Tuesday, August 24, 2021


गीत

डॉ. मंजूश्री गर्ग

बरस-बरस बरसे रे घन

सरस-सरस सरसे रे मन।

 

भीगा आँगन

भीगा आनन

भीगा है

सारा ही तन।

 

पुलक-पुलक पुलके रे मन

बरस-बरस बरसे रे घन।

 

भीगे पत्ते

भीगे पेड़

भीगा है

सारा ही वन।

 

हरष-हरष हरषे रे मन।

बरस-बरस बरसे रे घन।

 

  

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