Thursday, June 14, 2018




चाँद से सुंदर मुख है तुम्हारा।
सुना है जब से चाँद ने,
चाँद घटता जा रहा।

कोयल से मधुर है बोली तुम्हारी।
सुना है जब से कोयल ने,
कोयल काली हो गयी।

अब ना और गुणगान करेंगे।
प्रकृति न जाने क्या से क्या हो जायेगी।

      डॉ0 मंजूश्री गर्ग



Wednesday, June 13, 2018



प्रिय प्रवास
(हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य)

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

प्रिय प्रवास अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध द्वारा रचित हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है जिसकी रचना कवि ने 15 अक्टूबर, सन् 1909 ई0 को शुरू की थी और 24 फरवरी, सन् 1913 ई0 को सम्पूर्ण की थी. प्रिय प्रवास की कथा अत्यन्त ही सूक्ष्म है. कथा केवल इतनी है कि कृष्ण जी कंस के बुलाये जाने पर, कंस के दूत अक्रूर जी के साथ मथुरा जाते हैं किन्तु गोकुल नगरी को विरह-व्यथा में डुबो जाते हैं. जिन कुंजों में वंशी की मधुर ध्वनि गूँजती थी, वहाँ एक ही रात में विरानी छा जाती है. ब्रज गोपियाँ, ग्वाल-बाल, राधा व माता यशोदा का विरह वर्णन कवि ने बहुत ही मार्मिक ढ़ंग से किया है. जब कृष्ण जी को मथुरा में गोकुल की याद सताती है तो वो उद्धव जी को गोकुल भेजते हैं. गोकुल में उद्धव जी से सब अपनी –अपनी व्यथा कहते हैं. विभिन्न घटनाओं के माध्यम से कवि ने श्रीकृष्ण को ब्रज रक्षक के रूप में चित्रित किया है. कथा की अत्यन्त सूक्ष्मता होने पर भी कहीं भी विश्रृंखलता नहीं आने पायी है.

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध द्वारा किया गया प्रकृति-चित्रण बहुत ही मर्मस्पर्शी हो गया है. राधा जी विरह से पीड़ित हो, कृष्ण जी तक अपना संदेशा पहुँचाने के लिये पवन को दूत बनाकर भेजती हैं. कवि द्वारा 'पवन-दूत का वर्णन बहुत ही ह्रदयस्पर्शी बना है. कवि कालिदास के मेघदूत से बहुत अधिक साम्य रखता है किन्तु मेघदूत से भी एक पग आगे है, क्योंकि इसमें पवन से पवन सुलभ वह सब बातें कही गयी हैं जिनसे कृशकाय राधिका की दशा का वर्णन हो सकता है. जैसे- सूखे हुये पुष्प को कृष्ण जी के चरणों मे डालकर पुष्प से मुरझायी राधिका का ध्यान दिलाना.

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ने, न केवल विरह-व्यथा का वर्णन किया है, अपितु धर्म, नीति से सम्बन्धित सूक्तियाँ भी प्रस्तुत की हैं. युवकों को वीरता का संदेश सुनाया है. साथ ही भाग्य की विडम्बना का दृष्टिकोण दिखाया है. प्रिय प्रवास में अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की भाषा मुख्य रूप से खड़ी बोली है जिसमें संस्कृत के शब्दों का बहुलता से प्रयोग किया गया है; फिर भी भाषा कहीं भी क्लिष्ट नहीं होने पायी है.

प्रिय प्रवासकी उत्कृष्टता के लिये एक ही उदाहरण पर्याप्त है-
ह्रदय-चरण में तो मैं चढ़ा ही चुकी हूँ।
सविधि वरण की थी कामना और मेरी।
पर सफल हमें सो है न होती दिखाती।
वह कब टलता है भाल में जो लिखा है।

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Tuesday, June 12, 2018


जीने भी नहीं देते, मरने भी नहीं
आते भी नहीं, ना आस तोड़ते हो।

                                                                                      डॉ0 मंजूश्री गर्ग



Monday, June 11, 2018



अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार को समर्पित प्रमुख सार्वजनिक संस्था है, जिसकी स्थापना 1 मई, सन् 1910 ई0 को नागरी प्रचारिणी सभा के तत्वाधान में हुई. पहला सम्मेलन पं0 मदन मोहन मालवीय के सभापतित्व में वाराणसी में हुआ. दूसरा सम्मेलन सन् 1911 ई0 में पं0 गोविन्द नारायण मिश्र के सभापतित्व में प्रयाग में हुआ. प्रयाग में ही इसका मुख्यालय है. अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन, स्वतन्त्रता आन्दोलन के समान ही भाषा-आन्दोलन का साक्षी और राष्ट्रीय गर्व-गौरव का प्रतीक है. श्री पुरूषोत्तम दास टंडन अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के जन्म से ही इसके मंत्री रहे और जीवन-पर्यन्त इसके उत्कर्ष के लिये कार्य करते रहे.

उत्तर प्रदेश, बिहार, दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बंगाल राज्यों में अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन की शाखायें हैं. अहिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी के प्रचार-प्रसार के लिये वर्धा में राष्ट्र भाषा प्रचार समिति  का निर्माण किया गया. इसके कार्यालय महाराष्ट्र, मुबंई, गुजरात, हैदराबाद, बंगाल और असम में हैं.

सन् 1910 ई0 से ही प्रत्येक वर्ष् अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन हिन्दी के उत्कर्ष के क्रियान्वयन हेतु एक सम्मेलन आयोजित करता है जिसे बाद में अधिवेशन नाम दिया गया.

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन और राष्ट्रभाषा प्रचार समितिद्वारा प्रत्येक वर्ष हिन्दी, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, राजनीति, कृषि व शिक्षाशास्त्र में उपाधि परीक्षायें ली जाती हैं जिसमें देश-विदेश के दो लाख से भी अधिक छात्र 700 से भी अधिक परीक्षाकेंद्रों पर उपाधि हेतु परीक्षा देते हैं. ये उपाधि हैं- प्रवेशिका, प्रथमा, मध्यमा, उत्तमा.

अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने सर्वप्रथम हिन्दी के लेखकों को पुरस्कृत करने के लिये मंगलाप्रसाद पारितोषिक की शुरूआत की. अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के द्वारा अनेक उच्च कोटि की पाठ्य एवम् साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवम् संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है. अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का एक हिन्दी संग्रहालय भी है जिसमें पांडुलिपियों का भी संग्रह है. अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन द्वारा एक त्रैमासिक पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है.












Sunday, June 10, 2018


हमने जीना सीख लिया है,
झूठ बोलना सीख लिया है।
महफिल में परिधानों सा,
मुस्कान पहनना सीख लिया है।

                                        डॉ0 मंजूश्री गर्ग


Saturday, June 9, 2018


मत अधीर हो धरा, आ पहुँचे पाहुने बादल।
रससिक्त तुम्हें कर, पहनायेंगे चूनर धानी।।

                                  डॉ0 मंजूश्री गर्ग 


Friday, June 8, 2018



अति आधुनिक युग में जहाँ निम्न वर्गीय माँ-बाप आर्थिक मजबूरी के कारण अपने बच्चों का बचपन छीनकर उनसे बाल मजदूरी कराते हैं वहीं मध्यम वर्गीय और उच्च मध्यम वर्गीय माता-पिता अपने बच्चों को जल्दी से जल्दी अधिक होशियार बनाने के चक्कर में उनसे उनका बचपन छीन लेते हैं. इसी संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-

नन्हें बच्चों से कुँअर छीन के भोला बचपन
उनको हुशियार बनाने पे तुली है दुनिया।

                               कुअँर बेचैन