अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य
सम्मेलन, हिन्दी भाषा और देवनागरी लिपि के प्रचार-प्रसार को समर्पित प्रमुख
सार्वजनिक संस्था है, जिसकी स्थापना 1 मई, सन् 1910 ई0 को नागरी प्रचारिणी सभा के
तत्वाधान में हुई. पहला सम्मेलन पं0 मदन मोहन मालवीय के सभापतित्व में वाराणसी में
हुआ. दूसरा सम्मेलन सन् 1911 ई0 में पं0 गोविन्द नारायण मिश्र के सभापतित्व में
प्रयाग में हुआ. प्रयाग में ही इसका मुख्यालय है. अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य
सम्मेलन, स्वतन्त्रता आन्दोलन के समान ही भाषा-आन्दोलन का साक्षी और राष्ट्रीय
गर्व-गौरव का प्रतीक है. श्री पुरूषोत्तम दास टंडन अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य
सम्मेलन के जन्म से ही इसके मंत्री रहे और जीवन-पर्यन्त इसके उत्कर्ष के लिये
कार्य करते रहे.
उत्तर प्रदेश, बिहार,
दिल्ली, पंजाब, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और बंगाल राज्यों में अखिल भारतीय हिन्दी
साहित्य सम्मेलन की शाखायें हैं. अहिन्दी भाषी राज्यों में हिन्दी के
प्रचार-प्रसार के लिये वर्धा में ‘राष्ट्र भाषा प्रचार समिति’ का निर्माण किया गया. इसके कार्यालय महाराष्ट्र, मुबंई,
गुजरात, हैदराबाद, बंगाल और असम में हैं.
सन् 1910 ई0 से ही प्रत्येक
वर्ष् अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन हिन्दी के उत्कर्ष के क्रियान्वयन हेतु
एक सम्मेलन आयोजित करता है जिसे बाद में अधिवेशन नाम दिया गया.
‘अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य
सम्मेलन’ और ‘राष्ट्रभाषा प्रचार समिति’ द्वारा प्रत्येक वर्ष
हिन्दी, आयुर्वेद, अर्थशास्त्र, राजनीति, कृषि व शिक्षाशास्त्र में उपाधि
परीक्षायें ली जाती हैं जिसमें देश-विदेश के दो लाख से भी अधिक छात्र 700 से भी
अधिक परीक्षाकेंद्रों पर उपाधि हेतु परीक्षा देते हैं. ये उपाधि हैं- प्रवेशिका,
प्रथमा, मध्यमा, उत्तमा.
अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य
सम्मेलन ने सर्वप्रथम हिन्दी के लेखकों को पुरस्कृत करने के लिये मंगलाप्रसाद
पारितोषिक की शुरूआत की. अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन के द्वारा अनेक
उच्च कोटि की पाठ्य एवम् साहित्यिक पुस्तकों, पारिभाषिक शब्दकोशों एवम्
संदर्भग्रंथों का भी प्रकाशन हुआ है. अखिल भारतीय हिन्दी साहित्य सम्मेलन का एक
हिन्दी संग्रहालय भी है जिसमें पांडुलिपियों का भी संग्रह है. अखिल भारतीय हिन्दी
साहित्य सम्मेलन द्वारा एक त्रैमासिक पत्रिका भी प्रकाशित की जाती है.
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