राम जन्म भूमि-अयोध्या
डॉ. मंजूश्री गर्ग
सन् 1528 ई. में बाबर के शासन काल में राम जन्म भूमि स्थान पर बाबरी मस्जिद का
निर्माण हुआ था. दिसंबर सन् 1949 ई. में फैजाबाद के जिला मजिस्ट्रेट की निगरानी
में बाबरी मस्जिद में स्थित गर्भ गृह का ताला तोड़ा गया था और वहाँ राम लला की
मूर्ति पायी गयी, लेकिन वहाँ फिर से ताला पड़ गया. सन् 1986 ई. में फैजाबाद के
वकील उमेश चंद पांडेय की अपील पर जिला जज कृष्ण मोहन पांडेय ने जन्म भूमि का ताला
खोलने का आदेश दिया.
6 दिसंबर, सन् 1992 ई. को हिन्दू कार सेवकों ने राम परकोटे पर स्थित बाबरी
मस्जिद के ढ़ाँचे को गिरा दिया.
30 सितंबर, सन् 1910 ई. को इलाहाबाद हाईकोर्ट की लखनऊ पीठ ने- जस्टिस एस. यू. खान, सुधीर
अग्रवाल और डी. पी. शर्मा ने अयोध्या में विवादित भूमि के मालिकाना हक पर फैसला
सुनाते हुये कहा- जहाँ राम लला विराजमान हैं वह स्थान हिन्दुओं का है, वहाँ से
मूर्तियाँ नहीं हटेंगी. रामलला की मूर्तियों वाला हिस्सा हिंदुओं को दिया जायेगा.
राम चबूतरा, भंडार गृह व सीता रसोई वाला हिस्सा निर्मोही अखाड़े को दिया जायेगा और
अहाते का एक तिहाई हिस्सा मुसलमानों को दिया जायेगा.
9 नवंबर सन् 2019 ई. को सुप्रीम कोर्ट की पाँच जजों(चीफ जस्टिस ऑफ इंडिया रंजन
गोगोई, जस्टिस शरद अरविंद बोबड़े, जस्टिस अशोक भूषण, जस्टिस एस. अब्दुल नजीर,
जस्टिस धनंजय यशवंत चंद्रचूड़) की एक पीठ ने अयोध्या मंदिर विवाद का ऐतिहासिक
फैसला सुनाया- विवादित जमीन पर रामलला के हक में निर्णय सुनाया. जहाँ राम लला
विराजमान हैं मंदिर वहीं बनेगा. कोर्ट ने केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार को राम
मंदिर बनाने के लिये तीन महीने में ट्रस्ट बनाने के निर्देश दिये हैं. 2.77 एकड़
जमीन केंद्र सरकार के अधीन रहेगी. मुस्लिम पक्ष को मस्जिद बनाने के लिये अलग से 5
एकड़ जमीन दी जायेगी. सुन्नी वक्फ बोर्ड और निर्मोही अखाड़े के दावे जमीन पर से
रद्द कर दिये गये हैं.
(ए. एस. आई. ASI के अनुसार मंदिर के ढ़ाँचे के ऊपर ही मस्जिद बनायी गयी थी)
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