Wednesday, June 20, 2018



भारत-रत्न
राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन

डॉ0 मंजूश्री गर्ग


जन्म-तिथि-1अगस्त, सन् 1882 ई0, इलाहाबाद(उ0प्र0)
पुण्य-तिथि-1जुलाई, सन् 1962 ई0

राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन अत्यंत मेधावी व बहुमुखी प्रतिभा के धनी थे. वह एक स्वतंत्रता सेनानी, राजनेता, साहित्यकार व समाज सुधारक थे. राजनीति में प्रवेश उनका हिंदी प्रेम के कारण ही हुआ था. वे हिन्दी को स्वतन्त्रता प्राप्ति के लिये साधन मानते थे. स्वतन्त्रता प्राप्ति उनका साध्य था. उन्होंने स्वयं कहा है, यदि हिन्दी भारतीय स्वतन्त्रता के आड़े आयेगी तो मैं स्वयं उसका गला घोंट दूँगा. वे हिन्दी को देश की आजादी से पहले आजादी प्राप्त करने का साधन मानते रहे और आजादी मिलने के बाद आजादी बनाये रखने का.

10 अक्टूबर, सन् 1910 ई0 को काशी में हिन्दी साहित्य सम्मेलन का प्रथम अधिवेशन हुआ तभी राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन इसके मंत्री बने और वह हमेशा हिन्दी के उत्कर्ष के लिये कार्य करते रहे. टण्डन जी ने हिन्दी के प्रचार प्रसार के लिये हिन्दी विद्यापीठ प्रयाग की स्थापना की. इस पीठ की स्थापना का उद्देश्य हिन्दी भाषा का प्रसार और अंग्रेजी के वर्चस्व को समाप्त करना था.

हिन्दी को राष्ट्र भाषा और वन्देमातरम् को राष्ट्रगीत स्वीकृत कराने के लिये राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन ने अपने सहयोगियों के साथ एक अभियान चलाया और करोड़ों देशवासियों के हस्ताक्षर व समर्थन पत्र एकत्र किये. सन् 1949 ई0 के संविधान सभा में टण्डन जी के ही प्रयास से हिन्दी राष्ट्र भाषा के पद पर आसीन हुई और देवनागरी लिपि राजलिपि बनी. वन्देमातरम्  को राष्ट्रगीत घोषित किया गया.

साहित्यकार के रूप में राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन ने निबंध, लेख व कवितायें भी लिखी हैं. अंग्रेजी शासन के विरूद्ध अपने विचार टंडन जी ने प्रस्तुत पंक्तियों में अभिव्यक्त किये हैं-

एक-एक के गुण नहिं देखें, ज्ञानवान का नहिं आदर
लड़ै कटै धन पृथ्वी छीनैं, जीव सतावैं लेवैं कर।
भई दशा भारत की कैसी, चहूँ ओर विपदा फैली,
तिमिर आन घोर है छाया, स्वारथ साधन की शैली।
                          
राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन के बहुआयामी और प्रतिभाशाली व्यक्तित्व को देखकर उन्हें राजर्षिकी उपाधि से विभूषित किया गया. 15 अप्रैल, 1948 ई0 की सांध्यबेला में सरयूतट पर महन्त देवरहा बाबा ने वैदिक मंत्रोच्चार के साथ  पुरूषोत्तम दास टंडन को राजर्षि की उपाधि से अलंकृत किया. ज्योतिर्मठ के शंकराचार्य ने इसे शास्त्र सम्मत माना. राजर्षि पुरूषोत्तम दास टंडन को सन् 1961 ई0 में भारत के सर्वोच्च राजकीय सम्मान भारत रत्नसे सम्मानित किया गया.

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