बाबू श्याम सुंदर दास
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
जन्म-तिथि- सन् 1875 ई0
पुण्य-तिथि- सन् 1945 ई0
बाबू श्याम सुंदर दास
हिन्दी भाषा के अनन्य साधक, विद्वान, आलोचक व शिक्षाविद् थे. उन्होंने अपना सारा
जीवन हिन्दी सेवा को समर्पित किया. विद्यार्थी जीवन में ही उन्हें यह आभास हुआ कि
हिन्दी में पाठ्य पुस्तकों का, पाठ्य साम्रगी का अभाव है. इसके लिये बाबू श्याम
सुंदर दास ने अपने मित्रों के साथ मिलकर सन् 1893 ई0 में काशी नागरी प्रचारिणी सभा
की स्थापना की और सम्पूर्ण भारतवर्ष से हिन्दी की प्रकाशित, अप्रकाशित पुस्तकें
एकत्र कीं. निरंतर पचास वर्षों से भी अधिक हिन्दी साहित्य की सेवा करते रहे.
हिन्दी कोश, हिन्दी साहित्य का इतिहास, भाषा-विज्ञान, साहित्यालोचन, सम्पादित
ग्रंथों का निर्माण स्वयं भी किया और अन्य हिन्दी प्रेमी साहित्यकारों को अपने साथ
साहित्य की सेवा के लिये प्रोत्साहित किया. विश्व विद्यालयों में हिन्दी की पढ़ाई
के लिये पाठ्य पुस्तकें तैय्यार करीं.
बाबू श्याम सुंदर दास सन्
1895-96 ई0 में नागरी प्रचारिणी पत्रिका के संपादक बने. सन् 1899 ई0 से सन्
1902 ई0 तक सरस्वती पत्रिका के भी संपादक रहे. सन् 1921 ई0 में काशी हिंदू
विश्व विद्यालय में हिन्दी विभाग खुल जाने पर हिन्दी विभाग के अध्यक्ष बने. बाबू
श्याम सुंदर दास ने अध्यक्ष पद पर रहते हुये पाठ्यक्रम के निर्धारण से लेकर हिन्दी
भाषा और साहित्य की विश्वविद्यालयस्तरीय पुस्तकों का संपादन किया व पुस्तकों का
निर्माण कराया. शिक्षा के मार्ग की अनेक बाधाओं को हटाया और जीवन पर्यन्त हिन्दी
विभाग का कुशल संचालन व संवर्धन करते रहे.
बाबू श्याम सुंदर दास हिन्दी
शब्द सागर के प्रधान संपादक थे. यह विशाल शब्द कोश इनके अप्रतिम बुद्धिबल और
कार्यक्षमता का प्रमाण है. सन् 1907 ई0 से सन् 1929 ई0 तक अत्यंत निष्ठा से इसका
संपादन और कार्यसंचालन किया. हिन्दी शब्द सागर के प्रकाशन के अवसर पर इनकी
सेवाओं को मान्यता देने के निमित्त कोशोत्सव स्मारक संग्रह के रूप में
इन्हें अभिनंदन ग्रंथ अर्पित किया गया.
हिन्दी सेवाओं से प्रसन्न
होकर अंग्रेज सरकार ने बाबू श्याम सुंदर दास को रायबहादुर की उपाधि से
सम्मानित किया. बाबू श्याम सुंदर दास को हिन्दी साहित्य सम्मेलन ने साहित्यवाचस्पति
और काशी हिंदू विश्वविद्यालय ने डी0 लिट्0 की उपाधि से सम्मानित
किया. मैथिलीशरण गुप्त ने बाबू श्याम सुंदर दास के सम्मान में कहा है-
मातृभाषा के हुए जो विगत वर्ष पचास।
नाम उनका एक ही श्याम सुंदर दास।।
डॉ0 राधा कृष्णन् ने कहा
है-
बाबू श्याम सुंदर दास अपनी
विद्वता का वह आदर्श छोड़ गये हैं जो हिन्दी के विद्वानों की वर्तमान पीढ़ी को
उन्नति करने की प्रेरणा देता रहेगा.
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