हिन्दी साहित्य
Tuesday, November 5, 2019
जले हैं खेत
फैला है प्रदूषण
शहरों तक।
1.
सुबह-शाम
धुँआ-धुँआ है हवा
साँस लें कहाँ।
2.
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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