Wednesday, August 16, 2017



भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार


डॉ0 मंजूश्री गर्ग

भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार भारतीय साहित्य का सर्वोपरि सम्मान है क्योंकि हमारे बहुभाषी राष्ट्र के संविधान में परिगणित मान्यता प्राप्त अठारह भाषाओं में से चुनकर किसी एक सर्वोत्कृष्ट कृति या साहित्यकार के सम्मान में दिया जाने वाला सर्वप्रथम पुरस्कार है. पुरस्कार राशि ग्यारह लाख रूपये(प्रारम्भ में एक लाख रूपये) के साथ पुरस्कार विजेता को वाग्देवी की कांस्य-प्रतिमा पुरस्कार-प्रतीक के रूप में दी जाती है और पंच धातु से बना प्रशस्ति फलक समर्पित किया जाता है. पुरस्कार-प्रतीक के रूप में दी जाने वाली मूर्ति मूलतः धार, मालवा के सरस्वती मन्दिर की है, जिसकी स्थापना उज्जयिनी के विद्याव्यसनी नरेश भोज ने सन् 1035 ई0 में की थी. यह मूर्ति अब ब्रिटिश म्यूजियम लंदन में है. भारतीय ज्ञानपीठ ने साहित्य-पुरस्कार के प्रतीक के रूप में इसे ग्रहण करते हुये शिरोभाग के पार्श्व में प्रभामण्डल और सम्मिलित किया गया है. उसमें तीन रश्मि-पुंज हैं जो भारत के प्राचीनतम जैन तोरण-द्वार(कंकाली-टीला, मथुरा) के रत्नत्रय को निरूपित करते हैं. हाथ में कमण्डलु, पुस्तक, कमल अक्षमाला ज्ञान और आध्यात्मिक अन्तर्दृष्टि के प्रतीक हैं.

भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार की परिकल्पना का श्रीगणेश 22 मई, सन् 1961 ई0 को भारतीय ज्ञानपीठ के संस्थापक साहू शान्तिप्रसाद जैन की पंचाशत् अबदपूर्ति के अवसर पर हुआ जबकि उनके परिवार के सदस्यों के मन में साहित्यिक या
 सांस्कृतिक क्षेत्र में किसी ऐसी महत्वपूर्ण योजना का विचार उपजा जो कि राष्ट्रीय गौरव और अन्तर्राष्ट्रीय मानदण्डों के अनुरूप हो. इस विचार को व्यवहारिक रूप देने की पहल श्रीमती रमा जैन ने की. श्रीमती रमा जैन ने 16 सितम्बर, 1961 ई0 को भारतीय ज्ञानपीठ के न्यासी मण्डल की बैठक में समस्त भारतीय भाषाओं के सुविख्यात लेखकों की प्रतिनिधि रचनाओं के हिन्दी अनुवाद प्रकाशित करने के उद्देश्य से स्थापित राष्ट्रभारतीय ग्रन्थमाला पर विचार के समय एक ऐसे पुरस्कार का प्रश्न उठाया जो हम भारतीय भाषाओं में प्रकाशित किसी एक ऐसी पुस्तक को दिया जाये जो सर्वश्रेष्ठ हो. इस विचार को व्यवहारिक रूप देने के लिये देश के विभिन्न भागों के साहित्यकारों और साहित्य मर्मज्ञों से व्यापक विचार विमर्श किया गया.

विभिन्न भाषाओं में से एक सर्वोत्कृष्ट कृति(जैसा कि पहले 17 पुरस्कारों तक नियम था) या साहित्यकार(जैसा कि अब अठारवें पुरस्कार से नियम है) के चयन का कार्य अत्यन्त कठिन और जटिल है. किसी साहित्यकार पर विचार करते समय भाषा समिति को उसके सम्पूर्ण कृतित्व का मूल्यांकन तो करना ही होता है साथ ही समसामयिक भारतीय साहित्य की पृष्ठभूमि में भी परखना होता है. नियम के अनुसार जिस भाषा को एक बार पुरस्कार मिलता है, उस पर अगले तीन वर्ष तक विचार नहीं किया जाता. भाषा परामर्श समितियों की अनुशंसा प्रवर-परिषद् के समक्ष जाती है. प्रवर-परिषद् में कम से कम सात और अधिक से अधिक ग्यारह सदस्य होते हैं. प्रवर-परिषद् भाषा परामर्श संस्तुतियों का तुलनात्मक अध्ययन करती है. विचारार्थ लेखक की कृतियों का आवश्यकतानुसार हिन्दी और अंग्रेजी में अनुवाद कराया जाता है. कभी-कभी विचारार्थ साहित्यकारों के तुलनात्मक अध्ययन प्रख्यात और विद्वान समालोचकों से भी कराये जाते हैं. पर्याप्त विचार-विमर्श के बाद ही पुरस्कार के लिये साहित्यकार का चयन होता है. इस चयन का पूरा दायित्व प्रवर-परिषद् का है, भारतीय ज्ञानपीठ के न्यासी मण्डल का इसमें कोई हाथ नहीं होता है.

प्रथम भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार सन् 1965 ई0 में मलयालम भाषा के कवि श्री जी0 शंकर कुरूप को ओटक्कुषल् काव्य-संग्रह के लिये दिया गया. तब से निरन्तर विबिन्न भाषा-भाषी लेखक और कवि भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त करते आ रहे हैं और भारत की राष्ट्रीय एकता व अखण्डता को मजबूती प्रदान कर रहे हैं. पुरस्कार प्राप्ति के समय पुरस्कृत लेखकों द्वारा दिये अभिभाषण के कुछ अंश भी हमारी वैचारिकता और सांस्कृतिक एकता को अभिव्यक्त करते हैं. जैसा कि सच्चिदानन्द राउतराय ने कहा, भारत का प्रत्येक साहित्य – चाहे वह हिन्दी, उर्दू, तेलगू, तमिल, मलयालम, गुजराती, मराठी अथवा बंगला, उड़िया या असमिया किसी भी भाषा में हो, समग्ररूप से देश की वैचारिकता और संस्कृति का एक ही प्रकार से प्रतिनिधित्व करता है. इसके साथ-साथ हम सबने स्वातन्त्रय पूर्व और स्वातन्त्रोत्तर काल दोनों में ही, विदेशी शासन के अधीन तथा पश्चिमीकरण और उद्योगीकरण के प्रभावों के अन्तर्गत एक ही प्रकार के अनुभवों तथा स्थितियों में भागीदारी की है. अतः भारत की प्रत्येक भाषा के साहित्य में सामाजिक परिस्थितियों के साथ-साथ सामाजिक विषय वस्तु की दृष्टि से समानता पाई जाती है.
भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार प्राप्त लेखकों व कवियों के नाम व पुरस्कार वर्ष हैं-



लेखक व कवि                                प्रकाशन वर्ष

1. श्री जी0 शंकर कुरूप      (मलयालम भाषा)                1965
2. श्री ताराशंकर बन्द्योपाध्याय(बांग्ला भाषा)                   1966
3. डॉ0 कुप्पल्लि वेंकटप्प पुट्टप्प(कन्नड़ भाषा)                 1967
4. श्री उमाशंकर जोशी(गुजराती भाषा)                         1967
5. श्री सुमित्रानंदन पंत(हिन्दी भाषा)                          1968
6. फिराक गोरखपुरी(उर्दू भाषा)                              1969
7. विश्वनाथ सत्यनारायण(तेलगू भाषा)                        1970
8.कविश्री विष्णु दे(बांग्ला भाषा)                              1971
9. श्री रामधारी सिंह दिनकर(हिन्दी भाषा)                     1972
10. डॉ0 दत्तात्रेय रामचन्द्र बेन्द्रे(कन्नड़ भाषा)                  1973
11. श्री गोपीनाथ महांति(उड़िया भाषा)                        1973
12. श्री विष्णु सखाराम खाड़ेकर(मराठी भाषा)                  1974
13. श्री पे0 वै0 अखिलन्दम्(तमिल भाषा)                     1975
14. श्रीमती आशापूर्णा देवी(बांग्ला भाषा)                      1976
15. श्री के0 शिवराम कारंत(कन्नड़ भाषा)                     1977
16. श्री सच्चिदानंद हीरानंद वात्स्यायन अज्ञेय(हिन्दी भाषा)       1978
17. श्री वीरेन्द्र कुमार भट्टाचार्य(असमिया भाषा)                1979
18. श्री शंकरन् कुट्टी पोट्टेकाट(मलयालम भाषा))               1980
19 श्रीमती अमृता प्रीतम(पंजाबी भाषा)                        1981
20. श्रीमती महादेवी वर्मा(हिन्दी भाषा)                        1982
 21. श्री मस्ती वेंकटेश अय्यंगर(कन्नड़ भाषा)                  1983
22. श्री तक्षी शिवशंकर पिल्लै(मलयालम भाषा)                 1984
23. श्री पन्नालाल पटेल(गुजराती भाषा)                       1985
24. श्री सच्चिदानंद राउतराय(उड़िया भाषा)                    1986
25. श्री विष्णु शिरवाडकर(मराठी भाषा)                       1987
26. डॉ0 सी0 नारायण रेड्डी(तेलगू भाषा)                     1988
27. सुश्री कुर्रतुलऐन हैदर(उर्दू भाषा)                         1989
28. विनायक कृष्ण गोकाक(कन्नड़ भाषा)                     1990
29. सुभाष मुखोपाध्याय(बांग्ला भाषा)                        1991
30. श्री नरेश मेहता(हिन्दी भाषा)                           1992
31. श्री सीताकान्त महापात्र(उड़िया भाषा)                     1993
32. श्री उडिपि राजगोपालाचार अनन्त मूर्ति(कन्नड़ भाषा)         1994
33. श्री मदथ तेक्केपाट वासुदेवन नायर(मलयालम भाषा)         1995
34.श्रीमती महाश्वेता देवी(बांग्ला भाषा)                        1996
35. श्री अली सरदार जाफरी(उर्दू भाषा)                        1997
36. श्री गिरिश कर्नाड(कन्नड़ भाषा)                          1998
37. श्री निर्मल वर्मा(हिन्दी भाषा)                            1999
38. श्री गुरदयाल सिंह(पंजाबी भाषा)                         1999
39. इंदिरा गोस्वामी(असमिया भाषा)                         2000
40. श्री राजेन्द्र केशव लाल शाह(गुजराती भाषा)                2001
41. दण्डपाणि जयकांथन(तमिल भाषा)                       2002
42. श्रीमती विंदा करंदीकर(मराठी भाषा)                      2003
 43. श्री रहमान राही(कश्मीरी भाषा)                          2004
44. श्री कुँवर नारायण(हिन्दी भाषा)                          2005
45. श्री रवीन्द्र केलकर(कोंकणी भाषा)                         2006
46. श्री सत्यव्रत शास्त्री(संस्कृत भाषा)                        2006
47. ओ0 एन0 वी0 कुरूप(मलयालम भाषा)                    2007
48. अखलाक मुहम्मदखान शहरयार(उर्दू भाषा)                 2008
49. श्री अमरकान्त(हिन्दी भाषा)                            2009
50 श्री लाल शुक्ल(हिन्दी भाषा)                             2009
51. चन्द्रशेखर कम्बार(कन्नड़ भाषा)                         2010
52. प्रतिभा राय(उड़िया भाषा)                              2011
53. राबुरि भारद्वाज(तेलगू भाषा)                           2012
54. केदारनाथ सिंह(हिन्दी भाषा)                            2013
55. भालचन्द्र नेमाडे(मराठी भाषा)                           2014
56. रघुवार चौधरी(गुजराती भाषा)                           2015
57. शंख घोष(बांग्ला भाषा)                                2016

सन् 1965 ई0 से अब तक सत्तावन साहित्यकारों को भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित किया गया है. दस बार हिन्दी भाषा के साहित्यकार सम्मानित हुये हैं. पाँच बार साहित्यकारों को सह-गौरव प्राप्त हुआ है अर्थात् एक वर्ष में दो साहित्यकार भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित हुये हैं जैसे- वर्ष 1967 में डॉ0 कुप्पल्लि वेंकटप्प पुट्टप्प(कन्नड़ भाषा) और श्री उमाशंकर जोशी(गुजराती भाषा) को सह-गौरव प्राप्त हुआ था. सह-गौरव प्राप्त होने पर पुरस्कार राशि आधी-आधी दोनों साहित्यकारों को दी जाती है.

जब सम्पूर्ण भारतीय वाङ्मय की विचार भूमि एक है, तब भाषा के भेद को भुलाकर भारतीय ज्ञानपीठ ने किसी एक साहित्यकार या साहित्यिक कृति को पुरस्कृत करने की योजना बनाकर बहुत ही सराहनीय कार्य किया है. जैसा कि रामधारी सिंह दिनकर ने कहा है- भारतीय ज्ञानपीठ पुरस्कार से केवल साहित्य की ही सेवा नहीं हो रही है, उससे भारत की भावात्मक एकता में भी वृद्धि हो रही है.

                       






















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