पं. गोपाल प्रसाद व्यास
डॉ. मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- 13 फरवरी, सन् 1915 ई. मथुरा(उ. प्र.)
पुण्य-तिथि- 28 मई, सन् 2005, दिल्ली
पं. गोपाल प्रसाद व्यास का
जन्म मथुरा के पास एक छोटे से कस्बे में हुआ था. स्कूली शिक्षा कक्षा सात तक हुई,
स्वतंत्रता-संग्राम के कारण उसकी परीक्षा भी आप नहीं दे सके. लेकिन आपने विभिन्न
विद्वानों से विभिन्न विषयों का ज्ञान प्राप्त किया. श्री नवनीत चतुर्वेदी जी से
पिंगल, सेठ कन्हैयालाल पोद्दार जी से अलंकार, रस-सिद्धान्त के विषय में पढ़ा.
नायिका भेद का ज्ञान सैंया चाचा से प्राप्त किया. डॉ. वासुदेवशरण अग्रवाल से
पुरातत्व, मूर्तिकला, चित्रकला, आदि का ज्ञान प्राप्त किया. हिन्दी के नये विषयों
का ज्ञान डॉ. सत्येन्द्र से प्राप्त किया. हिन्दी साहित्य सम्मेलन से हिन्दी में
विशारद और साहित्य रत्न के प्रमाण पत्र प्राप्त किये.
पं. गोपाल प्रसाद व्यास ने
प्रथम आगरा शहर को अपना कार्यक्षेत्र बनाया. सन् 1945 ई. में दिल्ली आ गये और
आजीवन यहीं रहे. आप साहित्य संदेश आगरा, दैनिक हिन्दुस्तान दिल्ली, राजस्थान
पत्रिका जयपुर, सन्मार्ग कलकत्ता, दैनिक विकासशील भारत आगरा के
प्रधान संपादक रहे. आपको हिन्दी साहित्य में व्यंग्य-विनोद की नयी काव्यधारा का
जनक माना जाता है. हास्यरस में पत्नीवाद के प्रवर्तक माने जाते हैं. आप सामाजिक,
साहित्यिक, राजनैतिक व्यंग्य-विनोद के प्रतिष्ठा प्राप्त कवि और लेखक माने जाते
हैं. आपने विभिन्न विषयों
पर पचास से भी अधिक पुस्तकें लिखी हैं. जिनमें प्रमुख हैं- गोपिन के अधरान की
भाषा, हास्य सागर, कदम-कदम बढ़ाए जा, रंग, जंग और व्यंग्य.
पं. गोपाल प्रसाद व्यास जी
को पद्म श्री, शलाका सम्मान व यश भारती से सम्मानित किया गया. दिल्ली में हिन्दी
भवन के निर्माण व लाल किले पर हर वर्ष होने वाले राष्ट्रीय कवि सम्मेलन की
शुरूआत कराने में आपकी अहम् भूमिका थी.
पत्नी को परमेश्वर आप जैसे पत्नीवादी
कवि ही मान सकते हैं-
यदि ईश्वर में विश्वास न
हो,
उससे कुछ फल की आस न हो,
तो अरे नास्तिकों! घर बैठे,
साकार ब्रह्म को पहचानो.
पत्नी को परमेश्वर मानों.
वे अन्नपूर्णा जग-जननी,
माया है, उनको अपनाओ.
वे शिवा, भवानी, चंडी है,
तुम भक्ति करो, कुछ भय खाओ.
पं गोपाल प्रसाद व्यास
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