हिन्दी साहित्य
Wednesday, November 27, 2019
बूढ़ी देहरी मौन है,
सहमी हुई अँगनाइयाँ।
घर के सामान की तरह,
बँट गये हैं माँ-बाबूजी।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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