अति आधुनिक युग में जहाँ
निम्न वर्गीय माँ-बाप आर्थिक मजबूरी के कारण अपने बच्चों का बचपन छीनकर उनसे बाल
मजदूरी कराते हैं वहीं मध्यम वर्गीय और उच्च मध्यम वर्गीय माता-पिता अपने बच्चों
को जल्दी से जल्दी अधिक होशियार बनाने के चक्कर में उनसे उनका बचपन छीन लेते हैं. इसी
संवेदना की अभिव्यक्ति कवि ने प्रस्तुत पंक्तियों में की है-
नन्हें बच्चों से ‘कुँअर’ छीन के भोला बचपन
उनको हुशियार बनाने पे तुली है दुनिया।
कुअँर बेचैन
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