हिन्दी साहित्य
Friday, August 2, 2019
भरी दुपहरी सरवन गाइये, सोरठ गाइये आधी रात।
आल्हा पवाड़ा वादिन गाइये, जा दिन झड़ी लगे दिन-रात।।
जगनिक
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