शेष हैं अभी मधुमास के दिन
प्रिय! प्रीत के, मनुहार के दिन।
आओ! जी भर जी ले इन्हें, बनेंगे
यही सहारा जीवन की धूप में।।
डॉ. मंजूश्री गर्ग
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