हिन्दी गजल में प्रेम की
अभिव्यक्ति
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
हिन्दी गजलें मुख्यतः
सामाजिक व राजनीतिक विसंगतियों व विद्रूपताओं पर लिखी गयी हैं लेकिन पारम्परिक गजल
का मुख्य विषय प्रेम है और हिन्दी गजलों में भी प्रेम के विविध रंग हमें देखने को
मिलते हैं. वास्तव में प्रेम जीवन के लिये अति आवश्यक है उसके बिना जीवन या तो रेत
है या पत्थर. प्रेम ही वह तरलता है, वह प्रवाह है जिसमें बहकर जीवन धन्य हो जाता
है.
हिन्दी गजलों में प्रेम के
दोनों पक्षों(संयोग पक्ष और वियोग पक्ष) से जुड़ी विविध अनुभूतियों की अभिव्यक्ति
हमें देखने को मिलती हैं.
संयोग पक्ष की विविध
अभिव्यक्तियाँ-
संयोग के क्षणों मे
प्रेमी-प्रेमिका आनंद से अभिभूत हो अपने प्रिय और प्रियतमा का रूप वर्णन करते
हैं, आस-पास का सारा वातावरण उन्हें सुखद प्रतीत होता है. प्रस्तुत गजलांशों में
नायक-नायिका एक-दूसरे के रूप-गुणों का वर्णन कर रहे हैं-
शोखी है बाँकपन है, अगन है
तेरी नजर में
इतनी शराब है कि मयखाने झूम
जायें।
अदम गोंडवी
अधर प्रकंपित, कपोल रक्तिम,
नयन ढरारे उड़े से कुंतल
सुशान्त, निर्लिप्त, मुक्त
प्रतिमा से प्रेम-प्रतिमा निकल रही है।
रमेश शेखर
मदिर संकेत देते हैं
तुम्हारे मद भरे लोचन
हमें जीने नहीं देगा
तुम्हारा तन, हमारा मन।
कृष्ण ‘शलभ’
एक जंगल है तेरी आँखों में
मैं जहाँ राह भूल जाता हूँ।
दुष्यंत कुमार
प्रिय का सामीप्य इतना सुखद
होता है कि व्यक्ति हर मुश्किल में भी जी सकता है. अपने प्रिय के हाथों अपना जीवन
समर्पित कर अपने को धन्य समझता है. प्रस्तुत गजलांशों में प्रेमी दिलों के ऐसे ही
विविध भावों को अभिव्यक्त किया है-
तनावों के ये परदे अपनी
दीवारों से हटवा दो
सहज मन से, समर्पण का, बहल
जाने का मौसम है।
डॉ0
वीरेन्द्र शर्मा
बड़ा उदास सफर है हमारे साथ
रहो
बस एक तुम पै नजर है हमारे
साथ रहो।
तुम्हें ही छाँव समझकर यहाँ
चले आए
तुम्हारी गोद में सर है
हमारे साथ रहो।
डॉ0 कुँअर बेचैन
मिलन के पलों में सारा
वातावरण ही सुखद प्रतीत होता है-
हवा में घुँघरू से बज उठे
थे, दिशायें करवट बदल रही थीं
किरन के घूँघट में मुँह
छिपाकर तुम आ रहे थे पता नहीं था।
गुलाब खण्डेलवाल
प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे
को अपने ह्रदय की इच्छायें अभिव्यक्त करते हैं. प्रस्तुत गजल प्रेमी के सात्विक
प्रेम को अभिव्यक्त करती है-
सजीले रंग बन-बनकर कभी मुझ
पर बिखरियेगा
मैं इक तस्वीर हूँ मुझमें
में भी कोई रंग भरियेगा।
नजर के आसमाँ पर चाँदनी के
फूल खिलते हैं
लगाकर सीढ़ियाँ इससे न अब
नीचे उतरियेगा।
गुलाबी पाँखुरी की सेज से
खुशबू यही बोली
मुझे छूना मना है बस मुझे
महसूस करियेगा।
हमें जब आपकी आँखों ने सब
पैगाम दे डाले
भला खामोश क्यों बैठे हैं
कुछ तो बात करियेगा।
डॉ0
कुँअर बेचैन
मिलन के क्षणों मे
प्रेमी-प्रेमिका एक-दूसरे को अपने मन की अभिलाषायें अभिव्यक्त करते हैं जैसे कि
प्रस्तुत शेअरों में शायरों ने अभिव्यक्त किया है-
उदासी के किले में तुम कभी
भी कैद मत होना
हमारी याद आये जब तभी
मुस्करा लेना।
नित्यानंद तुषार
मेरे गीत तुम्हारे पास
सहारा पाने आएँगे
मेरे बाद तुम्हें ये मेरी
याद दिलाने आएँगे।
दुष्यंत
कुमार
मेंहदी की, महावर की करो
रंग की बातें
कर लेंगे सुबह बैठ के मंसूर
की चर्चा।
रामावतार त्यागी
संयोग के क्षणों में
प्रेमी-प्रेमिका को अलौकिक आनंद की अनुभूति होती है और दोनों के मन की गति, तन की
गति में स्वतः ही परिवर्तन आ जाते हैं. ऐसे ही
मिलन के सुखद पलों की
अभिव्यक्ति प्रस्तुत शेअरों में देखने को मिलती है-
मन में अनंग अंग मेरा
हल्दिया हुआ,
लज्जा से लाल-लाल पलक तक
खुली नहीं।
भवानी शंकर
खुद से आँख मिलाता है
फिर बेहद शरमाता है।
विज्ञान व्रत
भाल पे होंठ किसने रखे
जिंदगी में महावर घुली।
दृष्टि वो बन गई बाँसुरी
देह ये हो चली गोकुली।
शिवओम अम्बर
थिरकर, काँपकर, हँसकर,
सहमकर और शरमाकर
किसी नाजुक हथेली पर हथेली
खुल गई होगी।
डॉ0 कुँअर
बेचैन
नायक-नायिका के पूर्ण
समर्पित भावों की अभिव्यक्ति प्रस्तुत गजलांश में देखने को मिलती है-
तुम्हें मेरी कसम, मेरी कसम
है प्रीति के पथ में
कभी मत पूछना हमसे, कहाँ
जाना किधर जाना।
तुम्हारे साथ अब चल दिए, चल
ही दिए तो फिर
तुम्हारे साथ ही जीना,
तुम्हारे साथ मर जाना।
महकते प्यार की राहों पै
आगे ही बढ़ेंगे हम
भला अब लौटना कैसा, भला अब
कैसा घर जाना।
डॉ0 रमा
सिंह
वियोग पक्ष की विविध
अभिव्यक्तियाँ-
प्रेम के संयोग पक्ष के
विविध क्षणों व विविध अनुभूतियों को अभिव्यक्त करने के साथ-साथ हिन्दी गजलों में
प्रेम के वियोग पक्ष की विविध अनुभूतियों की अभिव्यक्ति भी देखने को मिलती है.
हिन्दी गजल साहित्य में विरह उत्पन्न करने वाली चार अवस्थाओं(पूर्वराग, मान,
प्रवास, करूण) से जुड़ी गजलें व विरह में उत्पन्न नायक-नायिका की विभिन्न
दशाओं(अभिलाषा. चिंता, स्मरण, गुणकथन, उद्वेग, उन्माद, प्रलाप, जड़ता, व्याधि,
मूर्च्छा, मरण) को अभिव्यक्त करती हुई गजलें कही गयी हैं.
पूर्वराग में प्रेमी या प्रेमिका की
प्रेम होने से पहले की दशा का वर्णन किया जाता है जबकि नायक या नायिका को किसी का
चित्र देखकर या गुणकथन सुनकर या देखने मात्र से प्रेम हो जाता है. मन ही मन मिलने
की तड़प बनी रहती है या मन ही मन उसका गुणगान करते रहते हैं. प्रस्तुत गजलांशों
में प्रेमियों की ऐसी ही विरहजन्य अनुभूतियों को अभिव्यक्त किया गया है-
दिल में हमने जब भी झांका
बस मिलन की चाह थी
दूसरा कोई न था बस आह केवल
आह थी।
डॉ0 रमा सिंह
मैं अपने बन्द होठों में
लरजकर हंसती रहती हूँ
तेरी यादें अकेले में बहुत
ही गुदगुदाती हैं।
डॉ0 रमा सिंह
कभी होठों पे दिल की बेबसी
लायी नहीं जाती
कुछ ऐसी बात है जो कह के
बतलायी नहीं जाती।
गुलाब
खण्डेलवाल
प्रस्तुत गजलांश में ऐसे
प्रेमी का वर्णन किया गया है जो साहसी बन अपनी प्रेमिका से मिलने जाने को तत्पर
होता है-
उस एक अपरिचय को पहचान किया
जाए
यह सोच के ही घर से प्रस्थान
किया जाए।
चाँदी की हथेली पर फिर चाँद
सा चेहरा है
अब सीप के मोती का शुभ
ध्यान किया जाए।
मृग-मीन कमल खंजन उपमान रहे
जिनके
उन नैन को इन सबका उपमान किया
जाए।
मन्दिर की तरह जिसका आलोक
निखरता है
उस रूप का दर्शन कर सम्मान
किया जाए।
डॉ0 कुँअर बेचैन
वियोग के दूसरे कारण मान
में नायक-नायिका दोनों एक-दूसरे को दिलो-जाँ से चाहते हैं, लेकिन कभी-कभी उनका
अहम् उनके प्यार के बीच आ जाता है जो दोनों को एक-दूसरे से अलग कर देता है. किन्तु
यह दूरी क्षणिक होती है क्योंकि नायक के रूठने पर नायिका और नायिका के रूठने पर
नायक कोशिश करता है कि सुलह हो जाये. गुस्से में भी दोनों का प्यार नजर आता है.
ऐसे ही भावों की अभिव्यक्ति प्रस्तुत गजलांशों में देखने को मिलती है-
दिल चाहे दो न दो हमें,
मीठी नजर तो दो
मेरी खबर न लो मगर अपनी खबर
तो दो।
कविता ‘किरण’
मैंने कब चाहा पलकों पे
बिठाए रखिए
हो सके तुमसे तो यह साथ
निभाए रखिए।
तेरे गम में जगह मैंने कहाँ
मांगी है
शामिले गम तो मुझे अपनी
बनाए रखिए।
सिर्फ अपनों में मेरा नाम
ही शामिल कर लो
कौन कहता है कि यादों में
बसाए रखिए।
अजीज आजाद
अपने रूठे प्रेमी को मनाने
के लिये विरही कभी ईश्वर से अपने प्रिय के लिये दुआ माँगता है और कभी अपनी बरबादी
को सहज स्वीकार कर लेता है जैसा कि प्रस्तुत शेअरों में कहा है-
तुम सलामत रहो, आबाद रहो,
शाद रहो
अब तो हर शामो सहर दिल यह
दुआ माँगे है।
मनु नीरस
अपनी बरबादी का कोई गम नहीं
है अब ‘मनु’
उनको रास आने लगीं हैं अब
मेरी बरबादियाँ।
मनु नीरस
प्रवास मे किसी कारणवश
प्रेमी-प्रेमिका को एक-दूसरे से अलग परदेस में रहना पड़ता है. विरह की विविध दशाओं का
प्रतिफलन इसी अवस्था में होता है. परदेस में रहकर पत्र न लिख पाने की बेबसी
प्रस्तुत शेअर में अभिव्यक्त हुई है-
पत्र तो तुमको लिखेंगे हम
जरूर
हो तनिक फुरसत तुम्हारी याद
से।
चन्द्रभाल ‘सुकुमार’
प्रेमी या प्रेमिका परदेस
से आने का वायदा तो कर जाते हैं लेकिन किसी कारणवश आ नहीं पाते. ऐसी अवस्था में
विरही ह्रदय तरह-तरह के प्रलाप करने लगते हैं. ऐसे ही भावों की अभिव्यक्ति
प्रस्तुत पंक्तियों में हो रही है-
जिसकी खुशबू से दिल महकता
था
अब वह चेहरा नजर नहीं आता।
दिल तड़पता है देखने को मगर
जो गया लौटकर नहीं आता।
प्रो0 शहाब अशरफ
प्रस्तुत गजल की पंक्तियाँ
प्रतीक्षा में रत विरही प्रेमी या प्रेमिका की चिंताजनक अवस्था को अभिव्यक्त करती
हैं-
मैं खोजता रहा हूँ सदा उनको
आह में
मेरी जिन्दगी वियोग की थाती
हो गई।
राजेन्द्र ‘राजन’
सैंकड़ों खतरे सदा परदेस का
रहना बुरा
सूखना हरदम फिकर से डाकिया
बीमार है।
राम कुमार ‘कृषक’
प्रस्तुत पंक्तियाँ विरह या
विरहणी की जड़ अवस्था को अभिव्यक्त करती हैं-
मैं आप अपनी खामोशी की गूँज
में गुम था
मुझे ख्याल नहीं, किस ने
क्या कहा मुझको।
मख्मूर
सईदी
गम का पर्वत तम का झरना
कितना मुश्किल यहाँ ठहरना।
गायब मस्ती इतनी पस्ती
खुद से ही घबराना डरना।
मरना भी महसूस ना होता
कुछ यों धीमे-धीमे मरना।
डॉ0 शेरजंग गर्ग
हिन्दी गजलों में कुछ
उदाहरण ऐसे भी देखने को मिलते हैं जब प्रेमी या प्रेमिका दूर रहने पर भी प्रकृति
के माध्यम से सामीप्य बनाये रखते हैं-
ये जमीन तप रही थी ये मकान
तप रहे थे
तेरा इंतजार था जो मैं इसी
जगह रहा हूँ।
मैं ठिठक गया था लेकिन तेरे
साथ-साथ मैं
तू अगर नदी हुई तो मैं तेरी
सतह रहा हूँ।
सर पे धूप आयी तो दरख्त बन
गया मैं
तेरी जिन्दगी में अक्सर कोई
वजह रहा हूँ।
दुष्यंत कुमार
जहाँ विरह की प्रवास की
अवस्था में हर पल प्रिय के आने का इंतजार रहता है वहीं विरह की मरण अवस्था
अत्यधिक दयनीय हो जाती है. मरण अवस्था में प्रेमी-प्रेमिका में से अचानक किसी एक
की मृत्यु हो जाती है और दूसरे का जीना दूभर हो जाता है क्योंकि मरण अवस्था के
कारण उत्पन्न विरह में मिलने की कोई राह शेष नहीं रहती है.
हिन्दी गजल के प्रस्तुत शेअर में मरण अवस्था से उत्पन्न विरह की बहुत ही मार्मिक
अनुभूति की अभिव्यक्ति हुई है-
हम द्वार पर खड़े थे पत्रों
की प्रतीक्षा में
पर तार हाथ आया प्रिय प्रीति के निधन का।
डॉ0 कुँअर
बेचैन
कहाँ तो प्रेमी प्रिय के
पत्रों की प्रतीक्षा कर रहा हो, कहाँ उसी समय उसे प्रीति के निधन का समाचार मिले,
इससे अधिक दुःख और क्या होगा? ऐसी करूण अवस्था में विरही या तो पागल हो जाता है या
मूर्च्छित हो जाता है या उम्र भर के लिये रोग-ग्रस्त हो जाता है. दुःख की ऐसी करूण
अवस्था में आँसुओं का बह जाना ही अच्छा होता है-
आँखों तक आने दो आँसू
वर्ना ये उत्पात करेंगे।
डॉ0 कुँअर
बेचैन
इस प्रकार हिन्दी गजल
साहित्य में प्रेमविषयक गजलें अनुपात की दृष्टि से कम होती हुई भी प्रायः
प्रेमविषयक सभी पक्षों को अभिव्यक्त करती हैं.
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