प्रस्तुत पंक्तियों में कवि ने माँ पार्वती की
आराधना की है-
नूपुर बजत मानि
मृग से अधीन होत,
मीन होत जानि
चरनामृत झरनि को।
खंजन से नचैं
देखि सुषमा सरद की सी,
सचैं मधुकर से
पराग केसरनि की
रीझि रीझि तेरी
पदछवि पै तिलोचन के
लोचन ये, अंब! धारैं केतिक धारनि को।
फूलत कुमुद से
मयंक से निरखि नख;
पंकज से खिले
लखि तरवा तरनि को।
रामचंद्र(कवि)
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