हिन्दी साहित्य
Monday, November 25, 2019
छोड़ दो तुम हाथ,
चलने दो, दो कदम,
डगमगाते ही सही।
दृढ़ता वही देंगे,
मीलों के सफर की।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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