Wednesday, June 13, 2018



प्रिय प्रवास
(हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य)

डॉ0 मंजूश्री गर्ग

प्रिय प्रवास अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध द्वारा रचित हिन्दी खड़ी बोली का प्रथम महाकाव्य है जिसकी रचना कवि ने 15 अक्टूबर, सन् 1909 ई0 को शुरू की थी और 24 फरवरी, सन् 1913 ई0 को सम्पूर्ण की थी. प्रिय प्रवास की कथा अत्यन्त ही सूक्ष्म है. कथा केवल इतनी है कि कृष्ण जी कंस के बुलाये जाने पर, कंस के दूत अक्रूर जी के साथ मथुरा जाते हैं किन्तु गोकुल नगरी को विरह-व्यथा में डुबो जाते हैं. जिन कुंजों में वंशी की मधुर ध्वनि गूँजती थी, वहाँ एक ही रात में विरानी छा जाती है. ब्रज गोपियाँ, ग्वाल-बाल, राधा व माता यशोदा का विरह वर्णन कवि ने बहुत ही मार्मिक ढ़ंग से किया है. जब कृष्ण जी को मथुरा में गोकुल की याद सताती है तो वो उद्धव जी को गोकुल भेजते हैं. गोकुल में उद्धव जी से सब अपनी –अपनी व्यथा कहते हैं. विभिन्न घटनाओं के माध्यम से कवि ने श्रीकृष्ण को ब्रज रक्षक के रूप में चित्रित किया है. कथा की अत्यन्त सूक्ष्मता होने पर भी कहीं भी विश्रृंखलता नहीं आने पायी है.

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध द्वारा किया गया प्रकृति-चित्रण बहुत ही मर्मस्पर्शी हो गया है. राधा जी विरह से पीड़ित हो, कृष्ण जी तक अपना संदेशा पहुँचाने के लिये पवन को दूत बनाकर भेजती हैं. कवि द्वारा 'पवन-दूत का वर्णन बहुत ही ह्रदयस्पर्शी बना है. कवि कालिदास के मेघदूत से बहुत अधिक साम्य रखता है किन्तु मेघदूत से भी एक पग आगे है, क्योंकि इसमें पवन से पवन सुलभ वह सब बातें कही गयी हैं जिनसे कृशकाय राधिका की दशा का वर्णन हो सकता है. जैसे- सूखे हुये पुष्प को कृष्ण जी के चरणों मे डालकर पुष्प से मुरझायी राधिका का ध्यान दिलाना.

अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध ने, न केवल विरह-व्यथा का वर्णन किया है, अपितु धर्म, नीति से सम्बन्धित सूक्तियाँ भी प्रस्तुत की हैं. युवकों को वीरता का संदेश सुनाया है. साथ ही भाग्य की विडम्बना का दृष्टिकोण दिखाया है. प्रिय प्रवास में अयोध्या सिंह उपाध्याय हरिऔध की भाषा मुख्य रूप से खड़ी बोली है जिसमें संस्कृत के शब्दों का बहुलता से प्रयोग किया गया है; फिर भी भाषा कहीं भी क्लिष्ट नहीं होने पायी है.

प्रिय प्रवासकी उत्कृष्टता के लिये एक ही उदाहरण पर्याप्त है-
ह्रदय-चरण में तो मैं चढ़ा ही चुकी हूँ।
सविधि वरण की थी कामना और मेरी।
पर सफल हमें सो है न होती दिखाती।
वह कब टलता है भाल में जो लिखा है।

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