों पर भँवर के गीत-सा मन टूटता जाता।

मुझे तो वासना का विष हमेशा बन गया अमृत,

 बशर्ते वासना भी हो तुम्हारे रूप से आबाद।

                                  धर्मवीर भारती

 


Monday, April 7, 2025


कालजयी कृति

डॉ. मंजूश्री गर्ग

समसामयिक, शाश्वत, सार्वकालिक, सार्वभौमिक रचना ही कालजयी कृति बन सकती है----

समसामयिक

समसामयिक से अभिप्राय है जिस काल में कवि या लेखक जीता है उसकी रचनाओं में उस समय की राजनीतिक, आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक पृष्ठभूमि की झलक अवश्य होती है, इसीलिये साहित्य को समाज का दर्पण कहा गया है.

शाश्वत

शाश्वत से अभिप्राय कवि या लेखक की रचनाओं में ऐसी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति से है, जो ब्रह्म की तरह अजर, अमर हैं. जैसे- प्रेम की अनुभूति, विरह की अनुभूति.

सार्वकालिक

सार्वकालिक से अभिप्राय कवि या लेखक की रचनाओं में ऐसी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति से है जो कल भी थीं, आज भी हैं और कल भी रहेंगी.

सार्वभौमिक

सार्वभौमिक से अभिप्राय कवि या लेखक की रचनाओं में ऐसी संवेदनाओं की अभिव्यक्ति से है जो पृथ्वी पर सब जगह एक समान देखने को मिलती हैं चाहें हम पृथ्वी के किसी भी कोने में क्यों न हों.

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Saturday, April 5, 2025



6 अप्रैल, 2025 श्री राम जन्मोत्सव की हार्दिक शुभकामनायें

सरयू- तीर

अयोध्या नगरी में

राम जन्मे.

1.

चैत्र मास की,

शुक्ल पक्ष की नौंवी

राम जन्मे.

2.


        डॉ. मंजूश्री गर्ग
 


5 अप्रैल, 2025, शुभ दुर्गा अष्टमी की हार्दिक शुभकामनायें



 

Friday, April 4, 2025


अधर द्वार

दीप राम नाम का

रोशन मन.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Thursday, April 3, 2025



नेह की नमी

हँसी की धूप मिले

खिले जीवन.


            डॉ. मंजूश्री गर्ग 

Wednesday, April 2, 2025

 

छंद-विधान

डॉ. मंजूश्री गर्ग


हिन्दी भाषा के शब्द छन्द की व्युत्पत्ति संस्कृत के दो शब्दों से सम्भव है- छन्दस और छन्दक। छन्दक का अर्थ होता है हाथ में धारण करने वाला विशेष आभूषण और पाणिनी की अष्टाध्यायी में छन्दस शब्द को वेदों का बोधक बताया है। अमर कोश(छठी शताब्दी) में छन्द शब्द से अर्थ मन की बात या अभिप्राय लिया गया है। छन्द को वेद मंत्रों का आधार माना गया है। इसीलिये कहा गया है कि छन्दः पादौ तु वेदस्य


छन्द में आबद्ध पंक्तियाँ सहज ही कंठस्थ हो जाती हैं, इसीलिये संस्कृत-साहित्य से लेकर अब तक हिन्दी-कविता साहित्य, अपवाद स्वरूप प्रगतिवादी कविता को छोड़कर, छंदबद्ध ही लिखा जाता रहा है। छन्द के लिये कुछ बातों का होना आवश्यक है जैसे- चरण, गति, यति, लय और मात्रा।

1. चरण- चरण से अभिप्राय पंक्ति से है। छंद की प्रत्येक पंक्ति में वर्ण की संख्या या मात्राओं की संख्या या वर्ण वृत्तों की संख्या समान रहती है।

2. गति- गति से अभिप्राय प्रवाह से है। गति के कारण ही काव्य-पाठ में लय बनती है, बीच में रूकावट पैदा नहीं होती। गति के विषय में पं राम बहोरी शुक्ल ने कहा है- प्रत्येक छंद में मात्राओं या वर्णों की नियमित संख्या होने से ही काम नहीं चलता। उसमें एक प्रकार का प्रवाह भी होना चाहिये, जिससे पढ़ने मे कहीं रूकावट सी न जान पड़े। इस प्रवाह को गति कहते हैं।

3. यति- छंद बद्ध कविता के गायन के समय, समय-समय पर कुछ देर रूकना होता है, इसे यति कहते हैं। यति के माध्यम से कविता पाठ के समय ना तो पाठक का साँस टूटता है और ना लय बिगड़ती है। यति के विषय में पं राम बहोरी शुक्ल ने कहा है, बहुत से छंदों में बहुधा चरण के किसी स्थल पर रूकने या विराम की भी आवश्यकता होती है। इसके लिये नियमित वर्णों या मात्राओं पर थोड़ी देर रूकना पड़ता है। इस रूकने की क्रिया को यति, विराम या विश्राम कहते हैं।

4. लय- छंद में लय का विशेष महत्व है। लय का शाब्दिक अर्थ है- एक पदार्थ का दूसरे में मिलना, विलीन होना , मग्न होना। लय के माध्यम से ही एक पंक्ति के भाव दूसरी पंक्ति में विलीन होते जाते हैं।

5. मात्रा- मात्रा की परिभाषा देते हुये पं. राम बहोरी शुक्ल ने कहा है- किसी स्वर के उच्चारण में जो समय लगता है उसकी अवधि को मात्रा कहते हैं। इसी आधार पर दो मात्रायें मानी गयी हैं एक लघु और दूसरी गुरू

लघु मात्रा- जब किसी व्यंजन वर्ण में अ, , , ,लृ कोई लघु स्वर मिलता है या लघु स्वर स्वतंत्र रूप से आता है तो लघु मात्रा मानी जाती है। इसके उच्चारण में समय कम लगता है। लघु मात्रा का चिह्न( I ) है और गणना करते समय एक मात्रा गिनी जाती है।

जब किसी व्यंजन वर्ण में आ, , , , , , औ कोई दीर्घ स्वर संयुक्त होता है या दीर्घ स्वर स्वतंत्र रूप से आता है तो गुरू मात्रा मानी जाती है। इसके उच्चारण में समय अधिक लगता है। इसका चिह्न( S ) है और गणना करते समय दो मात्रायें गिनी जाती हैं।


हिन्दी में छंदों की तीन कोटियाँ हैं- वर्णिक, मात्रिक एवम् वर्णवृत्त।

वर्णिक छंद- वर्णिक छंदों में वर्णों(अक्षरों) की संख्या गिनी जाती हैं इनमें मात्राओं का महत्व नहीं होता। जैसे- कवित्त, मनहरण, हाइकु या घनाक्षरी छंद।

कवित्त का उदाहरण-

पहला चरण- भर दीजिये दिलों को, नव चेतना से फिर, रस की बरसती फुहार बन जाइये।

8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

दूसरा चरण- नयनों मे आये तो भी, हँसने की प्रेरणा दे, आप ऐसी आँसुओं की धार बन जाइये।

8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

तीसरा चरण- पापियों के पाप का विनाश करने के लिये, आज फिर तीर-तलवार बन जाइये।

8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

चौथा चरण- एक प्रज्वलित भाव-पुंज बन जाइये कि खौलता हुआ कोई विचार बन जाइये।

8 वर्ण + 8 वर्ण + 15 वर्ण

मात्रिक छंद- मात्रिक छंदों में प्रत्येक पंक्ति में मात्रायें गिनी जाती हैं। आधे अक्षर को कोई मात्रा नहीं दी जाती। आधे अक्षर से पहले वाले अक्षर को गुरू मान लिया जाता है यदि आधे अक्षर से ठीक पहले वाला अक्षर गुरू है तो आधे अक्षर को कोई मात्रा नहीं दी जाती। दोहा, चौपाई छंद मात्रिक छंद हैं। दोहा में दो पंक्तियाँ होती हैं। 13 और 11 मात्रा पर यति होती है और अंत में तुकांत होता है।

दोहा का उदाहरण-

पहली पंक्ति- भरी दुपहरी में खिले, गुलमोहर के फूल।

13 मात्रायें+11 मात्रायें

दूसरी पंक्ति- मन में सारे घुल गये उदालियों के शूल।।

13 मात्रायें +11 मात्रायें

वर्ण वृत्त छंद- वर्ण वृत्त छंदों की रचना गणों के आधार पर होती है। इसका सूत्र है यमाता राजभान सलगा। तीन वर्णों के समूह को गण कहते हैं। इन तीन वर्णों में दो एक जाति का और एक एक जाति का होता है। केवल दो गण ऐसे हैं जिनमें एक जाति के ही तीनों वर्ण होते हैं। यहाँ जाति से अभिप्राय लघु एवम् गुरू वर्णों से है। गुरू और लघु के आधार पर गणों के तीन वर्ग बनते हैं-

प्रथम- भजसा- भगण S I I

जगण I S I

सगण I I S

द्वितीय- यरता- यगण I S S

रगण S I S

तगण S S I

तृतीय- मन- मगण S S S

नगण I I I

उपर्युक्त वर्गीकरण में गणों का नामकरण गण में जाति(गुरू या लघु) विशेष के आधार पर किया गया है जैसे- भगण में भ वर्ण आदि में आया है और भजसा में भ आदि में आया है शेष दो वर्ण बाद में आये हैं, इसी प्रकार अन्य गणों का भी नामकरण किया गया है। अधिकांश हिन्दी गजलें वर्ण वृत्त् छंदों में ही लिखी जा रही हैं। सवैया वर्ण वृत्त छंद है।

सवैया का उदाहरण- सवैया छंद में चार चरण होते हैं प्रत्येक चरण में तुकांत होता है और गणों की व्यवस्था समान रहती है।

यदि आज मिले न हमें प्रिय तो कल देह में श्वास रहे न रहे।

सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा

आठ सगण के साथ यह दुर्मिल सवैया है।

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