Monday, August 21, 2017


                           प्रतीक-विधान

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


प्रतीक का सामान्य अर्थ संकेत, चिह्न है जिसका प्रयोग किसी अन्य के स्थान पर किया जाता है। दूसरे शब्दों में जब कोई पदार्थ किसी भाव या विचार का संकेत बन जाता है, तो प्रतीक कहलाता है. जैसे- कबीर की रचनाओं में हंस आत्मा का प्रतीक बनकर आया है. प्रतीक-योजना साहित्य में कथ्य को न केवल आकर्षक रूप प्रदान करती है, वरन् कथ्य के अर्थ को व्यापक आयाम भी देती है. प्रतीक का अप्रस्तुत योजना से विशेष सम्बन्ध है. कवि व लेखक के मन की अनुभूति से पाठक के मन से तादात्मय स्थापित कराने के एक विशेष साधन का नाम प्रतीक विधान है.

साहित्यकार अपनी रचना में प्रतीक योजना चार प्रकार से करता है-

1.     मूर्त प्रस्तुत विषय के लिये मूर्त प्रतीक योजना
2.     अमूर्त प्रस्तुत विषय के लिये अमूर्त प्रतीक योजना
3.     मूर्त प्रस्तुत विषय के लिये अमूर्त प्रतीक योजना
4.     अमूर्त प्रस्तुत विषय के लिये मूर्त प्रतीक योजना

विषय के आधार पर प्रतीकों के निम्नलिखित भेद हैं-

क.  प्राकृतिक प्रतीक
ख.  पौराणिक प्रतीक
ग.   पौराणिक प्रतीकों का आधुनिकीकरण
घ.   रूढ़ प्रतीक
ङ.    नवीन प्रतीक

क.प्राकृतिक प्रतीक-

प्रकृति मानव की अभिन्न सहचरी है. साहित्यकार प्रत्येक भाव को प्रकृति में होता हुआ देख लेता है और प्रकृति से अपने प्रतीक चुनकर सहज ही अपने भावों को अभिव्यक्त कर देता है. प्रकृति से चुनकर साहित्य में प्रयुक्त प्रतीक ही प्राकृतिक प्रतीक कहलाते हैं.

उदाहरण-

कोई भी रितु हो, कैसे भी दिन हों।
हम हैं सूरज, हमें तो तपना है।।

उपर्युक्त पंक्तियों में सूरज ऐसे व्यक्ति का प्रतीक है, जिसे प्रत्येक परिस्थिति में संघर्ष करना पड़ता है जैसा कि सूरज प्रत्येक रितु में तपता है. यहाँ मूर्त के लिये मूर्त प्रतीक का प्रयोग किया गया है.

ख.पौराणिक प्रतीक-

पौराणिक प्रतीकों से अभिप्राय ऐसे प्रतीकों से है जो चिरप्रचलित रामायण, महाभारत के पौराणिक आख्यानों को आधार बनाकर साहित्य में प्रयुक्त होते हैं.

उदाहरण-

     आँसू और दर्द के संग जब आह भी चली तो,
     संदर्भ याद आया श्री राम वन गमन का।

उपर्युक्त पंक्तियों में पौराणिक प्रसंग को प्रतीक बनाकर आँसू, दर्द और आह अमूर्त
भावों को मूर्त रूप दिया गया है. राम-वन-गमन के समय जब राम औऱ लक्ष्मण के साथ सीता भी वन को चलीं, तो ऐसा ही लगा जैसे आँसू और दर्द के साथ आह भी हो.

ग.पौराणिक प्रतीकों का आधुनिकीकरण-

आधुनिक साहित्य में पौराणिक प्रतीकों की आधुनिक संदर्भ में नई व्याख्या भी की गयी है.

उदाहरण-

अश्वमेध करने निकले हो
घर में छुपे हुये हैं दुश्मन।

उपर्युक्त पंक्तियों में अश्वमेध यज्ञ(विश्व-विजय की कामना से किया जाने वाला यज्ञ) का आधुनीकीकरण किया गया है अर्थात् अश्वमेध यज्ञ(विश्व-विजय की कामना) बाद में कर लेना, पहले जो घर में दुश्मन छुपे हुये हैं उन पर तो विजय पा लो.

घ.रूढ़ प्रतीक-

कुछ प्रतीक ऐसे हैं जो किसी विशेष अर्थ के लिये रूढ़ हो गये हैं, ऐसे प्रतीक रूढ़ प्रतीक कहलाते हैं.

उदाहरण-

     कल उसे सड़कें भी देखेंगी
     जो महाभारत है आँगन में

महाभारत शब्द गृह-युद्ध के लिये रूढ़ प्रतीक बन गया है, उपर्युक्त पंक्तियों में इसी रूढ़ प्रतीक का प्रयोग हुआ है.

ङ.नवीन प्रतीक-

नवीन प्रतीक ऐसे प्रतीक हैं, जिनका प्रयोग आधुनिक साहित्य से पहले नहीं हुआ है.

उदाहरण-

     संभव है मेरे देश का नक्शा ही और हो
     मेड़े नहीं बनी हों अगर क्यारियों के बीच।

उपर्युक्त पंक्तियों में मेड़े औरक्यारियाँ क्रमशः राज्य की सीमा और राज्य की प्रतीक हैं. दोनों ही प्रतीक सर्वथा नवीन हैं और देश का राजनीतिक चित्र खींचने में पूर्ण समर्थ हैं
प्रतीक के साथ उपमा, रूपक और अन्योक्ति अलंकारों की चर्चा की जाती है, किंतु इन सब अलंकारों का प्रतीक से मूलभूत अन्तर है. प्रतीक और उपमा अलंकार में मुख्य अन्तर यह है कि प्रतीक संदर्भ विशेष से जुड़े होते हैं जबकि उपमा अलंकार में सादृश्य का विधान होता है. प्रतीक और रूपक अलंकार में मुख्य अंतर यह होता है कि प्रतीक में रूपक की अपेक्षा अधिक अर्थ गांभीर्य होता है. प्रतीक प्रस्तुत रहता है जबकि रूपक में आरोपण किया जाता है. प्रतीक और अन्योक्ति अलंकार में मुख्य अंतर सीमा का है प्रतीक का क्षेत्र बहुत व्यापक है जबकि अन्योक्ति का सीमित.

8 comments:

  1. मेरी समझ में आपका लेख दिल तक पहुंच गया जी।

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  2. बहुत सरल explanation. Can you tell name of
    poet/ writer who is using modern symbol in her/his writing? Regard

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  3. बहुत ज्यादा अच्छा लेख ।

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