छंद-विधान
डॉ.
मंजूश्री
गर्ग
हिन्दी
भाषा के शब्द छन्द
की व्युत्पत्ति
संस्कृत के दो शब्दों से सम्भव
है-
छन्दस और
छन्दक।
छन्दक का
अर्थ होता है हाथ में धारण
करने वाला विशेष आभूषण और
पाणिनी की अष्टाध्यायी में
छन्दस शब्द
को वेदों का बोधक बताया है।
अमर कोश(छठी
शताब्दी)
में छन्द
शब्द से
अर्थ मन की बात या अभिप्राय
लिया गया है। छन्द को वेद
मंत्रों का आधार माना गया है।
इसीलिये कहा गया है कि छन्दः
पादौ तु वेदस्य।
छन्द
में आबद्ध पंक्तियाँ सहज ही
कंठस्थ हो जाती हैं,
इसीलिये
संस्कृत-साहित्य
से लेकर अब तक हिन्दी-कविता
साहित्य,
अपवाद स्वरूप
प्रगतिवादी कविता को छोड़कर,
छंदबद्ध
ही लिखा जाता रहा है। छन्द के
लिये कुछ बातों का होना आवश्यक
है जैसे-
चरण,
गति,
यति,
लय और मात्रा।
1.
चरण-
चरण से
अभिप्राय पंक्ति से है। छंद
की प्रत्येक पंक्ति में वर्ण
की संख्या या मात्राओं की
संख्या या वर्ण वृत्तों की
संख्या समान रहती है।
2.
गति-
गति से
अभिप्राय प्रवाह से है। गति
के कारण ही काव्य-पाठ
में लय बनती है,
बीच में
रूकावट पैदा नहीं होती। गति
के विषय में पं राम बहोरी शुक्ल
ने कहा है-
प्रत्येक
छंद में मात्राओं या वर्णों
की नियमित संख्या होने से ही
काम नहीं चलता। उसमें एक प्रकार
का प्रवाह भी होना चाहिये,
जिससे
पढ़ने मे कहीं रूकावट सी न जान
पड़े। इस प्रवाह को गति कहते
हैं।
3.
यति-
छंद बद्ध
कविता के गायन के समय,
समय-समय
पर कुछ देर रूकना होता है,
इसे यति
कहते हैं। यति के माध्यम से
कविता पाठ के समय ना तो पाठक
का साँस टूटता है और ना लय
बिगड़ती है। यति के विषय में
पं राम बहोरी शुक्ल ने कहा है,
बहुत से
छंदों में बहुधा चरण के किसी
स्थल पर रूकने या विराम की भी
आवश्यकता होती है। इसके लिये
नियमित वर्णों या मात्राओं
पर थोड़ी देर रूकना पड़ता है।
इस रूकने की क्रिया को यति,
विराम
या विश्राम कहते हैं।
4.
लय-
छंद में
लय का विशेष महत्व है। लय का
शाब्दिक अर्थ है-
एक पदार्थ
का दूसरे में मिलना,
विलीन होना
, मग्न
होना। लय के माध्यम से ही एक
पंक्ति के भाव दूसरी पंक्ति
में विलीन होते जाते हैं।
5.
मात्रा-
मात्रा
की परिभाषा देते हुये पं.
राम बहोरी
शुक्ल ने कहा है-
किसी स्वर
के उच्चारण में जो समय लगता
है उसकी अवधि को मात्रा कहते
हैं। इसी
आधार पर दो मात्रायें मानी
गयी हैं एक लघु
और दूसरी
गुरू।
लघु
मात्रा-
जब किसी
व्यंजन वर्ण में अ,
इ,
उ,
ऋ,लृ
कोई लघु स्वर मिलता है या लघु
स्वर स्वतंत्र रूप से आता है
तो लघु मात्रा मानी जाती है।
इसके उच्चारण में समय कम लगता
है। लघु मात्रा का चिह्न(
I ) है और गणना
करते समय एक मात्रा गिनी जाती
है।
जब
किसी व्यंजन वर्ण में आ,
ई,
ऊ,
ए,
ऐ,
ओ,
औ कोई दीर्घ
स्वर संयुक्त होता है या दीर्घ
स्वर स्वतंत्र रूप से आता है
तो गुरू मात्रा मानी जाती है।
इसके उच्चारण में समय अधिक
लगता है। इसका चिह्न(
S ) है और गणना
करते समय दो मात्रायें गिनी
जाती हैं।
हिन्दी
में छंदों की तीन कोटियाँ हैं-
वर्णिक,
मात्रिक
एवम् वर्णवृत्त।
वर्णिक
छंद-
वर्णिक
छंदों में वर्णों(अक्षरों)
की संख्या
गिनी जाती हैं इनमें मात्राओं
का महत्व नहीं होता। जैसे-
कवित्त,
मनहरण,
हाइकु या
घनाक्षरी छंद।
कवित्त
का उदाहरण-
पहला
चरण-
भर दीजिये
दिलों को,
नव चेतना
से फिर,
रस की
बरसती फुहार बन जाइये।
8
वर्ण +
8 वर्ण +
15 वर्ण
दूसरा
चरण-
नयनों
मे आये तो भी,
हँसने
की प्रेरणा दे,
आप ऐसी
आँसुओं की धार बन जाइये।
8
वर्ण +
8 वर्ण +
15 वर्ण
तीसरा
चरण-
पापियों
के पाप का विनाश करने के लिये,
आज फिर
तीर-तलवार
बन जाइये।
8
वर्ण +
8 वर्ण +
15 वर्ण
चौथा
चरण-
एक प्रज्वलित
भाव-पुंज
बन जाइये कि खौलता हुआ कोई
विचार बन जाइये।
8
वर्ण +
8 वर्ण +
15 वर्ण
मात्रिक
छंद-
मात्रिक
छंदों में प्रत्येक पंक्ति
में मात्रायें गिनी जाती हैं।
आधे अक्षर को कोई मात्रा नहीं
दी जाती। आधे अक्षर से पहले
वाले अक्षर को गुरू मान लिया
जाता है यदि आधे अक्षर से ठीक
पहले वाला अक्षर गुरू है तो
आधे अक्षर को कोई मात्रा नहीं
दी जाती। दोहा,
चौपाई छंद
मात्रिक छंद हैं। दोहा में
दो पंक्तियाँ होती हैं। 13
और 11
मात्रा पर
यति होती है और अंत में तुकांत
होता है।
दोहा
का उदाहरण-
पहली
पंक्ति-
भरी दुपहरी
में खिले,
गुलमोहर
के फूल।
13
मात्रायें+11
मात्रायें
दूसरी
पंक्ति-
मन में
सारे घुल गये उदालियों के
शूल।।
13
मात्रायें
+11
मात्रायें
वर्ण
वृत्त छंद-
वर्ण वृत्त
छंदों की रचना गणों के आधार
पर होती है। इसका सूत्र है
यमाता राजभान सलगा। तीन वर्णों
के समूह को गण कहते हैं। इन
तीन वर्णों में दो एक जाति का
और एक एक जाति का होता है। केवल
दो गण ऐसे हैं जिनमें एक जाति
के ही तीनों वर्ण होते हैं।
यहाँ जाति से अभिप्राय लघु
एवम् गुरू वर्णों से है। गुरू
और लघु के आधार पर गणों के तीन
वर्ग बनते हैं-
प्रथम- भजसा- भगण S
I I
जगण I
S I
सगण I
I S
द्वितीय-
यरता-
यगण I
S S
रगण S
I S
तगण S
S I
तृतीय-
मन- मगण S
S S
नगण I
I I
उपर्युक्त
वर्गीकरण में गणों का नामकरण
गण में जाति(गुरू
या लघु)
विशेष के
आधार पर किया गया है जैसे-
भगण में भ
वर्ण आदि में आया है और भजसा
में भ आदि में आया है शेष दो
वर्ण बाद में आये हैं,
इसी प्रकार
अन्य गणों का भी नामकरण किया
गया है। अधिकांश हिन्दी गजलें
वर्ण वृत्त् छंदों में ही लिखी
जा रही हैं। सवैया वर्ण वृत्त
छंद है।
सवैया
का उदाहरण-
सवैया छंद
में चार चरण होते हैं प्रत्येक
चरण में तुकांत होता है और
गणों की व्यवस्था समान रहती
है।
यदि
आज मिले न हमें प्रिय तो कल
देह में श्वास रहे न रहे।
सलगा
सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा सलगा
सलगा
आठ
सगण के साथ यह दुर्मिल सवैया
है।
------------------