ये सफर कितना कठिन है रास्तों को क्या पता।
कैसे-कैसे हम बचें हैं हादसों को क्या पता।।
आँधियाँ चलती हैं तो फिर सोचतीं कुछ भी नहीं।
टूटते हैं पेड़ कितने आँधियों को क्या पता।।
नित्यानंद तुषार
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