हिन्दी साहित्य
Wednesday, June 12, 2019
तेरी नजरों में सँवरते रहे हम
तेरी बाँहों में पिघलते रहे हम।
नित अस्तित्व अपना खोकर
तुझ में ही ढ़लते रहे हम।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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