रिमझिम-रिमझिम बूदों
में
बरस रहा सावन।
धीरे-धीरे मन को
हरषा रहा सावन।
झर-झर, झर-झर पत्तों
से
झर रहा पानी।
हरियाली, खुशहाली
दिखा रहा सावन।
झूलों की पेंगे संग,
मन की पेंगें बढ़ी।
बढ़ने की नई आस
जगा रहा सावन।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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