गोपी-चंदन
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
गोपियाँ मिलीं श्रीकृष्ण से
अंतिम बार द्वारिका में।
शिकवे कह भी ना पाईं
और देह चंदन हो गयी।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
श्रीकृष्ण के मथुरा जाने के बाद गोपियाँ श्रीकृष्ण के विरह में दिन-रात लीन
रहने लगीं. ना उन्हें अपनी सुध रही और ना परिवार की. दिन-प्रतिदिन कृशकाय होती गयीं.
श्रीकृष्ण चाहकर भी मथुरा से वापस वृन्दावन नहीं आ पाये, वरन् परिस्तिथि वश उन्हें
समुद्र में द्वारिकापुरी बसानी पड़ी. एक बार सब वृन्दावनवासी कान्हा से मिलने द्वारिकापुरी
गये, वहाँ गोपियों की अति दयनीय दशा देखकर कान्हा अश्रु-विह्वल हो गये. ना अपनी व्यथा कह
पाये ना गोपियों की सुन पाये. अपनी योगमाया से श्रीकृष्ण ने गोपियों को वहीं
द्वारिका की मिट्टी में समाहित कर दिया. वहाँ की मिट्टी चंदन की तरह महकने लगी. आज
भी द्वारिका में गोपी-चंदन मिलता है, जिसे भक्तगण प्रसाद के रूप में अपने साथ लाते
हैं.
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