हिन्दी साहित्य
Friday, January 19, 2018
परम्परायें
परम्परायें बेड़ियाँ नहीं,
पथ प्रदर्शक हैं हमारी,
धरोहर हैं संस्कृति की।
बाधक
‘
गर बने प्रगति-पथ में,
तोड़नी पड़ती हैं कभी-कभी।
डॉ0 मंजूश्री गर्ग
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