हिन्दी साहित्य
Friday, June 29, 2018
मानिनी
!
चाहे
रूठी
रहो, रहो
साथ ही।
रूठने का हक है तुम्हें, तो मनाने का हमें भी।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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