अलंकार योजना
डॉ. मंजूश्री गर्ग
हिन्दी साहित्य में
अलंकारों का महत्वपूर्ण स्थान है. अलंकार वास्तव में भाषा की विशिष्ट क्षमता के ही
रूप हैं. शब्दालंकार भाषा की बाहरी क्षमता को प्रकट करते हैं और अर्थालंकार आंतरिक
क्षमता को. अलंकार अभिव्यंजना के सशक्त माध्यम हैं. अलंकारों के दो प्रमुख भेद
हैं-
1.
शब्दालंकार
2.
अर्थालंकार
1.शब्दालंकार-
जहाँ साहित्य में
अक्षरों या शब्दों के माध्यम से सौन्दर्यवृद्धि की जाती है, वहाँ शब्दालंकार होता
है. शब्दालंकारों के चार प्रमुख भेद हैं-
क.
अनुप्रास
अलंकार
ख.
यमक
अलंकार
ग.
श्लेष
अलंकार
घ.
पुनरूक्ति-प्रकाश
अलंकार
क.अनुप्रास अलंकार-
जब किसी पंक्ति में
एक से अधिक बार समान वर्ण की समान स्थान पर या किसी स्वर की समान स्थान पर आवृत्ति
होती है तब वहाँ अनुप्रास अलंकार होता है. अनुप्रास अलंकार के दो भेद होते हैं-
अ.
वर्णात्मक
अनुप्रास अलंकार
आ.
स्वरात्मक
अनुप्रास अलंकार
अ.वर्णात्मक
अनुप्रास अलंकार-
जब किसी पंक्ति में
समान वर्ण की समान स्थान पर एक से अधिक बार आवृत्ति होती है, तब वहाँ वर्णात्मक
अनुप्रास अलंकार होता है.
उदाहरण-
कल कानन कुंडल मोरपखा उर पै वनमाला विराजति है.
उपर्युक्त पंक्ति के
रेखांकित अंश में क वर्ण की आवृत्ति लगातार तीन शब्दों में प्रथम स्थान पर
हुई है. इसलिये यहाँ वर्णात्मक अनुप्रास अलंकार है.
आ.स्वरात्मक
अनुप्रास अलंकार-
जब किसी पंक्ति में
समान स्वर की आवृत्ति समान स्थान पर एक से अधिक बार होती है तो वहाँ स्वरात्मक
अनुप्रास अंलकार होता है.
उदाहरण-
रात-रात भर सपने
जन्मे, भोर भये कर दी हत्यायें।
उपर्युक्त पंक्ति के
रेखांकित अंश में ऐ स्वर की आवृत्ति लगातार दो शब्दों में शब्द के अंत में
हुई है. इसलिये यहाँ स्वरात्मक अनुप्रास अलंकार है.
ख.यमक अलंकार-
जब कविता में एक ही
शब्द दो या दो से अधिक बार आता है और उसका अर्थ हर बार भिन्न होता है, वहाँ यमक
अलंकार होता है.
उदाहरण-
कनक कनक से सौगुनी मादकता अधिकाय,
वा खाए बौराए जग या
पाए बौराए।
उपर्युक्त पंक्तियों
में कनक शब्द दो बार आया है. एक का अभिप्राय धतूरे से है और दूसरे कनक
का अभिप्राय सोना(धातु) से है.
ग.श्लेष अलंकार-
जब किसी कविता में
एक शब्द एक ही बार प्रयुक्त होता है लेकिन उसके एक से अधिक अर्थ निकलते हैं, तब
वहाँ श्लेष अलंकार होता है. श्लेष अलंकार कभी एक शब्द में होता है और कभी सामासिक
पद में. सामासिक पद में भिन्न-भिन्न प्रकार से विग्रह करके भिन्न-भिन्न अर्थ
प्राप्त किये जाते हैं.
उदाहरण-
उसके होठों प रुबाई
थी मेरे होठों पै है।
यह खबर पहुँचा दे अब
कोई उमर ख्याम तक।।
उपर्युक्त पंक्तियों
में रूबाई शब्द एक ही बार प्रयुक्त हुआ है, लेकिन इसके दो अर्थ निकलते हैं.
एक तो होठों पर रौनक आने से अभिप्राय है और दूसरा उर्दू काव्य की शैली विशेष रूबाई
से अभिप्राय है.
घ.पुनरूक्ति-प्रकाश
अलंकार-
जब काव्य में एक ही
स्थान पर एक साथ एक ही शब्द की पुनरावृत्ति करके कवि
अपने भावों को बल
प्रदान करता है, तब वहाँ पुनरुक्ति-प्रकाश अलंकार होता है.
उदाहरण-
तुमने इस तालाब में रोहू पकड़ने के लिये
छोटी-छोटी मछलियाँ चारा बनाकर फेंक
दी।
उपर्युक्त पंक्तियों
में कवि ने छोटी मछलियों के ऊपर बल देने के लिये छोटी शब्द का लगातार दो
बार प्रयोग किया है.
अर्थालंकार-
जहाँ साहित्य में
शब्दों के अर्थों के द्वारा सौन्दर्य वृद्धि की जाती है, वहाँ अर्थालंकार होता है.
अर्थालंकार के अनेक भेद हैं-
क.
उपमा
अलंकार
ख.
रूपक
अलंकार
ग.
उल्लेख
अलंकार
घ.
मानवीकरण
अलंकार
ङ.
अतिश्योक्ति
अलंकार
च.
विरोधाभास
अलंकार
छ.
उत्प्रेक्षा
अलंकार
ज.
काव्यलिंग
अलंकार
झ.
दृष्टान्त
अलंकार
ञ.
अन्योक्ति
अलंकार
ट.
उदाहरण
अलंकार
ठ.
अपन्हुति
अलंकार
ड.
यथासंख्य
अलंकार
ढ.
प्रतीप
अलंकार
ण.
व्यतिरेक
अलंकार
त.
भ्रान्तिमान
अलंकार
थ.
सन्देह
अलंकार
क.उपमा अलंकार-
जब किसी वस्तु,
प्राणी या भाव की तुलना किसी ऐसी वस्तु या प्राणी से की जाये, जो उसकी अपेक्षा
अधिक लोक प्रसिद्ध हो, तब वहाँ उपमा अलंकार होता है. उपमा अलंकार में दो बातों का
विशेष ध्यान रखा जाता है- एक तो उपमेय(जिसकी तुलना की जाये) और उपमान(जिससे तुलना
की जाये) दो भिन्न-भिन्न वस्तु हों. दूसरे उपमेय से उपमान उस बात में लोक प्रसिद्ध
हो, जिस बात की तुलना की जा रही है.
उदाहरण-
दुख तो बहुत सहेज के रखना पड़ा हमें
सुख तो किसी कपूर की टिकिया-सा उड़ गया।
उपर्युक्त पंक्ति
में सुख की तुलना कपूर से की गयी है. कपूर बहुत जल्दी उड़
जाता है यह लोक प्रसिद्ध है. इसी क्रिया की समानता कवि ने सुख के क्षणभंगुर होने
से की है.
उपमा अलंकार के चार
प्रमुख अंग होते हैं- उपमेय, उपमान, साघारण धर्म, वाचक शब्द. कभी-कभी एक ही उपमेय
के लिये अनेक उपमानों का प्रयोग होता है, तब वहाँ मालोपमा अलंकार होता है.
ख.रूपक अलंकार-
जहाँ गुण की अत्यन्त
समानता के कारण उपमेय में उपमान का अभेद आरोपण होता है, वहाँ रूपक अलंकार होता है.
उदाहरण-
हम सब दुनिया के
तरूवर की शाखों पर हिलते पत्ते हैं।
उपर्युक्त पंक्ति
में दुनिया को तरूवर के रूप में और हम सब(मानव) को उसके पत्तों के रूप में
कवि ने रूपायित किया है.
कभी-कभी उपमेय और
उपमान में एक से अधिक बातों में समानता दिखाई देती है, तब वहाँ सांगरूपक अलंकार
होता है.
उदाहरण-
शब्द बेटे हैं, पंक्तियाँ माँ हैं,
गीत परिवार की तरह से हैं।
उपर्युक्त पंक्तियों
में कवि ने शब्द को बेटे, पंक्ति को माँ और गीत को परिवार
के रूप में रूपायित कर सांगरूपक अलंकार का संयोजन किया है.
ग.उल्लेख अलंकार-
जब अनुभूति की
तीव्रता को सम्प्रेषणीय बनाने के लिये कभी-कभी कवि एक ही बात को कई रूपों में
वर्णित करता है, तब वहाँ उल्लेख अलंकार होता है.
उदाहरण-
ईसन के ईस, महाराजन के महाराज
देवन के देव, देव प्रान हुँ के प्रान हौ।
कालहु के काल, महाभूतन के महाभूत,
कर्म हूँ के करम, निदान के निदान हौ।
निगम को अगम, सुगम, तुलसी हू से को,
एते मान सील सिंधु करूनानिधान हौ।
उपर्युक्त पंक्तियों
में तुलसीदास जी ने भगवान राम को विविध नामों से सम्बोधित किया है. अतः यहाँ
उल्लेख अलंकार है.
घ.मानवीकरण
अलंकार-
मानवीकरण अलंकार
अंग्रेजी भाषा के (personification) अलंकार का हिन्दी रूपान्तर है. मानवीकरण अलंकार
में अमूर्त्त भावों और जड़ वस्तुओं को मानवीकृत करके प्रस्तुत किया जाता है.
उदाहरण-
छटपटाती रेत, सहमे
शंख, डूबे हैं मल्लाह,
देख, हर इक सीप में
बैठी उदासी है।
उपर्युक्त पंक्तियों
में कवि ने मानव की तरह रेत को छटपटाते हुये, शंख को सहमे हुये, उदासी
को सीप में बैठे हुये अभिव्यक्त कर मानवीकरण अलंकार का सुन्दर उदाहरण प्रस्तुत
किया है.
ङ.अतिश्योक्ति
अलंकार-
जब कवि वर्ण्य विषय
में रोचकता लाने के उद्देश्य से उस विषय में कुछ ऐसा वर्णन करता है, जो प्रायः
असम्भव होता है, तब वहाँ अतिश्योक्ति अलंकार होता है.
उदाहरण-
आगे नदिया पड़ी अपार, घोड़ा कैसे उतरे पार।
राणा ने सोचा इस पार, तब तक चेतक था उस पार।
उपर्युक्त पंक्तियों
में राणा के सोचने से पहले ही चेतक का नदी पार जाना अतिश्योक्ति पूर्ण वर्णन है,
अतः यहाँ अतिश्योक्ति अलंकार है.
च.विरोधाभास अलंकार-
जहाँ दो वस्तुओं में
विरोध न होने पर भी विरोध-सा प्रतीत होता है, वहाँ विरोधाभास अलंकार होता है.
उदाहरण-
कैसे कागज हैं जो गलते हैं न तर होते हैं,
एक मुद्दत से खिंची इन पे नहर है यारों।
उपर्युक्त पंक्तियों
को पढ़कर विरोध सा प्रकट होता है कि कागज पर नहर खिंचने पर भी कागज गला क्यों
नहीं. किन्तु वास्तव में यहाँ नहर ऑफिस में कागज पर रेखाचित्र मात्र खिंची है, यह
अर्थ समझते ही विरोध नष्ट हो जाता है. अतः यहाँ विरोधाभास अलंकार है.
छ.उत्प्रेक्षा
अलंकार-
उत्प्रेक्षा अलंकार
में कवि अपनी बात की पुष्टि किसी अन्य बात का उदाहरण देकर करता है. उत्प्रेक्षा
अलंकार में, मानों, जैसे, ज्यों, आदि शब्द अवश्य होते हैं.
उदाहरण-
दिन-रात कट रहे हैं यूं जैसे
रेकार्ड सौ दफा बजा हुआ।
उपर्युक्त पंक्तियों
में कवि ने परेशानी में कट रही जिंदगी के कथन की पुष्टि पुराने रेकार्ड का उदाहरण
देकर की है, अतः यहाँ उत्प्रेक्षा अलंकार है.
ज.काव्यलिंग अलंकार-
जब कवि काव्य में
किसी वाक्य या पद के अर्थ के द्वारा किसी उक्ति की पुष्टि का कारण बताता है, तब
वहाँ काव्यलिंग अलंकार होता है.
उदाहरण-
सिंधु बनने से नदी रहना ही अच्छा है कुँअर।
है नदी मीठी, समन्दर जन्म से खारा रहा।।
उपर्युक्त पंक्तियों
में कवि ने सिंधु बनने से नदी बनना क्यों अच्छा है की पुष्टि कारण बताकर की
है कि नदी मीठी है और समन्दर जन्म से खारा है. अतः यहाँ काव्यलिंग अलंकार है.
झ.दृष्टान्त अलंकार-
काव्यलिंग अलंकार से
ही मिलता-जुलता दृष्टान्त अलंकार होता है, इसमें भी कवि अपने मत की पुष्टि के लिये
किसी वाक्य या पद का उदाहरण देता है, किन्तु जहाँ काव्यलिंग अलंकार में साधारण कथन
होता है वहीं दृष्टान्त अलंकार में पाठकों के समक्ष कोई दृष्टान्त रखा जाता है.
उदाहरण-
नाहक सोच रहे हो तुम पर असर न होगा औरों का,
चाँद भी काला पड़ जाता है धरती की परछाईं
से।
उपर्युक्त पंक्तियों
में कवि ने अपने कथन की पुष्टि में चंद्रग्रहण का दृष्टान्त रखा है.
ञ.अन्योक्ति अलंकार-
जब कवि अप्रत्यक्ष रूप से किसी प्रतीक के माध्यम
से कोई बात कहता है तब वहाँ अन्योक्ति अलंकार होता है.
उदाहरण-
उसका
न कोई दीन, न ईमान धर्म है,
इस
हाथ से उस हाथ में जाता है आईना।
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने आईना प्रतीक
के माध्यम से राजनेता की बात कही है.
ट.उदाहरण अलंकार-
जब कोई उदाहरण देकर अपनी कही बात को स्पष्ट करता
है तब वहाँ काव्य में उदाहरण अलंकार होता है. उदाहरण अलंकार में जैसे शब्द
का होना आवश्यक है.
उदाहरण-
दिल
पै मुश्किल है बहुत दिल की कहानी लिखना
जैसे
बहते हुये पानी पै हो पानी लिखना।
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने दिल पे दिल की
कहानी लिखने की मुश्किल को पानी पे पानी लिखने की मुश्किल का उदाहरण देकर समझाया
है.
ठ.अपन्हुति अलंकार-
अपन्हुति अलंकार में कवि वास्तविक वस्तु को
छिपाकर उसके स्थान पर काल्पनिक वस्तु की स्थापना करता है.
हम
पर कोई वार न करना, हैं कहार हम, शब्द नहीं
अपने
कंधों पर है कविता की डोली बाबू जी।
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने कविता के लिखे
गये वास्तविक शब्दों को शब्दों के स्थान पर कहार कहा है. अतः यहाँ
अपन्हुति अलंकार है.
ड.यथासंख्य अलंकार-
कभी-कभी कवि कुछ व्यक्तियों या पदार्थों का
उल्लेख करके उसी क्रम से उनसे सम्बन्ध रखने वाले पदार्थ, कार्य या गुण वर्णित करता
है, तब यथासंख्य अलंकार होता है.
उदाहरण-
सानुज
सीय समेत प्रभु राजत परन कुटीर।
भगति
ग्यानु वैराग्य सोहत धरें सरीर।।
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने सानुज(लक्ष्मण),
सीय(सीता), प्रभु(राम) का उल्लेख करके क्रमशः उनके गुणों(भक्ति, ज्ञान, वैराग्य)
से अवगत कराया है.
ढ़.प्रतीप अलंकार-
प्रतीप अलंकार उपमा अलंकार का उल्टा होता है.
उपमा में उपमेय को उपमान के समान बताया जाता है, जबकि प्रतीप में प्रसिद्ध उपमान
को उपमेय के समान बताया जाता है.
उदाहरण-
तीखे
तुरंग मनोगति चंचल, पौन के गौनहु ते बढ़ि जाते।
उपर्युक्त पंक्ति के रेखांकित अंश में अश्व की
गति को पवन के वेग से भी अधिक बताया गया है. अतः यहाँ प्रतीप अलंकार है.
ण.व्यतिरेक अलंकार-
जब उपमेय का वर्णन उपमान से बढ़ाकर किया जाता है
तथा कारण निर्देश भी दिया जाता है, तब व्यतिरेक अलंकार होता है.
उदाहरण-
जनमु
सिंधु पुनि बंधु विषु दिन मलीन सकलंक।
सिय
मुख समता पाव किमि चंदु वापुरो रंग।।
उपर्युक्त पंक्तियों में कवि ने सीता के मुख को
चंद्रमा से बढ़कर बताया है क्योंकि चंद्रमा में अनेक दोष हैं- चंद्रमा का जन्म
सिंधु से हुआ है जो खारा है, चंद्रमा का भाई विष है और दिन में श्रीहीन रहता है,
जबकि सीता के मुख में ऐसा कोई भी दोष नहीं है. यहाँ कारण निर्देश सहित उपमेय का
वर्णन उपमान से बढ़ाकर करने के कारण व्यतिरेक अलंकार है.
त.भ्रान्तिमान अलंकार-
जब उपमान वास्तव में उपमेय नहीं होता, किंतु भूल
से वह उपमेय समझ लिया जाता है तब वहाँ भ्रान्तिमान अलंकार होता है.
उदाहरण-
चकई बिछुरि पुकारै कहाँ मिलहु हो नाहँ।
एक चाँद निसि सरग पर दिन दोसर जल माँह।।
उपर्युक्त दोहे की द्वितीय पंक्ति में
भ्रान्तिमान अलंकार है क्योंकि यहाँ पद्मिनी के मुख को चाँद समझने की भ्रान्ति कवि
ने अभिव्यक्त की है.
अन्य उदाहरण-
किंशुक कुसुम जानकर झपटा भौंरा शुक की लाल चोंच
पर।
तोते ने भी चोंच चलाई, जामुन का फल उसे समझ कर।।
थ.सन्देह अलंकार-
जब उपमेय की वास्तविकता के विषय में द्विधा सी
उत्पन्न हो जाती है और यह निश्चय नहीं कर पाते कि उससे मिलते-जुलते उपमान या
उपमानों में से कौन सा है तब सन्देह अलंकार होता है.
उदाहरण-
चुपचाप,
तेज, देखता रहा-
झरने
के पथरीले तट पर
रात
के अंधेरे में धीरे
चुपचाप,
कौन वह आती है या आता है।
उपर्युक्त काव्य अंश की अन्तिम पंक्ति में सन्देह
अलंकार है, क्योंकि कवि किसी एक पक्ष में निर्णय करने में असमर्थ है.
अन्य उदाहरण-
सारी
बिच नारि है कि नारि बीच सारी है,
कि
सारि ही नारि है, कि नारी ही सारी है।
काव्य
में अलंकार चाहे कोई भी हो, किन्तु काव्य में दो बातों का विशेष महत्व है. एक
अप्रस्तुत योजना और दूसरा-वक्रोक्ति. उपमा अलंकार, रूपक अलंकार, अतिश्योक्ति
अलंकार, उत्प्रेक्षा अलंकार, आदि अधिकांश अर्थालंकार अप्रस्तुत योजना का ही
प्रतिफलन हैं और वक्रोक्ति काव्य में शब्द-वक्रता, अर्थ-वक्रता, वाक्य-वक्रता सभी
रूपों में दिखाई देती है.
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