प्रिय का इन्तजार है............
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
प्रिय का इन्तजार है
और
हम संवरने बैठे हैं।
आकाश ने बिखेरे हैं
रंग औ’
हम कुंकुम लगाये
बैठे हैं।
मेंहदी ने बिखेरी है
खुशबू, औ’
हम मेंहदी लगाये
बैठे हैं।
हवायें लाई हैं
संदेशा, औ’
हम आँचल सँवारे बैठे
हैं।
प्रिय का इन्तजार
है, औ’
हम सँवरने बैठे हैं।
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