हिन्दी साहित्य
Friday, November 10, 2017
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
दिल की बात
समझे साजन जी
बिन कहे ही.
अटूट बँधे
मन के फेरे लिए
हम दोनों ने.
----
Thursday, November 9, 2017
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
तुमसे मिल
खनकती आवाज
बिन कंगन.
अरमानों को
पंख लगे हैं आज
तुमसे मिल.
-----
Tuesday, November 7, 2017
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
सब कह दे
चेहरा है आईना
लाख छुपायें.
ख्बाब सजे
नींद की टहनी पे
जागे तो टूटे.
------
Monday, November 6, 2017
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
चंद्र-कलायें
एक रात में देखी
घूँघट उठा.
चाँद हमारा
घूँघट में चमका
खिली चाँदनी.
----
Saturday, November 4, 2017
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
तुम आईं तो
खिला गुलाब अभी
मेरी साँसों में.
चंद्र-मुख
सीपी में मोती सम
देखा है मैंने.
----
Thursday, November 2, 2017
कौन कहता है...............
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
कौन कहता है
दीपक सिर्फ
प्रकाश देता है,
कालिख भी
देता है.
लेकिन
हमें चाह सिर्फ
रोशनी की होती है
और दीपक हम
इसीलिये जलाते हैं.
----------
Wednesday, November 1, 2017
हाइकु
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
वेदों की रक्षा
मत्स्य-रूप रख
प्रभु ने की थी.
अखंड पाठ
रामचरित गान
आनंदमय.
-----
Newer Posts
Older Posts
Home
Subscribe to:
Posts (Atom)