Sunday, July 23, 2017


मैं कुम्हार के चाक चढ़ी
फिर आग में तपी
तब छोटा दीप बनी।
अब सदा जलना है
करने रोशन जहाँ सारा।

                डॉ0 मंजूश्री गर्ग

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